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हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।

शनिवार, 24 सितंबर 2011

पत्नी..!!




(Courtesy Google images)

पत्नी..!!


प्रिय मित्र,

एक बार, एक पति देव से किसी ने सवाल किया,"पति-पत्नी के बीच विवाह - विच्छेद होने की प्रमुख वजह क्या है?"

विवाहित जीवन से त्रस्त पति ने कहा,"शादी..!!"

हमें तो इनका जवाब शत-प्रतिशत सही लगता है.!!

पति आजीवन ऐसी गलतफ़हमी में जीता है कि, मेरी पत्नी, मेरे उन ख्याल के अनुरूप, बानी-व्यवहार अपना कर,सहजीवनका सच्चा धर्म निभा रही है..!!

पर, सत्य हकीक़त यही होती है कि, विवाह के पश्चात, पति देव के ख्यालात आहिस्ता-आहिस्ता कब बदल कर पत्नी के रंग में रंग जाते हैं,पता ही नहीं चलता..!!

 हालाँकि, पति देव के मुकाबले, जगत की सभी पत्नीओं की, छठी इंद्रिय (sixth sense) बचपन से ही, जाग्रत होने की वजह से, वह ये बात अच्छी तरह जानती हैं कि, विवाहित जीवन सुखद बनाने के लिए, पति को समझने में ज्यादा समय व्यतित करना चाहिए और  उसे प्यार करने में कम से कम..!!

इसी तरह, पति देव भी, अपने नर-प्राणी होने की गुरूताग्रंथी से ग्रसित होकर, शादी के बाद थोड़े ही दिनों में समझ जाता है कि, विवाहित जीवन सुखद बिताने के लिए, पत्नी को प्रेम करने का दिखावा करने में ज्यादा समय देना चाहिए और उसे समझने के लिए कम से कम..!! (जिसे बनाने के बाद, खुद ईश्वर आजतक समझ न पाया हो, उसे कोई पति क्या ख़ाक समझ पाएगा?)

इसीलिए,ऐसा कहा जाता है कि, जीवन में दो बार आदमी, औरत को समझ नहीं पता,(१) शादी से पहले (२)शादी के बाद..!!

पत्नी को समझने में अपना दिमाग ज्यादा खर्च न करने के कारण ही, विवाहित पुरूष,किसी कुँवारे मर्द के मुकाबले ज्यादा लंबी आयु बिताते है, ये बात और है कि, विवाह करने के बाद, ज्यादातर पति देव (मर्द) लंबी आयु भुगतने के लिए राज़ी नहीं होते..!! 

 सन-१९६०-७० के दशक तक तो, भारत के कई प्रांत में,घर के मुखिया की पसंद के आगे, नतमस्तक होकर, हाँ-ना कुछ कहे बिना ही विवाह करने का रिवाज़ अमल में था । हालाँकि, ऐसे रिवाज़ के चलते कई पति-पत्नी आज भी मन ही मन अपना जीवन, किसी बेढंगी बैलगाडी की रफ़्तार से, मजबूर होकर, बेमन से संबंध निभा रहे होंगे..!!

मुझे सन-१९५८ का एक,ऐसा ही किस्सा याद आ रहा है, हमारे गुजरात के एक गाँव में, किसी कन्या को देखने के लिए गए हुए,एक युवक और उसके माता पिता को, भोजन का समय होते ही, कन्या के माता-पिता ने, मेहमानों को भोजन ग्रहण करने के लिए प्रेमपूर्वक आग्रह किया, जिसे मेहमान ठुकरा न सके । उधर  कन्या के परिवार को लगा कि, विवाह के लिए सब राज़ी है,तभी तो हमारे घर का भोजन मेहमानोंने ग्रहण किया है..!! अतः विवाह वांच्छूक युवक की झूठी थाली में, उस कन्या को उसकी माता ने भोजन परोसा । मारे शर्म के कन्या ने, अपने होनेवाले पति का झूठा  भोजन ग्रहण किया..!! हिंदु शास्त्र की मान्यता के अनुसार, जो कन्या ऐसे समय किसी युवक का झूठा खा लेती हैं तो, वह दोनों विवाह के लिए राज़ी है ऐसा माना जाता है । 

हालाँकि,बाद में पता चला कि, कन्या का वर्ण  श्याम होने के कारण, युवक इस कन्या से विवाह करने को राज़ी न था, पर परिवार के मुखिया के दबाव में आकर, उस युवक को अंत में, उसी कन्या से शादी करनी पड़ी..!!

आज भी ऐसी मान्यता है कि,"शादी-ब्याह, ईश्वर के यहाँ, पहले से तय हो जाते हैं । हम तो सिर्फ निमित्तमात्र है ।"

हमारे देश में मनोरंजन के नाम पर, प्रसारित हो रही करीब-करीब सारी सिरियल्स में, परिवार की किसी एक बहु को `वॅम्प-अनिष्ट`के रूप में पेश करके, कथा को रोचक बनाने के मसाले कूटे जाते हैं, यह देखकर मैं सोचता हूँ, ये सारे चेनल्सवाले,किसी भी नारी को इतना ख़राब क्यों दर्शाते हैं? हालाँकि,कर्कशा पत्नीओं की कलयुगी कहानी कोई नयी बात नहीं है, राम राज्य में भी कैकेयी-मंथरा की जुगलबंदीने, राजा दशरथ को सचमुच खटीया (मृत्युशैया) पकड़ने पर मजबूर करके, राजा  की खटीया खड़ी कर दी थी । इसी प्रकार महाभारत का भीषण युद्ध भी इर्षालु कर्कशा पत्नीओं के कारण ही हुआ था..!!

महान आयरिश नाट्य कार, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ( George Bernard Shaw 26 July 1856 – 2 November 1950) कहते हैं कि," जिसकी पत्नी कर्कशा-झगड़ालू होती है, उसका पति बहुत अच्छा कवि-चिंतक-विवेचक-नाट्य कार बन सकता है..!! (इस श्रेणी में, मुझे मत गिनना, मैं अपवाद हूँ..!!)

एकबार, एक कंपनी की ऑफ़िस में, काम से सिलसिले से मैं गया । वहाँ दोपहर की चाय-पानी का विराम काल था और कंपनी  के आला अधिकारी के साथ पूरा स्टाफ मौजूद था, ऐसे में किसी बात पर स्टाफ के एक मेम्बर ने कबूल कर लिया कि, घर में उसकी पत्नी का राज है और वह अपनी पत्नी का चरण दास है..!! फिर तो क्या था..!! जैसे अपने मन में भरे पड़े, दबाव से सब लोग छुटकारा चाहते हो, धीरे-धीरे सब स्टाफ मेम्बर्स ने कबूल किया कि, वे सब पत्नी के चरण दास है और पत्नी के आगे उनकी एक नहीं चलती..!! बाद में, सारे स्टाफ मेम्बर्स चेहरे पर मैंने,`शेठ ब्रधर्स का हाजसोल चूरन` लेने के बाद हल्के होने के भाव को उभरते देखा..!! 

कर्कशा पत्नी को सुधारने का सही उपाय शायद यही है कि, आप पूर्ण निष्ठा भाव से, उनके चरण दास बन जाइए, बाकी सबकुछ अपने आप ठीक हो जाएगा? अगर कुछ  ठीक नहीं भी हो पाया तो, कम से कम, घर का माहौल ज्यादा बिगाड़ने से तो बच ही जाएगा..!! वर्ना..किसी रोज़ घरेलू हिंसा के, तरकटी मुक़द्दमों में फँस कर, पुलिसस्टेशन - कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने शुरू हो सकते हैं?

एक आखिरी नसिहत,आदरणीय श्री संजीव कुमार, विद्यासिन्हा की फिल्म,"पति-पत्नी और वोह" वाली `वोह` के चक्कर में कभी मत पड़ना, वर्ना आप को भी, रात-दिन ठंडे-ठंडे पानी से नहाने के दिन गुज़ारने का समय आ सकता है..!!

वैसे, आज आप भी, अपने सिर पर हाथ रखकर, कसम दोहरायें कि,

"मैं जो कहूँगा सच कहूँगा और सच के अलावा कुछ न कहूँगा..!!"

" क्या आप भी चरण दास हैं?"

"अरे..!! हँसना मना है, भाई..!!"


मार्कण्ड दवे । दिनांक- २०-०४-२०११.

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

मृत्युदंड !!!!!

                            मृत्युदंड 
                     

                            
                            जहाँ पूजनीय है नारी,                      
                           
                            वहीं देवता बसते हैं,                      
                            
                            किंतु राम से देव..                      
                            
                            दैव हा!!                      
                            
                            अग्नि परीक्षा लेकर भी,                      
                            
                            सीताजी को तजते हैं. 
                            

                           
                           कहाँ दोष सीता का कहिए,                      
                           
                           उसका हुआ हरण जो था?                      


                           रावण को भड़काने वाला,                      


                           भगिनी कटा कर्ण तो था. 


                     
                           यदि रावण अपने पक्ष में प्रस्तुत करता,                      
                           
                           सीताजी के अग्नि परीक्षा की रिपोर्ट,                      


                           तो क्या मृत्यु दंड दे सकता था उसे...                      


                           यह सुप्रीम कोर्ट ??? 











एम.आर.अयंगर, 09425279174

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

हिंदी दिवस के विशेष अवसर पर एक बार फिर श्री दोहरे जी की कविता का दोहरा आनंद लें.

!!!!!!! हाय हिंदी !!



हिंदी सचिवालय के एक अंक में प्रकीशित श्री दोहरे जी की कविता – आपके समक्ष रख रहा हूँ.

हाय हिंदी !!!!!

        एक हिंद वासी सज्जन की हिंदी देख,
       मैं हो गया मोहित,
       जब उन्होंनें, हवा में अपने हाथों को लहराया,
       और अपनी जोरदार आवाज में फरमाया।

               Ladies and Gentlemen,
               India हमारा country है,
       हम सब इसके citizen हैं,
       हिंदी बोलना हमारी duty है,

       पर बेचारी हिंदी की किस्मत ही फूटी है,
       आज कल की new generation,
       जब भी मुँह खोलती है,
               Only and only अंग्रेजी में ही बोलती है,
       हिंदी की सभ्यता को अँग्रेजियत पर तौलती है,
       यह very wrong है।

       यह हिंदी हमारी मातृभाषा है,
       हमें अपने daily life में,
       हिंदी language को अपनाना है,
               हिंदी को World wide फैलाना है,
               Only and Only then,
       भारत माँ के सपने होंगे सच।
               
              Thank you very much.
                 …………………………………….

शनिवार, 10 सितंबर 2011

सैंडल को सैंडल ही रहने दो दीवानो ...

सैंडलों की उड़ान का हवाई किस्‍सा भरपूर उमड़ रहा है।
विरोधियों के तो पेट में घुमड़ रहा है।
यह वही घुमड़ है, जिससे मरोड़ उठते हैं।
जिसके सैंडल है, उनके सामने करोड़ झुकते हैं।
वे और ये क्‍या खा-सोचकर मुकाबला करेंगे।
सैंडल इतने भी डल नहीं हैं। डल कहोगे तो काश्‍मीर की झील हो जायेंगे,
भूल गए क्‍या वहां की तस्‍वीर भी। सैंडल कभी चर्चा में नहीं रही हैं।
जूते पहले सुर्खियों में आए, फिर यदा-कदा चप्‍पलें भी आ पहुंची और अब एकदा सैंडलें पधारी हैं।

वे भी लाने को तैयार हो गए, जहाज भेज तो हम लाते हैं और आते हुए मुंबई से सैंडलें खरीद लाते हैं। उन्‍हें जरूर अहसास, यह खास हो गया होगा कि अगले बरस वे ही होंगे, कौन का यह अहसास, प्रत्‍येक कोण से लुभा रहा है। पर जिसने बन जाना है पीएम, वो क्‍यों मंगवाए सैंडल जितनी चीज महीन।

लीक्‍स का विकी अब लीक से हट रहा है। वैसे अपनी बात पर डट रहा है लेकिन जो डाट रहा है उसे, वो आंक रहा है तुझे। वो पाक नहीं है, न था, न रहेगा। पाक को तो वो कर रहा है खाक। सैंडलों को फिर भी रहा है ताक। सोच रहा होगा कि इसका ही बिजनेस कर लूंगा। जो डूब रही है अर्थव्‍यवस्‍था हमारी, उसको सुधारने की समझ लूंगा तैयारी।

जो लूट रहा है, वो दिखलाने के लिए लुट सकता है, लुटने में भी उसकी एक चाल है, जिसे नहीं समझ पा रही पीएम बनने की चाहत रखने वाली बाला है। उसे बाला कहो या कहो बाल, वो तो बिना बात ही कर देती है खड़े बवाल। उससे किसकी हिम्‍मत है करे सवाल, जो करे सवाल, वही सारे उत्‍तर निकालेगा, गाकर या कहकर। निकालनी हो बाल में से खाल, पर वे निकालती रही हैं सदा खाल में से बाल।

वही तड़पाते हैं, जब निकल-निकल कर आते हैं। वे मंगवाती हैं सैंडल, जिन्‍हें आसान होता है करना हैंडल। जूती वो पहनती नहीं हैं, अगर पहनेंगी तो समझेंगी कैसे? जूती समझना जरूरी है और पहनना बिल्‍कुल गैर-जरूरी। बिल्‍कुल उसी तरह जैसे मंगवाना जरूरी है, किसकी मजबूरी है, कितनी दूरी है, मायने नहीं रखती। सैंडल पहनाना जी हुजूरी है, इससे कैसे रख सकते, पहनाने वाले दूरी हैं। वे कभी नहीं कहती हैं मेरी सैंडल, वे कहती हैं मेरी जूती करेगी यह काम।

मेरी जूती देगी जवाब। मेरी जूती ही करेगी लाजवाब। सैंडल तो पैरों की धरोहर हैं, जेवर हैं, आभूषण हैं। सैंडल का किस्‍सा, सैंडल का है, जूती का नहीं है।

सैंडल को सैंडल ही रहने दो, इसे भ्रष्‍टाचार का नाम न दो। हवाई जहाज की उड़ान तो दो, पर विकिलीक्‍स का पैगाम मत दो। मत कहो इसे बुराई, यह तो है दुहाई। इसके लाने में ही कितनों की बची है नौकरी, कितनों ने है पदोन्‍नति पाई।

आप इतना आसान सा फलसफा भी क्‍यों नहीं समझ पाते हैं भाई, लेकिन अपनी बहनों के, सबकी बहनजी के नहीं। तिल सी बात को तिल ही रहने दो, इसे ताड़ मत बनाओ, यह तो है राई, जिसे बतलाना चाह रहे हो तुम खाई, कैसी विलक्षण बुद्धि है पाई ?

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

एकदम अद्भुत कला है मास्‍टरी

शिक्षक दिवस पर विशेष



मास्‍टरी कला का गला कंप्‍यूटर दबा रहा है।मास्‍टरी को कला ही माना जाना चाहिए। किसी को पढ़ाना इतना आसान नहीं है, जितना समझ लिया जाता है। आजकल पढ़ाने वाले को, पढ़ने वाले पढ़ाने के लिए तैयार मिलते हैं। जरूरी नहीं है कि जो पढ़ाया जाना है, वो आपने पढ़ा ही हो। आपने नहीं पढ़ा होगा तो आपके लिए उसे पढ़ाना बहुत ही सरल होगा। आप निर्भय होकर कुछ भी कह सकते हैं। जब आपको उस बारे में कुछ मालूम ही नहीं है तो आप गलत पढ़ा रहे हैं, यह भी तो आपको नहीं मालूम हुआ।

अब यह जिम्‍मेदारी तो आपको चयन करने वाले की बनती है कि उसने आपको पढ़ाने के लिए चुना ही क्‍यों, अगर चुन लिया है, फिर तो दोष उसी का है। इससे होने वाले बुरे परिणाम भुगतने के लिए भी उसे ही तैयार रहना चाहिए। अच्‍छे परिणाम या पारिश्रमिक पर तो पढ़ाने वाले का हक बनता है, इससे कोई इंकार कैसे कर सकता है।

आपको मालूम ही है कि मास्‍टरी के बेंत यानी डंडे पर भी कानूनन रोक लग ही गई है। वैसे भी आप पढ़ाने जाते हैं, कोई लट्ठ चलाने तो जाते नहीं हैं या किसी बाबा के अनशन कार्यक्रम में सोते हुए लोगों को जगाने की जिम्‍मेदारी भी आपको नहीं सौंपी गई है। जब ऐसा है तो आपने सिर्फ पढ़ाना ही है और पढ़ाने के निशान, कोई लाठी के निशानों की तरह एकदम तरोताजा नजर भी नहीं आते हैं कि जिसको पढ़ाया है, तुरंत उसके दिमाग में झांककर देख लिया कि उसको समझ आया, नहीं आया – एकदम से इसको मापने का कोई मीटर भी अभी तक बना नहीं है, न हाल फिलहाल बनने की संभावना ही है।

परीक्षा भी आप 50 से 100 बच्‍चों की एकदम ले नहीं सकते हैं, क्‍योंकि आज न तो पढ़ने वालों और न पढ़ाने वालों के पास ही फालतू समय है जो पढ़ाने के बाद परीक्षा लेने और देने के लिए फिजूलखर्च करें। आप तो महीने के अंत में एकदम करारे-करारे लाल, नीले नोट गिनने के लिए तैयार रहा कीजिए। उसमें आपकी लापरवाही बर्दाश्‍त नहीं की जाएगी। आप पढ़ाने से छुट्टी ले सकते हैं अथवा बंक मार सकते हैं परंतु पगार वाले दिन तो आपको पगार पाने के लिए पसीना बहाना ही होगा। इससे ही मास्‍टर की मजबूती का मालूम चलता है।

मजबूती के लिए अब डंडे के प्रयोग की जरूरत, अब मास्‍टरी में नहीं रही है। पुलिस में है और खूब है तथा आजकल इस कला का प्रदर्शन चैनलों पर हर दूसरे दिन देखने को भी मिल रहा है। इससे लाठी विधा की लोकप्रियता के बारे में भी मालूम रहता है। रोज ही एकदम नए तरह के एकदम यूनीक नजारे नजर आते हैं। टीवी चैनलों के आने से आम जनता के लिए इस तरह के अजब गजब तरीकों की जानकारी पाना आसान हो गया है।

जो जानकारी पहले मिलती रही है, वो न तो विश्‍वस्‍त होती थी और उसके अफवाह होने या बाद में अफवाह साबित करने की पूरी संभावनाएं रहती थीं और इसे प्रयोग करने वालों को लोकप्रियता मिलने के रास्‍ते में यह एक ऐसी बाधा थी, जिससे पार पाना कभी आसान नहीं रहा है।
पहले बचपन में कक्षाओं में पढ़ने जाने का मतलब डंडे या बेंत से रूबरू होना भी रहा है, इसी वजह से कितने ही होनहार देश और परिवार का नाम रोशन करने से घर और समाज के अंधेरे में गुम होकर रह गए हैं, परंतु अब ऐसा नहीं है। इस तरह के अवसर मास्‍टरों के लिए अब दुर्लभ हो गए हैं। मास्‍टर बनने के बाद डंडे या बेंत चलाने का जोखिम आजकल कोई नहीं लेता है।

एक आध चपत लगाना भी बहुत दूर की बात है, अगर जोर से बच्‍चे पर चिल्‍ला भी दिए तो शाम तक खबर आ जाती है कि मास्‍टर के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो गई है क्‍योंकि बच्‍चे बर्दाश्‍त नहीं करते हैं और घर जाकर सीधे खुदकुशी कर लेते हैं। मास्‍टर को धमकाते भी नहीं हैं कि उन्‍हें अपनी गलती पर माफी मांगने या उसे सुधारने का अवसर मिल सके। इसमें तो सीधा जांच और जांच से पहले, सस्‍पेंड फिर गिरफ्तारी, इससे बचने के लिए थाने में दारोगा की सेवा और बाद में भी बचना मुश्किल और जेल के पीछे पहुंचना।

नौकरी भी गई और बदनामी भी मिली। अब आगे मास्‍टरी भी नहीं कर पायेंगे, ऐसा मुंह काला होता है कि कालापन चेहरे पर नहीं, पुलिस से सत्‍यापन कराते समय सबको नजर आता है।
बहरहाल,‍ जितना जोखिम पढ़ाने में नहीं है, उससे अधिक रिस्‍क तो साफ सुथरे कैरियर के साथ, बिना दागदार हुए मास्‍टरी का कार्यकाल पूरा करने में है। आप मास्‍टर भी बने रहें और मलाई भी चाटते रहें। इसके लिए आपको स्‍कूल में पढ़ाना तो नहीं ही है, साथ ही बच्‍चों से पंगा भी नहीं लेना है। अगर बच्‍चों की जेब में मोबाइल फोन हैं तो आपको ऐसे दिखाना है कि जैसे आपको इस बारे में मालूम ही नहीं है।

आप तो बिल्‍कुल मिट्टी के माधो हैं लेकिन दूसरी तरफ, बच्‍चों को साफ कह देना है कि अगर वे उत्‍तीर्ण होना चाहते हैं तो उनसे कोचिंग लेना अनिवार्य है और आपसे कोचिंग लेने पर उनके मेरिट में आने की पूरी गारंटी है। फिर आपके पास पैसा भी खूब आएगा और कोई स्‍टूडेंट आपको कभी नहीं धमकाएगा। आपके चारों ओर जी हजूरी करता नजर आएगा। इसलिए ही मास्‍टरी को आजकल कला की संज्ञा दी गई है। क्‍या आपको इसमें कुछ गफलत नजर आ रही है ?

रविवार, 4 सितंबर 2011

कौभांडी नेतागण - सेक्स समस्या.©




(courtesy-Google images)

" हमको अगर कोई छेड़ेगा तो हम छोड़ेगें नहीं ।"

योगगुरु बाबा रामदेवजी उवाच..!!

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प्रिय मित्र,

यह लेख काल्पनिक है ।

साम्यता योगानुयोग है ।

इसका हाल की घटनाओं से कोई लेनादेना नहीं है ।
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मगध के राजा धननंद के दरबार में, ऋषिवर चणक के युवा पुत्र विष्णुगुप्तने अपने राजा को, उनके शासन में प्रवर्तमान भ्रष्टाचार और भ्रष्ट अधिकारीओंके बारे में जानकारी दी, तब विष्णुगुप्त की यह बात राजा धननंद के मन को रास न आयी. राजा को यह बात में अपना अपमान भाव महसूस हुआ और उन्होंने अपने सेनापति को आदेश देकर विष्णुगुप्त को अपने राज्य की सर हद के पार फेंकवा दिया ।

राजा के इस कृत्यसे आहत विष्णुगुप्त तक्षशिला जाकर विद्यार्थीओं को अर्थ शास्त्र पढ़ाने लगे और चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । इधर विलासी राजा धननंदके भ्रष्ट शासन से जनता त्रस्त हो गई, तब चाण्क्यने चंद्रगुप्त की सहायता से मगध में राजा धननंद से सत्ता छीन ली और प्रजा को सुशासन व्यवस्था कैसी होती है, यह बात का परिचय करवाया ।

शायद आज के भारत वर्ष में यही परिस्थिति का फिर से निर्माण हुआ है । रोज़ नये नये भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठानेवालोंकी आवाज़ दबाने के लिए दिल्ली के आका के इशारे पर , संत, साधु और पत्रकारों से लेकर स्वच्छ अधिकारीओंको जिंदा जलाने तक के जघन्य कृत्य को अंजाम दी ये जा रहे है ।

आयकर अधिकारी- "सर योगगुरू बाबा रावणदेव का क्या करें?"

नेताजी -" अरे..,यार,फेमा-ईडी किसी को भी लगा दो पिछे..!!"

पी-पीदम्बरम-" वो नन्ना हजारेने मुझे लबाड-लुच्चा कहा?पुलिस केस ठोक दो उस पर..!!"

जनता-" अरे भाई..!! ये क्या हो रहा है?सब को नोटिस पर नोटिस भेजी जा रही है?संसद की अवमानना की शिकायत दर्ज हो रही है? मिडिया को धमकाया जा रहा है? क्या है,ये सब? अब किसी को कुछ बोलने पर भी पाबंदी आ गई है क्या? "

दोस्तों, अब आप ऐसे हास्यास्पद बातों का क्या करें । सारे नेतागण करीब करीब करोड़पति हैं, ऐसे में सावन के अंधे को सारी कायनात हरी देखना स्वाभाविक बात है ।

यह सब देखकर मेरे मन में एक सवाल उठा ।

* अगर नेताजी को जनता की भ्रष्टाचार निर्मूलन की बातें,अगर इतनी ही कड़वी लगती हैं, तो फिर मीड टर्म चुनाव के मैदान में जनता से दो-दो हाथ ही क्यों नहीं कर लेते हैं ?

मेरे मित्र ने इस सवाल का उत्तर दिया की," ये अभी भ्रष्टाचार में पकड़े गये सभी नेतागण को तनाव की वजह से सेक्स समस्या सताती है और वह सब योगासन के द्वारा सेक्स क्षमता वापस पाना चाहते हैं ।

यह उत्तर पाकर, मेरे मन में यह विचार आया, अगर ये भ्रष्ट नेता बाबा जी के पास अपनी सेक्स समस्या लेकर जाते तब यह सब पे गुस्साए बाबा जी उनको कौन सा उपाय बताते?

उपाय काल्पनिक है, फिर भी आप सुनिए ।

बाबा जी - " बताइए नेताजी, आप तो वही एस-बेन्ड वाले इसरो के, दो लाख करोड़ कौभांड वाले हैं ना? आप को क्या समस्या है?"

नेताजी -१," बाबा जी, मेरी सेक्स लाइफ़ समाप्त हो चली है, मानो सभी अंग पर तालें लग गये हैं, मैं क्या करुं?"

बाबा जी -" समझ लीजिए आपको अपनी ही तपास समिति के अध्यक्ष बना दिये गये हैं, अब आप अपने दोनों पैर फैला के, अपना सर नीचे कर के अपना ताला खुद खोलने का योगाभास कीजिए,सब ठीक हो जायेगा । चलो नेक्स्ट?"

नेताजी - २," बाबा जी मैं कोलाबा की आदर्श सोसाइटी कौभांडवाला, मुझे पहचाना?"

बाबा जी - " परिचय बाद में । समय कम है, समस्या क्या है?"

नेताजी -२," बाबा जी, दूसरों के मुकाबले मैं जल्दी क्लाईमेक्स पर पहुंच गया । देश-विदेश के दूसरे भ्रष्ट लोगों का वीडियो देखकर मैं लधुता का अनुभव कर रहा हूँ ।"

बाबा जी -" आप एक काम कीजिए । पर्यावरण वाले `तयराम नरेश` को आपत्ति न हों, ऐसी एकान्त जगह, स्थान ग्रहण करके श्वासोश्वास स्तम्भन की क्रिया करें ।आपका परफोर्मन्स सुधर जायेगा ।
नेक्स्ट?"

नेताजी -३,"बाबाजी, मैं माईन्स और मीट्टीचोरी कौभांडवाला । मेरे इतने सारे प्रयत्न के बावजूद मेरे सारे साथीदारों को संतोष नही हो रहा? क्या करुं?"

बाबा जी -" बचपन में आप मिट्टी में लेटकर खेलते (प्लॅ..!!) थे?"

नेताजी ३ -" हाँ, मैं तीन बार खेला था ।"

बाबा जी," जाइए, अपने सारे साथीदारों के साथ माईन्स और मिट्टी में लंबे समय तक चौथी बार ( 4 PLAY) खेलिए । आप के साथीदारों को परमानंद प्राप्त होगा ।"

अचानक बाबा जी किसी को देखकर, उठ खड़े हुए ।

बाबा जी," आइए,आइए, कॉमनवेल्थवाले दला तरवाडीजी, क्या समस्या है?"

नेताजी ४-" बाबा जी, मेरे पकाये हुए भोजन का स्वाद सभी ने चखा है, अब वही लोग मुझे ब्लॅकमेल की चिट्ठियाँ भेज रहे हैं । मैं हताशा के मारे ठंडा हो गया हूँ ।"

बाबा जी," अरे..!! तरवाडीजी, आप तो बगैर गेम खेले सब को पछाडनेवाले काबिल खिलाड़ी हो फिर भी ठंडे हो गए? आप एक काम करें, सब के सामने, आप अपने एक हाथ की जगह दोनों हाथ का उपयोग करें ।"

नेताजी ४ -(चौंककर)" मतलब?"

बाबा जी," आप ठंडे पड गये हैं ना? सब के सामने आप दो हाथ की हथेली को परस्पर ज़ोर से घींसे? सारा बदन गर्म हो जायेगा । देखो, ऐसे..ऐसे..!! ठीक है?"

नेताजी ५ -" ओँ..ओँ..ओँ..ओँ..!! बा..बा..जी, मैं टू जी स्पेक्टम घोटालेवाला खाजाबाबु..!! मेरी बीबी तलाक चाहती है । कहती है, तुमने अपनी जेब-तिजोरी तो गर्म कर ली,अब ये ठंडे बिस्तर का मैं क्या करुं? ओँ..ओँ..ओँ..ओँ..!! "

बाबा जी,"चुप हो जा । सारे देश को खून के आँसू रूलाकर अब खुद रोता है? मेरे यह शिष्य को साथ ले जा, तेरा बिस्तर गर्म कर देगा ।"

नेताजी ५ (अचानक चुप होकर)" बाबा जी, यह आप क्या बक रहे हो..!!"

बाबा जी," तेरा दिमाग सड़ गया है? ज्यास्ती नहीं समझने का..!! मेरा शिष्य तेरे ठंडे बिस्तर के नीचे आग जला कर गर्म कर देगा । चल अब भाग यहां से..!!"

शिष्य -" बाबा जी, आप जल्दी समाधी लगा लें । मध्यप्रदेशवालें `बकबकविज्यसिंह`;अप्रण दादा,कपिल डॅवम;पी-पीम्बरम, ऐसे सारे नेताजी आ रहे हैं । फोगटमें आपका सर खपायेगें ।"

बाबाजी," अरे..!! उनको रोकना मत, आने दे और सारे रूममें गुलाबजल छीडक दे । उन सभी को सेक्स की समस्या नहीं है । उनके उदरमें, नेता होनेका अभिमान का गेस भर गया है, आने दे, वायुमूक्तासन कराके उसका सारा गेस अभी नीकाल देता हूँ ।"

MARKAND DAVE. DT: ०३-०९-२०११.