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हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

आधुनिक बोधकथाएँ. ७ - " मैं संसदताई । "




आधुनिक  बोधकथाएँ. ७ -

" मैं  संसदताई । "






"लोकशाही  को  ठोकशाही   बनाने  की  ली   है  ठान..!!
अय आम जनता, भाड़  में जा,तुं  और तेरा लोकजाल..!!"

एक स्पष्टता- इस बोधकथा का, अपने  देश  की  लोकशाही  से कोई  लेना-देना  नहीं  है ।

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" मैं  संसदताई । "

( दरवाज़ा- "ठक-ठक,ठक-ठक,ठक-ठक ")

संसदताई-" आती  हूँ  बाबा, ये  सुबह-सुबह  ११  बजे  कौन  आ धमका..!! कौन  है ?"

लोकजाल-" संसदताई, मैं  लोकजाल..!!"

संसदताई-" कौन ?" 

लोकजाल-" लो..क..जा..ल..अ..!!"

संसदताई- (चिढ़ते हुए)" क्या है? तुम्हें  और  कोई  काम  नहीं  है क्या ? मेरे   पुराने   ठोकसभा  घर  से  तुझे  सहीसलामत  निकाला  तो  अब,  यहाँ   रोगसभा  में  भी  आ  धमका ? क्यूँ आया  है  यहाँ ? क्या  है ?"

लोकजाल- "कुछ  नहीं  ताई..!! मुझे  तो  अण्णा ने  भेजा  है..!!"

संसदताई-"अरे...!! फिर  अण्णा?  कौन  अण्णा..कहाँ   के  अण्णा ?"

लोकजाल-" संसदताई,  वह  अण्णा,  अण्णा   हजारेवाले  अण्णा..!!"

संसदताई- " अरे..!! कायका  हजारे, कहाँ  का  ह..जा..रे..!!  सौ - दो सौ  लोगों  को  इकट्ठा  करने  से, कोई   हजारे  बन  जाता  है क्या ?"

लोकजाल-"ताई, आप  अण्णा  को  कम  आंक  रही  है, क़रीब एक  लाख़  लोगों  ने, उनके  साथ  जेल  जाने  के  लिए  अपने नाम  दर्ज  करवाये  हैं..!!" 

संसदताई-" बस..!! सिर्फ  एक  लाख़ ? मैनें  तो  सोचा  था  ८० करोड़  लोग  नाम  दर्ज  करवायेंगे..!! सा..ले, भिख़ारी कहाँ के..!! लगता है, सभी  लोगों  को, अब  जेलख़ाने  की  रोटीयां  पसंद  आने  लगी  है..!! खैर,  ये  बता, मेरे  रोगसभा  के  यह  दूसरे  घर  पर  अभी  तुं  क्यों  आया है ? अब क्या  काम  है ?"

लोकजाल-"संसदताई, आपके  घरवाले  सभी  दल  के  सांसदो ने, झूठमूठ  का  हंगामा  मचा  कर,  मुझे  ख़ाली  हाथ  वापस  लौटा दिया  है..!! आप  उनको   बराबर  डाँटिएगा..!!"

संसदताई-" क्यों  भाई..!! मैं  उन्हें  क्यों  डाँटूं ?  मैं,  क्या  तेरी, नानी  लगती  हूँ ? चल, भाग  यहाँ  से  साले..!! मेरी  इंदिराताई  के   पोते   राहुल  को  तुमने, विरोधीयों  के  साथ  मिल  कर, खून  के  आंसु  रूलाया  है  और  अब  तुम  ये  चाहते  हो  की,  मैं तुम्हारी  मदद  करूँ, भाग  यहाँ  से..!!"

लोकजाल- " ताई,  मैंने  कुछ  नहीं  किया..!!"

संसदताई-" अबे  साले  अब  भोला  बनता  है ? (रोती सूरत बनाकर) मेरी   इंदिराताई   के   नन्हे-मुन्ने  मासूम   पोते  ने,  ज़िंदगी  में  पहली  बार..पहली  बार, सांसदो  से,  तेरे    लिए..सा..ले..तेरे  लिए , बंधारणीय   दरज्जा   माँगा  था,  सब ने  मिल  कर  उस दरज्जे  की  माँग  को  दरवाज़ा  दिखा  दिया? अब  उसकी   इंदिराताई   नहीं   है, इसीलिए  सब   मेरी   इंदिराताई  के  भोले  बेटे  को   ऐसे  सता  रहे  हो  ना ?"

लोकजाल-" हैं..ई..ई..!! ये  क्या  कह  रही  हैं  संसदताई..!!"

संसदताई-" क्यों ? लग  गई  ना  पिछवाड़े  मिर्ची ? याद रखना  हमारे  बेचारे  मासूम  पोते  का  कहा  अगर  किसी ने  भी,  न  माना  तो, मैं   बारबार-लगातार, तुझे  और  तेरे  अण्णा-फण्णा, जो  भी  है..!! सब  को  ख़ून  के  आसुं  रूलाती  रहूँगी..!! सालों...कमीनों, तुम  सब  इसी  बर्ताव  के  लायक  हो..!! नालायक, चल  अब  फूट  ले यहाँ  से..!!"

(" धड़ा..म..अ.अ.अ..!!" दरवाज़ा बंद ?)

लोकजाल-" औ...फौ..औ..औ..!! संसदताई  तो  हम पर ही बिगड़  गई..!! इस  बात  को  क्या  संसदताई  और  हमारे  सारे  प्रातःस्मरणीय,  कर्तव्यनिष्ठ  माननीय (?) सांसदो  की  ओर से हमें, नये  साल  की   मूल्यवान  सौगात  समझे  क्या ? और... नये  साल  के,  इस  मूल्यवान  फ्लॉप  उपहार  का, अब  हम  सब क्या  करेंगे?"

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दोस्तों, "अब हम सब क्या करेंगे?" इस सवाल का आपके पास कोई जवाब है ? है  तो   फिर  बताईए..ना..आ..प्ली..ई..ई.. झ!!

आधुनिक बोध- नये साल पर मिलनेवाला हर उपहार काम का हो ये ज़रूरी नहीं है, ख़ास कर के हमने जिन पर अनहद भरोंसा  किया  हो?


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३०-११-२०११.   

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

उड़ती धूप -`गॅ पार्टी ।` लघु वार्ता(वि)लाप..!!








उड़ती  धूप -`गॅ पार्टी ।`
लघु  वार्ता(वि)लाप..!!


"उम्र की उड़ती  धूप, तुम्हें  छू कर निकल  गई  क्या?
 अब सुखाते  रहना तुम, ओस की गीली आवाज़  को..!!


* उम्र के  सारे  पड़ाव, इन्सान  को  जब  उड़ती  धूप  के समान लगने लगते  हैं तब, उसे यह  बात  समझ  में  आती  है  कि, ज़िंदगी  में  अनुभव की  कमी  की  वजह  से, नादान  ओस  की  मासूम  नमी  भरे  तानें (कटाक्ष)  सुखाते  समय, कभी कभार  ऐसी  आवाज़ें, इन्सान  को  विनाश  की  राह  पर  भी  ले  जा  सकती  हैं । (बच  के  रहना, रे...बा..बा..!!)  

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" माँ, यह  उड़ती  हुई  धूप  मुझे  तो  बहुत  अच्छी लगती है..!! देखो..ना..!! सुबह  यहाँ, दोपहर  मेरे सिर पर और  शाम  को? शाम  को  इस  तरफ..!! माँ, आख़िर  यह  धूप  कैसे  उड़ती  होगी..!!

" क्या बात है  बेटे..!! मेरा बेटा बड़ा हो कर, बहुत बड़ा साहित्यकार बनेगा क्या, अभी से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सोचने लगा है?"

" नहीं माँ, मैं तो बड़ा हो कर हैं..ना..!! ह...अ..म्‍....बता दूँ..!! मैं तो है ना...!! मैं  पुलिसवाला बनुंगा और फिर जो कोई भी इस उड़ती धूप के साथ नहीं भागेगा उनको,  पकड़-पकड़ कर  मैं,  जेलख़ाने  में  बंद  कर  दूँगा..!! बहुत मज़ा आयेगा ।"

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" सर, आज  कोई  नया  कैदी  आया  है, कहाँ  डालूँ?"

"कित्ते  साल  का  है? क्या  चार्ज  लगाया  है?"

" साहब, किसी फार्म हाउस पर, गॅ पार्टी  में  हाथापाई  का  कुछ  लफ़ड़ा  कियेला  है  और  उम्र तो  सिर्फ  अट्ठारह साल  की  लगती है..!!"

"ठीक  है, डाल  दे  उसे  चार नंबर में, उन  दो  बुड्ढों  के  साथ ..?"

" सा`ब, चार नंबर में? वह   मासूम  लड़की  पर बलात्कार  करने  वाले, दो  बदमाश  बुड्ढों  के  साथ?"

" अरे, हाँ..हाँ  वही..!! सा...ले, इसे  देख कर  जलते रहेंगे  और  हाँ  जल्दी  करना, अदालत  का  वक़्त  हो गया  है, वहाँ  भी  तो  टाईम  पर  पहूँचना  है..!!"

"ठीक  है  सा`ब । अभी  आया  मैं..!! चल  अबे, यहाँ-वहाँ  क्या  देखता है, अपने  अब्बु  की  बारात  में  आया  है  क्या?" 

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" अरे  या..र, तु  दिखता  तो  है  सिर्फ  इतना  सा..!! अब  बता, बाहर  क्या  गुल  खिला  कर  अंदर आ..या..है..इ..इ..!!"

" क..अ..क..अ..क..अ..कुछ  न..हीं..!!"

" अ..बे, सीधी  तरह  बताता है  कि, दूँ  एक  उल्टे  हाथ  की..!! ब..ता  सा..ले? बोलता  है  की  नहीं..बता?"

" मैंने  कुछ  नहीं  किया..!! मैं तो पहली बार गॅ पार्टी में गया और सब मेरे से  ज़बरदस्ती करने  लगे  तो,  मेरा  हाथ  उठ  गया, मैं बिलकुल  निर्दोष  हूँ..!!"

" क्या..बे..हमको ऐड़ा समझता है क्या? अच्छा, तु  तो  गॅ पार्टी वाला है ना? अरे यार..!! ये तो वही च ना, जिस में एक मर्द..दूसरे मर्द के सा..थ..? आ..ई..ला, ही...ही..ही..ही..आ..ई..ला, ही...ही..ही..!! चल, हम  भी आज तेरे साथ, गॅ पार्टी-गॅ पार्टी  खेलेंगे ।"

"क्या..आ..आ? न..हीं..ई..ई..ई..!!"

" चल बे मजनू,  देख  क्या  रहा  है? कस  के  पकड़  साले  को, आज मासूम  लड़की  नहीं  तो, लड़का ही  स..ही..!!"

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" माँ तुम कहाँ हो? देख, तुम मेरी फ़िक्र  मत करना..!! उड़ती धूप का साया, अब ढलने को है और अब तो मुझे कोई दर्द भी महसूस नहीं होता..!!"
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प्यारे दोस्तों, क्या आप को दर्द महसूस  हो   रहा  है?

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१५-१२-२०११.