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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

लोभ का परिणाम

एक लोभी सेठ था एक दिन उसने सोचा की किसी ब्रामण को भोजन कराकर क्यों न पुन्य कमा लिया जाए . इसके लिए उसने एक दुबले पतले ब्रामण की तलाश करना शुरू कर दिया . वह सेठ एक दुबले पतले ब्रामण के पास पहुंचा और उसे भोजन कराने की इच्छा प्रकट की और उससे पूछा - महाराज आप कितना भोजन लेते हैं .

वह ब्रामण उस सेठ को अच्छी तरह से जानता था उसने सेठ से कहा - मैं तो मात्र सौ ग्राम भोजन करता हूँ . सेठ उसकी बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हो गया और ब्रामण से बोला - ठीक है महाराज आप भोजन करने घर पर आ जाना और उस समय मैं घर पर नहीं रहूँगा .

सेठ ने घर पहुंचकर अपनी पत्नी को कहा - मुझे जरुरी काम है मैं कल घर पर नहीं रहूँगा ..एक ब्रामण देवता आएंगे तुम उसे भोजन करा देना . दूसरे दिन ब्रामण भोजन करने सेठ के घर पहुंचा . सेठानी ने बड़ी आवभगत की और आदर के साथ पंडित जी से बोली - महाराज आप क्या लेंगें . मौका ताड़ कर ब्रामण ने कहा - बस जादा नहीं दस मन आटा, चार मन चावल और दस सेर घी, एक मन शक्कर मेरे घर पर भिजवा दो और फिर उस ब्रामण ने सेठजी के यहाँ डट कर भोजन किया और वहां से बिदा ली .

घर आकर वह ब्रामण ओढ़ तानकर सो गया और सोते सोते अपनी पत्नी से बोला - सेठजी जब घर आयें तो तुम उन्हें देखते ही रोने लगना और उनसे कहना की जबसे आपके घर से आयें हैं तो तबसे एकदम से सख्त बीमार पड़ गए हैं और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है . उधर सेठ अपने घर पहुंचा और सारा वृतांत अपनी पत्नी से सुना तो उसके होश उड़ गए और वह बेहोश हो गया .

होश आने पर वह ब्रामण के घर पहुंचा तो तो उसने ब्रामण को बिस्तर पर पड़े देखा और ब्रामण की पत्नी ने रो रोकर आसमान सर पर उठा लिया और सेठ के सामने छाती ठौंककर चीख पुकार करना शुरू कर दिया तो सेठजी की हालत पतली हो गई .
सेठजी ने धीरे से ब्रामण की पत्नी के हाथों में बीस हजार रुपये पकड़ा दिये और बोले ब्रामण जी का अच्छे से उपचार कराओ पर हाँ यह बात ध्यान में रखना और किसी से न कहना की ब्रामण महोदय ने मेरे यहाँ भोजन किये थे . इस तरह लोभी सेठ लुट पिट कर अपने घर की और रवाना हो गया .

"सच है की अति लोभ का परिणाम अच्छा नहीं होता है ."

5 टिप्पणियाँ:

बहुत बढ़िया।

मार्कण्ड दवे ।

बढ़िया सजा मिली लोभी सेठ को ...

बताओ...सेठ जी को लेने के देने पड़ गये.

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