मंच पर सक्रिय योगदान न करने वाले सदस्यो की सदस्यता समाप्त कर दी गयी है, यदि कोई मंच पर सदस्यता के लिए दोबारा आवेदन करता है तो उनकी सदस्यता पर तभी विचार किया जाएगा जब वे मंच पर सक्रियता बनाए रखेंगे ...... धन्यवाद   -  रामलाल ब्लॉग व्यस्थापक

हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।

शनिवार, 30 जुलाई 2011

नेता की औलाद और नाम है ..........


होली के दिन जनमा
एक नेता का बेटा,
मुसीबत बन गया
चैन से नहीं लेटा ?


पैदा होते ही
कमाल कर गया,
उठा, बैठा और
नेता की कुर्सी पर चढ़ गया !

यह देख डॉक्टर घबराई,
बोली – ये तो अजूबा है !
इसके सामने तो
साइंस भी झूठा है !!
इसे पकड़ो और लिटाओ
दुधमुंहा शिशु है, माँ का दूध पिलाओ ।

दूध की बात सुनकर
शिशु ने फुर्ती दिखाई,
पास खड़ी नर्स की
पकड़ी कलाई
बोला – आज तो होली है,
ये कब काम आएगी,
काजू-बादाम की भंग
अपने हाथों से पिलाएगी ।

नेता और डॉक्टर के
समझाने पर भी वह नहीं माना,
चींख-चींखकर अस्पताल सिर पर उठाया,
और गाने लगा ‘शीला’ का गाना !


उसके बचपने में
‘शीला की ज़वानी’ छा गई,
‘मुन्नी बदनाम न हो
इसलिए नर्स भंग की रिश्वत लेकर आ गई !

शिशु को भंग पीता देख
नेताजी घबराये और बोले -
‘तुम कौन हो और
क्यों कर रहे हो अत्याचार ?’
शिशु बोला – तुम्हारी ही औलाद हूँ
और नाम है भ्रष्टाचार

कवि : श्री राकेश "सोहम"

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

क्योकि मै ............ हूं


संता ग्राउंड पर लडकों को इधर उधर दौडते हूए और बॉल के साथ

खेलते हूए देख रहा था

तभी संता ध्यान एक तरफ अकेले खडे बच्चे की तरफ गया।

उसने उस लडके के पास जाकर पूछा,

" सब ठीक तो है ना?'

'हां ' उस लडके ने जवाब दिया.

' फिर तुम उधर जाकर उन लडकों के साथ क्यो नही खेलते हो ?' संता ने पूछा

' नही मै उधर नही जाऊंगा... मै इधर ही ठीक हूं ' उस लडके ने जवाब दिया

' लेकिन क्यों ?'' संता ने पूछा.

लडके ने चिढकर उत्तर दिया- ' क्योकि मै गोल किपर हूं '

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

सावन के हिंडोले में बयानबम

कांग्रेस महासचिव के बयानों को सुनकर कांग्रेस के दिग्‍गज हैरान-परेशान नहीं हैं बल्कि वे सोच रहे हैं कि इसका कैसे पार्टी के हित में बेहतर इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इस बारे में फैसला करने के लिए गुप्‍त बैठकें, सुप्‍त समय में की जा रही हैं। इन महाशय की ख्‍याति आजकल बयानबम के तौर पर हो गई है। बम जो दूसरों के फोड़ने पर फटता है, खुद से तो खुद का फोड़ा नहीं फोड़ा जाता है, उसके लिए भी डॉक्‍टर की बाट जोहते हैं। दर्द जानबूझकर कोई नहीं सींचता है, क्‍योंकि इससे दर्द की आहों में भी दर्द की अभिव्‍यक्ति होने लगती है। दर्द तब तक ही अच्‍छा लगता है जब तक दूसरे के हो रहा हो। बम भी तब तक ही भाता है, जब तक फूटता नहीं है या फूटता भी है तो उससे नुकसान सामने वाले को होता है। पर वो सामने वाला ही होना चाहिए, सामने वाली नहीं। सामने वाली के प्रति तो सबके मन में विनम्र भाव ही रहता है। विनम्र भाव तो पड़ोस वाली के साथ भी पूरा रहता है।
बयानबम की खासियत है कि धमाका भी हो जाता है, सुर्खियां भी मिल जाती हैं, फोटू भी छप जाती है, निंदा भी होती है, इस निंदा से बहुतेरों की तो निद्रा खुल जाती है। कई बार निद्रा आती ही नहीं है। बयान को बम बनाने वालों और निद्रा का तो सदा से बैर रहा है। निद्रा आ गई तो बयान का बम नहीं बनेगा या बनेगा भी देर से बनेगा। यहां पर देर आयद दुरुस्‍त आयद का सिद्धांत लाभकारी नहीं होता है। यहां पर तो समय से पहले या बिल्‍कुल समय पर ब्‍यान का फटना जरूरी है। उसके लिए बम बनने के उपयुक्‍त पात्र की तलाश करनी होती है। कौन बयान का बकरा बनेगा, जो शहीद होने को तैयार हो। यहां पर तो अनेक तैयार हो जाते हैं।
बयानबम जारी करने से पहले थोड़ी सी सुरक्षा ही तो कड़ी करनी होती है, या खुद ही हाथापाई के लिए तैयार रहो।  वो खर्च सरकार का और चर्चा का लाभ पार्टी को। बाबा भी बयानबम बनने से बच नहीं पाए हैं। इसका लाभ बाबा को मिलता है या बाबा के प्रशंसकों को, इस बारे में अभी नतीजे सामने नहीं आए हैं। बयानबम से खुद की तो फजीहत होती ही है। ब्‍यान क्‍योंकि बम है, उस बम को उगलना पड़ता है। दिमाग का इसमें इस्‍तेमाल वर्जित बतलाया गया है। वैसे इस पर बददिमाग या बेदिमाग वालों का कब्‍जा रहता है। इसका फायदा उठाने के लिए बेसिर, पैर की कल्‍पनाएं करनी होती हैं, अपनी बुद्धि को इस मुगालते में रखना पड़ता है कि मान लो आज होली है और भी अधिक लाभ लेने के लिए आज मूर्ख दिवस है और मुझे मूर्ख दिवस पर सर्वाधिक मूर्खता प्रदर्शित करनी है।
पहले बयानबम के बहुत फायदे हुआ करते थे, बम फोड़ा और मुकर गए। परंतु आजकल सीसीटीवी, कैमरे, लाइव प्रसारण के कारण कहे से मुकरना पॉसीबल नहीं होता है। पहले ऐसे जोखिम नहीं थे, तब कह दिया जाता था कि मैंने तो ऐसा नहीं कहा था। अब कहते हैं कि मेरा ऐसा करने का आशय वो नहीं है, जो आप समझ रहे हैं। मतलब आप नासमझ हैं, लेकिन यह तो बिना कहे ही समझ में आ जाता है।
नेता थोड़ा और बेशर्म हो जाए तो कुछ भी सफाई देने की जरूरत नहीं है। पार्टी खुद ही भुगतती रहेगी। करे कोई और भरे कोई और उसमें डूबकर मरे कोई तीसरा।  मतलब कत्‍ल करे राम लाल, फांसी पाए श्‍याम लाल और दौड़ लगाए लोकपाल।  आजकल फांसी का तो मौसम ही नहीं है। कसाब का किस्‍सा सब जानते हैं। सभी इलीजिबिलिटी के होते हुए भी उसे फांसी नहीं, जो जिसको मिलना चाहिए, वो उसको नहीं देंगे। उसके बदले उसे घनघोर सुरक्षा और प्रदान कर देंगे। इसे ही गंदी राजनीति या राजनीति को खेल बनाना कहा गया है। यह कानूनों का मजाक बनाना भी है।
सावन आया है और दिग्‍गी झूल रहे हैं अपने बयानों के झूले में। अब झूले बयान ही हैं। बयान दे दिया है, सावन है झूलते रहिए। जीभ का रंग काला है, इसका विवेचन करते रहिए, इसलिए तो ब्‍लैक झंडे, संडे को दिखलाए गए, सियासत की रोटियां खूब सेकी जा रही हैं जिससे वे भी जलकर काली हो जाएं।

बुधवार, 20 जुलाई 2011

श्री मोबाईल नारायण व्रत कथा ।

श्री मोबाईल नारायण व्रत कथा ।


(courtesy-Google images)


॥ श्री नारद उवाच ॥

" मर्त्यलोके जनाः सर्वे नाना क्लेश समन्विताः ।
  नाना योनि समुत्पन्नाः पच्यन्ते पाप कर्मभिः॥११॥"

" हे प्रभो, मनुष्य लोक में सभी मानव विविध योनि में उत्पन्न हो कर, नाना प्रकार के दुखों से लिप्त हो कर, अपने पाप कर्मों से पीड़ित है । उनके यह दुःख कौन से नाना उपाय द्वारा शांत हो सकते हैं? मुझे कृपया बताएं, मैं वह सब श्रवण करना चाहता हूँ । "

॥ श्री भगवान उवाच ॥

" साधु पृष्टं त्वया वत्स लोकानुग्रहकांक्षाया ।
संत्कृत्वा मुच्यते मोहात तच्छृणुष्व वदामि ते ॥१३॥"

" हे वत्स, मनुष्य के हित की इच्छा से आपने मुझे सही बात जानना चाही है; जिसको करने से मनुष्य मोहमाया से मुक्त होता है,बह मैं आप को बताता हूँ सुनें ।"

(प्रथमोध्याय -श्रीसत्यनाराणय व्रत कथा)

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हे प्रिय वत्स, (दोस्त)

आज के घोर कलयुग में, संसार के सारे दुखों से मुक्ति दिलानेवाली, श्री मोबाईल नारायण व्रत कथा ही है । यह कथा को विधि पूर्वक करने से मनुष्य तत्काल  पृथ्वी लोक पर सर्वे सुख भोग कर, तमाम दुःख से आजीवन मोक्ष प्राप्त करता है । आज मैं भी, आपको यह व्रत कथा सुनाता हूँ वह आप सर्वे इसे  ध्यान से श्रवण करें ।

श्री मोबाईल नारायण प्रित कथा;अध्याय-प्रथम ।

आज होली-धूलेटी के इस पावन महा पर्व के दिन, संसार का कोई भी मानव पूर्ण श्रद्धा एवं प्रितीभाव मन में धारण कर, भगवान श्री मोबाईल नारायण की (खरीददारी) पूजा कर सकता है । कलयुग में, इस मनुष्य लोक में, अनेक दुखों से मुक्ति पाने के लिए, यह सबसे सरल और श्रेष्ठ उपाय है ।

ईतिश्री सेटेलाईट पुराने रेवा खंडे श्री मोबाईल नारायण कथायां प्रथमोડध्यायः संपूर्ण ।

बोले, श्री मोबाईल नारायण भगवान की....ई..ई..जय..अ.अ,,!!

( सभी भक्त गण अपने-अपने लोटे (पात्र) के उपर अपना चम्मच टकराएं, अगर पास लोटा या चम्मच न हो तो, अपने मोबाईल में कोई `शीला की जवानी` का रिंग टोन बजाएं ।

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श्री मोबाईल नारायण प्रित कथा अध्याय-द्वितीय ।

निर्धन प्रेमोच्छुक कॉलेजियन प्रेमी और एक मासूम, सुंदर  कन्या को प्राप्त हुए पून्य फल की कथा ।

॥ लेखक उवाच ॥

हे वत्स, संसार में, जिसने श्री मोबाईल नारायण  का व्रत सब से पहले किया था वह कथा मैं आपको सुना रहा हूँ ।

भारत की पून्य भूमि पर एक निर्धन कोलेजियन प्रेमी युवक, धरती पर  एक मासूम कन्या के विरह में सुधबुध खो कर, भ्रमित हो कर, इधर-उधर की ख़ाक छान रहा था । उसे इस तरह अत्यंत दुःखी  पाकर, भगवान श्री कामदेवजी ने अत्यंत प्यारभरे स्वर में, उस प्रेमी से प्रश्न किया," हे प्रेमीओं की जाति में श्रेष्ठ । आप अत्यंत दुःखी क्यों है? यह मैं जानना चाहता हूँ इसलिए मुझे विस्तार से बताइए ।"

॥ प्रेमी उवाच ॥

" हे श्री कामदेव प्रभु, मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती हुई एक मासूम सुंदर कन्या के विरह से पीड़ित ऐसा में एक प्रेमी हूँ । अगर आप मेरा यह दुःख दूर करने योग्य कोई सरल उपाय जानते हैं तो कृपा करके मुझे बताएँ।

प्रेमी युवक की आर्द्रतापूर्ण वाणी से द्रवित होकर, श्री कामदेव जी ने अपने चिर परिचित मंद-मंद मुस्कान बिखेरते  हुए  अंदाज़ में, यह प्रेमी को भगवान श्री मोबाईल नारायण नामक देव की मूर्ति को अपने हाथों से अर्पण किया । यह नवयुवक को भगवान श्री कामदेवजी ने बताया की, अभी-अभी थोडी देर पहले ही, वही मासूम सुंदर कन्या को भी, भगवान श्री मोबाईल नारायण की ऐसी ही एक प्रतिकृति उन्होंने अर्पण की है । इतना कहकर भगवान श्री कामदेव जीने उस मासूम सुंदर कन्या के श्री मोबाईल नारायण से संपर्क करने के सारे विधि-विधान से, विरही प्रेमी को अवगत कराया और अनंत-असीम प्रेम का अहसास कराने विरही प्रेमी के शरीर में प्रवेश कर, अंतर्ध्यान हो गये ।

" श्री कामदेव भगवान ने, भगवान श्री मोबाईल नारायण का जो व्रत करने के लिए, मुझे विधि समझाया है, वह मैं  श्रद्धा पूर्वक ज़रूर करुंगा ।" यह सोचते हुए, विरही कॉलेजियन प्रेमी को सारी रात नींद भी  न  आ पाई ।

दूसरे दिन, प्रातःकाल में, जाग कर नवयुवक ने," आज मैं श्री मोबाईल नारायण का व्रत ज़रूर रखूंगा ।" मन में ऐसा संकल्प धर कर भगवान श्री कामदेवजी का सच्चे हृदय से स्मरण करके, विधि विधान अनुसार अपने श्री मोबाईल नारायण से, वह मासूम सुंदर कॉलेज कन्या के श्री मोबाईल नारायण से संपर्क किया ।

भगवान श्रीकामदेवजी के दर्शाए विधि विधान को सफलतापूर्वक ढंग से करने के कारण, व्रत के विधि अनुसार, व्रत पूर्णता के बाद, दो घंटे पश्चात, कॉलेज के पास की एक महंगी रेस्त्रां में दोनों प्रेमी पंखी  आमने सामने, व्रत कथा का `महा-प्रसाद` ग्रहण करने  हेतु, मॅक्सिकन-थाई फूड का ऑर्डर देकर साथ-साथ बैठे हुए थे ।

( " बोले, श्री मो..बा..ई..!!," अरे भाई साहब, ठहरिए, ज़रा ठहरिए.....अभी देर है ।  ज्यादा जोश  दिखाएँगे तो श्री मोबाईल नारायण रूठ जायेंगे ..!!)

श्री मोबाईल नारायण की इस पवित्र व्रत कथा अनुसार, वह निर्धन (कड़का-लुख्खा ) प्रेमी के पास, अपने से भी ज्यादा महँगा और स्टाईलिश श्री मोबाईल नारायण को देखकर, उस मासूम सुंदर कॉलेज कन्या ने, विरह में तड़पते हुए उस सच्चे प्रेमी युवक को, हर रोज़ के तिरस्कार भाव से विपरित, बहुत ज्यादा प्रेम-भाव व्यक्त किया ।  कालक्रम के बदलते ही, वह प्रेमी नवयुवक ने विरह के दुःख से मुक्त हो कर अपने मनवांच्छित प्यार को पा लिया  ।

भगवान श्री कामदेव जी द्वारा बताए गए यह व्रत को  इस के पश्चात उन दोनों प्रेमीओं ने, प्रति माह श्री मोबाईल नारायण की नई प्रतिकृति खरीद कर, श्री मोबाईल नारायण का व्रत विधि पूर्वक बार-बार, प्रति माह कर के, वह मासूम कन्या और नवयुवक ने, प्रति मास अलग-अलग नया प्रेमी और प्रेमिका को पा कर अंत में इन्होंने संसार के सर्वे सुख को(?) ( ग़लत मत सोचें..!!) प्राप्त किया ।

भगवान श्री मोबाईल नारायण के इस पावन व्रत को, प्रति मास विधि पूर्वक करने फलस्वरूप, अपने निर्धन मित्र को अचानक नयी बार-बार नवीन प्रेमिका और नये प्रेमी के साथ कॉलेज में प्रसन्न होते देखकर, समग्र (HE-SHE) मित्र गणने भी यह पावन व्रत करने का मन में निर्धार किया और सभी यह पृथ्वी लोक में नाना प्रकार के प्रेम नामक मनवांच्छित सुख के अधिकारी बने ।

ईतिश्री सेटेलाईटपुराणे रेवाखंडे श्रीमोबाईलपारायण कथायां द्वितियोध्यायः संपूर्ण।

(ए..भाईसाहब..!! ए..सुनिए..ना; अब आप ज़ोर से बोल सकते हैं..!!)

बोले, श्री मोबाईल नारायण भगवान की....ई..ई..जय..अ.अ,,!!

( सभी भक्त गण अपने-अपने लोटे (पात्र) के उपर अपना चम्मच टकराएं, अगर पास लोटा या चम्मच न हो तो, अपने मोबाईल में कोई `मुन्नी बदनाम हुई` का रिंग टोन बजाएं ।)

 हे परम सुखी प्रेमी जन, यह पावन कथा में किए गये वर्णन  अनुसार, प्रति मास, पुराने श्री मोबाईल नारायण की, मोह माया से मुक्त होने हेतु, कथा पूर्ण होने के पश्चात व्रत कथा का महा-प्रसाद ग्रहण करना अति आवश्यक  है । ऐसा न करने से, भगवान श्री मोबाईल नारायण दुःखी होकर रूठ जाते हैं तथा बार-बार नेटवर्क की समस्या खड़ी करने लगते हैं ।

आज की इस पावन कथा में, उन सभी मासूम सुंदर कन्याओं के, पहलवान, कुस्तीबाज, पिता-मामा-चाचा- भाई यहाँ अभी-अभी उपस्थित हुए हैं । यह कथा समापन का महा-प्रसाद (ही..ही..ही..!!) वितरण विधि उन्हीं के कर कमल से संपन्न होना है, कृपया आप कहीं मत जाईएगा, कुछ समजे..ए..ए..ए.ए..!!

मासूम सुंदर कन्याओं के, पहलवान, कुस्तीबाज, पिता-मामा-चाचा- भाई के करकमलों से प्राप्त महा-प्रसाद आपको ज्यादा गर्म लगता हो तो, ग़म गलत करने के लिए, सॉरी मुँह की जलन-गर्मी गलत करने के लिए, रास्ते में कहीं अपना बाईक खड़ा रखकर, आप फटाफट ठंडाई या भांग पी सकते हैं ।

बोले, श्री मोबाईल नारायण भगवान की....ई..ई..जय..अ.अ,,!!

( सभी भक्त गण अपने-अपने लोटे (पात्र) के उपर अपना चम्मच टकराएं, अगर पास लोटा या चम्मच न हो तो, अपने मोबाईल में कोई `हूड दबंग-दबंग-हुड-हुड-हूड, दबंग-दबंग-दबंग` का रिंग टोन बजाएं ।

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प्यारे युवा प्रेमी दोस्तों, वैसे तो, यह व्रत कथा, सब को अपनी-अपनी क्षमता अनुसार, महा प्रसाद प्राप्ति के बाद पूर्ण होनी है । सिर्फ भगवान श्री कामदेवजी की `आरती` करना ही बाकी है, सभी भक्त अपने-अपने जूते-बूट-चप्पल, दोनों हाथों में ग्रहण करें और रोनी सी  सूरत बना कर, ऊँचे सुर में, ज़ोर से  चिल्लाती हुई आवाज़ में, `जय  कामदेव-जय कामदेव`` आरती में कृपया हमें साथ दें ।

श्री मोबाईल नारायण व्रत कथा आरती..!!

" समरुं रिलायंस, टाटा, प्रेमे  डो..को..मा (२)

  मनवांच्छित,वर देते,सब को मोबाईल देवा.

जय..कामदेव..!!

१. सुंदर-स्लीम स्वरूप, मन मोहक देवा..(२)

 सत्य-असत्य कथनसे, होती तम सेवा.

जय..कामदेव..!!

२. उल्का मुख गीरता, प्रेमी जन देवा (२)

नित नये कर सोहे, भजते हैं काम देवा.

जय..कामदेव..!!

(अस्तु, अस्तु, अस्तु, भगवान श्री मोबाईल नारायण की स्तुतिमें श्रीकामदेवजी की ये आरती के आगे के बाकी सारे अंतरे आप विद्वान पाठक मित्र खुद ही लिख लेना । मेरा कंठ-आकंठ दर्द से भर जाने की वजह से, क्षमा करना,  अब आगे मैं  गा नही पाउंगा ।)

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MARKAND DAVE PRESENTS,

"SHRI KRISHNA SHARANAM MAMH PART- 1 TO 9"





मार्कण्ड दवे । दिनांक; २० -२ -२०११.

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

सरकारी ठेकेदार का हिसाब-किताब !


तीन ठेकेदार एक पुलिया की मरम्मत के ठेके के लिए बोली लगाने पहुंचे।
अधिकारी उन्हें उस
पुलिया पर ले गया जिसकी मरम्मत होनी थी।

पहले ठेकेदार ने जेब से फीता निकाला, कुछ नापतौल की, कैलकुलेटर पर कुछ हिसाब लगाया और बोला – मैं इस काम को 90000 रूपए में कर दूंगा। 40000 सामग्री के लिए, 40000 मजदूरों के लिए और 10000 मेरे लिए।

दूसरे ठेकेदार ने भी नाप तौल की, कुछ यही हिसाब लगाया और बोला – 70000 रूपए। ३0000 सामग्री के लिए और ३0000 मजदूरी के। बाकी 10000 मेरे

तीसरे ठेकेदार ने न नापतौल की न हिसाब लगाया। अधिकारी के कान के पास मुंह ले जाकर कहा – 270000 रूपए।

अधिकारी बोला – देख नहीं रहे। दूसरा 70000 में करने को तैयार है ।
कुछ नापतौल तो करो, हिसाब तो लगाओ तब बोलो।

तीसरा ठेकेदार फिर उसके कान में फुसफुसाया –
पूरी बात तो सुनिए …… ।
एक लाख मेरे, एक लाख आपके और 70000 दूसरे वाले ठेकेदार के लिए जो यह काम करके देगा।

और ठेका तीसरे ठेकेदार को दे दिया गया...।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

इतिहास की परीक्षा



इतिहास परीक्षा थी उस दिन, चिंता से हृदय धड़कता था |
थे बुरे शकुन घर से चलते ही, दाँया हाथ फड़कता था ||

मैंने सवाल जो याद किए, वे केवल आधे याद हुए
उनमें से भी कुछ स्कूल तकल, आते-आते बर्बाद हुए

तुम बीस मिनट हो लेट द्वार पर चपरासी ने बतलाया
मैं मेल-ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया

पर्चा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें मूंदीं टुक झूम गया
पढ़ते ही छाया अंधकार, चक्कर आया सिर घूम गया

उसमें आए थे वे सवाल जिनमें मैं गोल रहा करता
पूछे थे वे ही पाठ जिन्हें पढ़ डाँवाडोल रहा करता

यह सौ नंबर का पर्चा है, मुझको दो की भी आस नहीं
चाहे सारी दुनिय पलटे पर मैं हो सकता पास नहीं

ओ! प्रश्न-पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम
तू लिख दे तेरी जो मर्ज़ी, ये पर्चा है या एटम-बम

तूने पूछे वे ही सवाल, जो-जो थे मैंने रटे नहीं
जिन हाथों ने ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं

फिर ऑंख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे
मेरे दिमाग़ में इन प्रश्नों के उत्तर ठूँस-ठूँस भर दे

मेरा भविष्य है ख़तरे में, मैं भूल रहा हूँ ऑंय-बाँय
तुम करते हो भगवान सदा, संकट में भक्तों की सहाय

जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था
जब द्रुपद-सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था

द्रौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम
मैं विष खाकर मर जाऊंगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम

आकाश चीरकर अंबर से, आई गहरी आवाज़ एक
रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू ऑंख खोलकर इधर देख

गीता कहती है कर्म करो, चिंता मत फल की किया करो
मन में आए जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो

मेरे अंतर के पाट खुले, पर्चे पर क़लम चली चंचल
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल

मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युध्द भर सावन में
जापान-जर्मनी बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में

लिख दिया महात्मा बुध्द महात्मा गांधी जी के चेले थे
गांधी जी के संग बचपन में ऑंख-मिचौली खेले थे

राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था
अकबर ने हिंद महासागर, अमरीका से मंगवाया था

महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था
औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था

इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे
जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे

हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख
बोला- इन सारे छात्रों में, बस होनहार है यही एक

औरों के पर्चे फेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए |
जीरो नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए  ||

-  Om Prakash Aditya



गुरुवार, 7 जुलाई 2011

घोडे का फोन और नाराज बीवी ?


एक आदमी पेपर पढ रहा था जब उसके बीवी ने उसके सर में फ्राईंग पॅनसे मारा।

'' यह किसलिए '' उस आदमी ने पुछा.

ने जवाब दिया, '' वह तुम्हारी पॅंन्ट की जेब से एक कागज का टुकड़ा मिला उस पर 'जेनी' ऐसा

लिखा हूआ था इसलिए। ''

'' अरे पिछले हफ्ते मै रेसकोर्स गया था और जिस घोडे पर मैने पैसे लगाए थे उसका नाम 'जेनी' था ''

उस आदमी ने सफाई दी.

उसके बीवी ने उससे माफी मांगी और वह काम करने के लिए घर के अंदर चली गई.

तीन दिन बाद वह आदमी टीवी देख रहा था जब उसके बिवी ने और एक बडे फ्राईंग

पॅन से उसके सर में जोर से


मारा इतने जोर से की वह बेहोश हो गया.

जब उस आदमी को होश आया उसने पुछा, '' अब यह किसलिए मारा ''

'' कल तुम्हारे घोडे का फोन आया था इसलिए '' उसके बीवी ने जवाब दिया

सोमवार, 4 जुलाई 2011

आधुनिक बोधकथाएँ-६. दिलचस्प साक्षात्कार ।


आधुनिक बोधकथाएँ-६.  
दिलचस्प साक्षात्कार ।
सौजन्य-गूगल।


(म्यूज़िक- ढें..टें..ने..ण..!!)

आर.जे.(रॅडियो जॉकी।),"  प्यारे दोस्तों, आज हमारे बीच उपस्थित है, `पुरुष-प्रधान विवाह-विचारधारा` के कट्टर विरोधी, आजीवन कुँवारी, अखिल भारतीय विवाह विरोधी संगठन की एकमात्र ऍक्टिविस्ट बहन सुश्री......!!...........,बहन जी, हमारे, `४२० F.M. रेडियो स्टेशन` पर आपका दिल से स्वागत है ।"

बहन, " धन्यवाद ।"

R.J.-" अच्छा आप पहले ये बताइए कि,आप के `विवाह विरोधी संगठन` में, आज की डेट में, कितने सदस्य है?"

बहन,(ऊँगलियां गिनते हुए..!!),"ट्रेड सिक्रेट, नो कमेन्ट्स..!!"

R.J.-" दूसरा सवाल, आपकी  पति-विरोधी नज़र से, किसी विवाहित नारी के जीवन में,अपने पति की क्या क़ीमत होनी चाहिए?"

बहन," ZERO-शून्य-कुछ भी नहीं..!! सारे पति देव उल्लु जैसे ही बुद्धिहीन होते हैं, इसीलिए तो मैं, हरेक नारी को शादी करने से पहले सौ बार सोचने की सलाह देती हूँ । नारी मुक्ति ज़ि..दा..बा..द..!!"

R.J. (चिढ़ते हुए )-" क्यों..!! आप किस आधार पर,  `उल्लु` का उप-नाम देकर, सारे पुरूष पर  इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा रही है?"

बहन," सीधी सी बात है..!! पूरा दिन पत्नी की दुनियाभर की बुराईयाँ करने वाले पति देव को, रात ढलते ही, घने अंधेरे में भी, अपनी पत्नी में,`उल्लु की भाँति`, दुनियाभर के सद्गुण, नज़र आने लगते हैं?"

R.J.-" पर बहन जी, पत्नी पर भी, ऐसे आरोप लगते ही हैं कि,पति बेचारा पूरा दिन मेहनत करके रुपया कमाता है और पत्नी, शॉपिंग के बहाने, शॉपिंग-मोल में जाकर, उसे  फ़िजूल-खर्च कर देती है?"

बहन," फ़िजूल चीज़ो का शॉपिंग करना, सभी पत्नीओं का जन्मसिद्ध अधिकार है, उस पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता..!!"

R.J.-"ठीक है, अगला प्रश्न । विवाह-विरोधी संगठन गठित करने की प्रेरणा,आप को  कहाँ से मिली?"

बहन," मेरे घर में, मेरी माता जी से..!!"

R.J.-" आप की माता जी, शादीशुदा थीं?

बहन,(गुस्सा होकर)" कौन से शास्त्र में लिखा है, एक स्त्री ग़लती करें तो, दूसरी स्त्री को भी, उस ग़लती को दोहराना चाहिए?" 

R.J.-" समझ गया..!! अच्छा बहन, आप के किसी प्रशंसक पुरूष का कॉल है, क्या आप उनके प्रश्न का जवाब देना चाहेंगी? महाशय, ज़रा आपका नाम और प्रश्न बतायेंगे?"

कॉलर पुरूष," मेरा नाम.....है । मैं आपका एक्स प्रेमी हूँ और आज भी आपसे बहुत प्रेम करता हूँ, मुझे पहचाना? मैं,....करोड़पति श्री....., का इकलौता बेटा? आपके साथ कॉलेज में? बहुत साल पहले ? मैंने आपको, एक प्रेम पत्र भेजा था..!! मैंने अभी तक शादी नहीं की..!! क्या  आप मुझ से लीव-इन-रिलेशनशिप बनाएगी?"

बहन," अ...बे, सा..आ..ल्ले..!! इतने साल,  मुझे छोड़ कर, कहाँ ग़ायब हो गया था?  मैं तुमसे, अभी और इसी वक़्त मिलना चाहती हूँ..!! इस वक़्त तुम कहाँ हो?"

कॉलर," डार्लिंग,मैं इस वक़्त, तेरा रेडियो प्रोग्राम ख़त्म होने की प्रतीक्षा में, रेडियो स्टेशन के बाहर ही खड़ा  हूँ..!!"

बहन," य..स, य..स, स्टे धेर, आय एम जस्ट कमिंग..!! मैं तुम से अभी, इसी वक़्त, शादी करना चाहती हूँ..!!"

R.J.-(हैरानगी जताते हुए)" पर, बहन जी, अपने आज के इस रोचक साक्षात्कार का क्या होगा? और फिर आप के विवाह विरोधी आंदोलन का क्या होगा? आप के उकसाने पर, आप के संगठन से जुड़ी हुई, बाकी महिला सदस्यों का भविष्य क्या होगा?"

बहन," नॉ कमेन्ट्स..!! ये ले तेरा माइक..!! मैं तो चली, मेरे डार्लिंग के पास..!! बा..य,बा..य?"

आधुनिक बोध-   अपने किसी निर्णय पर, बहने, सदा अटल रहती है, ऐसा मानने की भूल, किसी पुरूष को हरगिज़ नहीं करनी चाहिए..!!



मार्कण्ड दवे । दिनांक-०४-०७-२०११.

"अप्रेल फूल, अप्रेल फूल।"

एक दिन
घर पर हमारे
मच गया हंगामा
कहने लगी बच्चो की माँ-

"रखना याद

दस दिन बाद
यानी एक अप्रेल को
अपनी वर्षगांठ मनाऊँगी

मिठाई बाज़ार से आएगी

नमकीन घर में बनाऊँगी
और सुनो!

हमारे भैया को दे दो तार

वे चार दिन पहले आएँ
भाभी व अम्मा को साथ लाएँ
सुख-दुख में
अपने ही साथ न देंगे
तो घर गृहस्थी के काम कैसे चलेंगे

पप्पू की बुआ को

एक दिन पहले पत्र डालना
और लिखना-

"अकस्मात

कल रात
वर्षगांठ मनाने की बात
हो गई है
तुम न आ सकोगी
इस बात का दुख है

तुम्ही सोचो!

उनको बुलाकर भी क्या करोगे
इस दड़बे में
किस-किस को भरोगे
वे आएँगी
तो बच्चो को भी लाएँगी

और सुनो,


एडवांस की अर्ज़ी दे आना


लोगों का क्या है

कहते है-"दारू पीता है।
मगर लेडीज़ कपड़े तो गज़ब के सीता है
पचास बरस की बुढ़िया
दिखने लगती है गुड़िया

अब तक खूब बनी

आगे नहीं बनूंगी
साड़ी और ब्लउज़ नहीं पहनूंगी
युग बदल गया है
फैशन चल गया है

तंग सलवार हो

रंग व्हाईट हो
स्लीवलैस कुर्ता हो
नीचा और टाइट हो

चोटियो का रिवाज़ भी हो गया पुराना

आजकल है जूड़ो का ज़माना
बाज़ार में बिकते है
नक़ली भी असली दिखते है

एक तुम भी ले आना

तैयार ना मिले तो आर्डर दे आना
कपड़े बच्चो के लिए सिलेंगे
वर्ना पुराने कपड़ो में
अपने नहीं, पराए दिखेंगे।"

हम चुपचाप सुन रहे थे
चूल्हे में पड़े भुट्टो की तरह भुन रहे थे
तड़तड़ाकर बोले-

"क्या कहती हो

इक उम्र में हरकत
अज़ब करती हो
अरे, वर्षगांठ मनानी है
तो बच्चो की मनाओ
अपने आप का तमाशा न बनाओ

लोग मज़ाक उड़ाएंगे

तुम्हारा क्या बिगड़ेगा
मुझे चिढ़ाएंगे
मुझे ज्ञात है
सन छयालीस की बात है
तुम जन्मी थीं मार्च में
तुम्हारे बाप थे जेल में
और तुम वर्षगांठ मना रही हो अप्रेल में

फिर तंग कपड़ो में, उम्र

कच्ची नहीं हो जाती
नख़रे दिखाने से बुढ़िया
बच्ची नहीं हो जाती।"

वे बन्दूक से निकली गोली की तरह
छूटीं
वियतनाम पर
अमरीकी बम-सी फूटीं-

"तुम भी कोई आदमी हो

मेरा मज़ाक़ उड़ाते हो
अपनी ही औरत को
बुढ़िया बुलाते हो

अरे, औरो को देखो

शादी के बाद
डालकर हाथो में हाथ
मज़े से घूमती हैं
सड़को पर
बागों में
साइकल पर
तांगों में

मगर यहाँ

ऐसे भाग्य कहाँ
पड़ौस के गुप्ता जी के बच्चे हैं
मगर तुमसे अच्छे हैं

मज़ाल है जो कह दें

औरत से आधी बात
पलको पर बिठाये रहते हैं
दिन-रात

और एक तुम हो

जब देखो
मेरे मैके वालो की पगड़ी उछालते हो
सारी दुनिया में
तुम्हीं तो साख वाले हो
बड़ी नाक वाले हो
बाकी सब तो नकटे हैं

जब हमारे बाप जेल में थे

तो तुम वहीं थे न
जेलर तुम्ही थे न
नब्ज़ पहचानती हूँ
अच्छे, अच्छों की
खूब चुप रही, अब बताऊँगी
देखती हूँ कौन रोकता है

वर्षगांठ अप्रेल में

मनाऊँगी, मनाऊँगी
ज़रूर-ज़रूर मनाऊँगी।

हम तुरुप से कटे नहले की तरह
खड़े-खड़े कांप रहे थे
अपना पौरुष नाप रहे थे
अपनी शक्ती जान गए
वर्षगांठ मनाने की बात
चुपचाप मान गए

तार दे दिया पूना

सलहज, सास और साले
जान-पहचान वाले
लगा गए चूना

पांच सौ का माल उड़ा गए

हाथी चवन्नी का
दस पैसे का सुग्गा
अठन्नी का डमरू
पांच पैसे का फुग्गा
तोहफ़े में पकड़ा गए

उम्मीद थी अंगूठी की

अंगूठा दिखा गए
हमारी उनका पारा ही चढ़ा गए
बोलीं-

"भुक्खड़ हैं भुक्खड़

चने बेचते हैं
चने
ज़रा-सा मुंह छुआ
और दौड़ पड़े खाने
अरे, आदमी हो
तो एटीकेट जानें

अब हम भी उखड़ गए

आख़िर आदमी हैं
बिगड़ हए-

"कार्ड पप्पू ने छपवए थे

तुमने बंट्वाए थे।"

तभी मुन्ना हमारे हाथ का फ़ुग्गा ले गया

निमंत्रण-पत्र हाथों में दे गया

पढ़ते ही कार्ड

समझ में आ गई सारी बात

छपना चहिए था-"जन्म-दिवस है देवी का।"

मगर छप गया था-"बेबी का।"

दूसरे कमरे में

श्रीमती जी
पप्पू को पीट रहीं थीं
बेतहशा चीख़ रहीं थीं-
"स्कूल जाता है, स्कूल।"
बच्चे चिल्ला रहें थे-

"अप्रेल फूल, अप्रेल फूल।"

और चुन्नू डमरू बजाकर
मुन्नी को नचा रहा था

वर्षगांठ के लड्डू पचा रहा था।

लेखक : श्री शैल चतुर्वेदी साभार : कविता कोश

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

पठान का डंडा और मामला ठंडा

pathan उपदेश और नसीहतों के बीच कभी कभी थोडा हंस भी लेना चाहिए. 
किसी गाँव मैं एक साहब ने खुद के भगवान् होने का  का एलान कर दिया,कहने लगे कि वो भगवान् हैं. दूर दूर से लोग आते और उसको समझाते कि तुम ग़लत हो, दूर देश से धर्म के ज्ञानी बुलाये गए लेकिन वो मान ने को तैयार नहीं कि वो खुदा नहीं है.
वहीं गाँव मैं एक दुखी पठान रहता था . दुखी इस लिए कि उसका बेटा अभी कुछ दिनों पहले चल बसा था. उसने भी यह बात सुनी कि एक साहब ने भगवान् होने का  दावा कर दिया है. उस पठान ने कुछ सोंचा और अपनी लाठी हाथ मैं ले के उन साहब से मिलने गया.
वहां देखा लोग उसको समझा रहे हैं, पठान ने सब से कहा , मुझे भी एक मौक़ा दो इन भगवान् जी से मिलने का. सब मान गए. 
पठान ने पूछा तो आप खुद को भगवान् कहते हैं?
उन साहब का जवाब था हाँ.
पठान के डंडा ऊपर उठाया और कहा "तो तुम्ही हो जिसने मुझसे मेरा बेटा छीन लिया" 
इस से पहले कि पठान आगे बढ़ता उन साहब ने चिल्ला के कहा  नहीं भाई मैं ना तो भगवान् हूँ और ना ही मैंने तुम्हारा बेटा छीना है..

पावली की पदोन्नति । Part- 2.


पावली की पदोन्नति । 
Part- 2.
सौजन्य-गूगल ।

प्यारे दोस्तों, पार्ट-१ में आपने पढ़ा था..!!

" अ..हा..हा..हा..!! सन-१९६० में, एक दिन रास्ते पर किसी की खोई हुए, एक चवन्नी मुझे अनायास मिल गई और सभी घरवालों से छिपा कर, उस चवन्नी से, मैंने चार दिन तक, जो जल्से किए थे..!! अ..हा..हा..हा..!! आज भी उसे, याद कर के मेरा दिल गदगद हो उठता है..!!"

अब आगे पार्ट-२..!!

सन-१९६० की साल में, हमारे गाँव में, हमारी जाति के व्यापारी के अलावा, किसी दूसरे की दुकान से तैयार खाद्य सामग्री मँगवाना, हमारे परिवार में वर्ज्य था । इसे आप उस ज़माने की रूढिचूस्तता भी मान सकते हैं । 

ऐसे में , चार दिनों तक रास्ते से, मुफ़्त में मिली हुई, चवन्नी का छूटा करा कर चार दिन तक, एक-एक, दो-दो  पैसा खर्च करके, उस ज़माने के,`जंगली-हूण-अनार्य` लोगों की ख़ूराक माने गये खाद्य पदार्थ, जैसे कि, पाँव भाजी वाले  मीठे पाँव-बिस्किट-नानखटाई-चॉकलेट-जिनतान कंपनी की छोटी-छोटी मीठी  गोली  इत्यादि, ज़िंदगी में पहली बार चूपके से, बड़े ही चाव से चखे थे । 

मैं अगर सच कहूँ तो, उन चीज़ों का स्वाद, मेरे  दिल में कुछ इस हद तक,  घर कर गया है कि, स्वाद आज भी  वैसा  का  वैसा ही है..!! ठीक है, अपने खुद की मेहनत के कमाये रूपये से, ये सभी चीज़ें आज कल खा-पी रहे हैं, पर वह फूकट की चवन्नी जैसा स्वाद अब उनमें  कहाँ..!!

मेरा एक दोस्त, स्वर्ण कार का लड़का भी था । उसके पिता को मैं अक्सर पागल मानता था क्योंकि, इतनी मूल्यवान चवन्नीयों को, किसी धातु की पट्टी पर टांका लगाकर, लड़कियों के  सिर के बाल बाँधने के लिए वह बक्कल बनाते थे..!! 

शायद उनको पता न था कि, इतनी चवन्नीयों में, कितने सारे मीठे पाँव-बिस्किट-नानखटाई-चॉकलेट-जिनतान कंपनी की छोटी-छोटी मीठी  गोली  इत्यादि, खरीदे जा सकते थे?

हमें पाठशाला में, प्रारंभिक कक्षा की किताबों में पढ़ाया गया है कि, " किसान जगत का तात कहलाता है ।" पर, इस निकम्मी सरकार ने, सभी के परम पूज्य पिता  श्री किसान जी को पूछे बिना ही, चवन्नी रद्द कर दी? अब किसान उनके खेत में, `चार आना या सोलह आना`, कितने आना फ़सल पैदा हुई, ये कैसे बता पायेंगे?

चवन्नी रद्द होने से,एक और कठिनाई पैदा हुई है?समाज में जिन लोगों का, शारीरिक हिलना-डुलना शंकास्पद है, (गॅ टाइप?) उनके कई  उप-नामों  में  से,  एक  लोकप्रिय उप-नाम `चवन्नी छाप`को, उनकी सहमति लिए बिना, सूची से कम  कर देना, शर्मा जी के मत अनुसार ठीक बात नहीं है? 

हालाँकि, उस  वक़्त उम्र में, मैं  बिलकुल छोटा होने के कारण,` पावली छाप` उप-नाम का भावार्थ मेरी समझ से परे था..!! पर, एक दिन ऐसा वाक़या हुआ कि, मेरी समझ में कुछ-कुछ भावार्थ, अपने आप आ गया । 

हुआ यूँ  कि, हमारी गली में, खाते-पीते घर का, पहलवान टाइप का, करीब पंद्रह साल का, एक  लड़का, उसके  कुछ दोस्तों के साथ, गली  में  क्रिकेट खेल रहा था । उसने  हमें  डरा  कर, वहाँ से  भगाने  के  लिए, हमारी नन्ही वानर सेना में से, एक बच्चे को, धक्का दे कर ज़मीन पर गिरा दिया । 

पता नहीं, हमारी वानर सेना में, कैसे और कहाँ से, एकाएक  इतनी  ताक़त आ गई कि, सभी बच्चों ने मिलकर, उस पहलवान लड़के की टाँग खींच कर, उसे भी ज़मीन पर गिरा दिया और सब ने मिल कर उसे थोड़ा पिटा भी..!!

वैसे, उस लड़के की, ये पिटाई कांड के बाद, सभी बच्चों को डर लगा, अब ज़मीन से उठ कर, कहीं ये पहलवान, हम सब बच्चों की धुलाई शुरू न कर दें..!! 

पर हमारे आश्चर्य के बीच, हम से कई गुना बलवान, वो पहलवान ज़मीन पर लेटे-लेटे, रोते-रोते, उसकी मम्मी को, ज़ोर से आवाज़ दे कर सहायता के लिए बुलाने लगा..!! 

उस दिन से इस पहलवान को पछाड़ने का, गौरव महसूस करते हुए, सारे बच्चे, उस पहलवान को, `पावली-पावली` कहकर बुलाने लगे और मेरी समझ में कुछ-कुछ आ गया कि,जो बिना वजह किसी से भीड़ जाते हैं और फिर किसी के धक्का देने पर, ज़मीन पर गिर कर, रोते-बिलखते,सहायता के लिए अपनी मम्मी को बुलाते हैं, वे सब `पावली छाप` कहलाते होंगे?

मेरी समझ में यह भी आ गया कि, अपने दुश्मन को निर्बल समझ कर, अपनी क्षमता पर अति आत्मविश्वास जता कर जो लोग, बिना सोचे-समझे, किसी से भीड़ जाते हैं, वे सारे ज़मीन पर औंधे मुँह गिरते हैं और उन्हें अपनी, मम्मी-पापा-नानी याद आ जाते हैं..!! 

उस दिन के बाद, मैं तो कभी, किसी से आजतक भीड़ा नहीं  हूँ..!! 

पर हाँ, बिना सोचे-समझे, बाबा रामदेवजी सरकार से भीड़ गये? 

हाँ, भीड़ गये..!! 

बाबा जी के समर्थकों को आधी रात में खदेड़ने के कारण, सरकार  जनता से भीड़ गई?

 हाँ, बूरी तरह भीड़ गई..!!

अब, सोलह अगस्त से, जंतर-मंतर पर,आमरण अनशन पर  बैठ कर श्रीअण्णा हज़ारे जी, सरकार से भीड़ने वाले हैं? 

शायद..हाँ..,अब आगे-आगे देखिए होता है क्या? 

वैसे, हमारे शर्मा जी आज आध्यात्मिक प्रति भाव देने के मूड में है और मुझे अभी-अभी समझा रहे हैं कि," इन सारी बातों पर, आप क्यों व्यर्थ में, अपना खून जला रहे हैं, जो भीड़ता है, उन्हें भीड़ने दो ना? 

ये सब पहले से तय होता है । हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ है, जिनकी डोर उपर वाले के हाथ में हैं..!! 

और रही चवन्नी रद्द होने का मातम मनाने की? 

तो ये समझो कि, जिस प्रकार, हम अलग-अलग शरीर रूप धारण करते हैं मगर, सभी प्राणी में आत्मा एक ही है, उसी प्रकार, सिक्के का नाम, चवन्नी हो, अठन्नी हो या रुपया हो, क्या फर्क पड़ता है..!! उन सभी सिक्कों में  धातु  तो  एक जैसी  ही  है  ना? और फिर कोई इस दुनिया से चला जाता है, पर वह, अपने अच्छे-बूरे कर्मों से, हमेशा सब के दिल में बसा रहता है कि नहीं..!!

सच तो ये है कि,पावली कभी मरती नही, पावली मर सकती ही नहीं, बहुत जल्द ही, दूसरा रूप धारण करके, पावली हमारे दिल में...सॉरी जेब में, एक ना एक दिन जरूर वापस आएगी..उसके जाने का मातम मनाना, अच्छी बात नहीं है..!!"

वाह, शर्मा जी,वा..ह..!! 

या...र...!! शर्मा जी की बात तो पते की है..!! है कि नहीं? आपको क्या लगता है? 

ताज़ा नोट- अभी-अभी मुझे पता चला है कि, इतना फ़ालतू आलेख लिखते-लिखते, मेरे दिमाग से मेरी, एक चवन्नी कहीं खो गई है, आप उसे ढूंढने में सहायता करेंगे, प्ली..ज़..!! धन्यवाद ।

 इति श्री भरत खंडे, पावली पुराण,अंतिम अध्याय संपूर्णम् ॥ 

सब मिल, बोलो जय श्री,`जय-जय पावली परमात्मन्..!! जय-जय हिन्दुस्तान..!! मेरा भारत महान?`


मार्क्ण्ड दवे । दिनांक-०१-०७-२०११.