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मंगलवार, 29 मार्च 2011

छींटाकशी -2

छींटाकशी - 2

कसम गीता और कुरान की ले,
गर सभी सच बोलें यहाँ,
तो वकीलों की जिरह की,
बँध रहा है क्यों समा ?
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भीड़ से कतराए जो,
उनको ये मंशा दीजिए,
जाकर कहीं एवरेस्ट पर,
एक कमरा लीजिए.
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भूख लगती है उसे तो,
दूध से नहलाइए,
एक कतरा मुँह न जाए,
अच्छी तरह धमकाइए.
.......................................

बालकों ने गर उधम की,
इसकी सजा उनको मिले,
मत भिड़ो के है मुसीबत,
ये लूटते हैं काफिले.
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घिस रहा हूँ मैं कलम,
कोइ तलवे घिस रहा,
रगड़ ली है नाक उसने,
खूँ न फिर भी रिस रहा.
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साल भर हम सो रहे थे,
एक दिन के वास्ते,
जागते ही ली जम्हाई,
और फिर हम सो गए.
.........................................

6 टिप्पणियाँ:

घिस रहा हूँ मैं कलम,
कोइ तलवे घिस रहा,
रगड़ ली है नाक उसने,
खूँ न फिर भी रिस रहा.
कमाल की शैली है, और सोच भी। मंत्रमुग्ध हो गया। कुछ-कुछ कबीर की उलट बांसी की याद हो आई।

साल भर हम सो रहे थे,
एक दिन के वास्ते,
जागते ही ली जम्हाई,
और फिर हम सो गए.

ये तो बता देते की वो दिन कौन सा था , काही वही तो नहीं जो 3 दिन बाद आने वाला है .......

हा हा हा हा

नोट : कृपया इस मंच पर लिखे , किसी प्रकार का लिंक न दे और यदि देना ही चाहे तो अपनी पोस्ट के अंत मे या अपनी पोस्ट मे ही कही पर दे ......... धन्यवाद

नोट : कृपया हास्य व्यंग शैली के ही लेख लिखे और इस मंच की स्थापना को सफल बनाए ......... धन्यवाद

बहुत ही बढ़िया लिखा है

सर्व श्री गजेंद्र सिंह जी, बिग बॉस,रामपुरी सम्राट श्री रामलाल जी एवं मनोज कुमार जी,

सबसे पहले आप सबको उचित टिप्पणियों के लिए धन्यवाद.

हास्य अपनी जगह पर और व्यंग अपनी जगह पर.अच्छा लगा टिप्पणी व्यंगात्मक भी रही.साल का वह दिन जिस दिन आप शपथ लेते हैं और बाद में भूल ही तो जाते हैं ... शपथ निभाने को... यहां उसे ही इंगित करने की कोशिश का गई है.

कोई बात नहीं तींन दिन बाद फिर शपथ ले लेंगे कि फिर साल भर सो जाएंगे. वह भी तो अपना ही दिन है.

आपकी यह टिप्पणियाँ ही मुझे प्रेरित करेंगी. कृपया जारी रखें.

आभार,

एम. आर. अयंगर.

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