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रविवार, 3 अप्रैल 2011

वेबकुल्फियों की चुस्कियां : मूर्ख दिवस की देरीय प्रस्‍तुति

मूर्ख दिवस के दिन मैं मूर्ख हाज़िर हूँअपनी वेबकुल्फियों के साथ। इन वेबकुल्फियों का नायाब आइडिया मेरा है और मैं इस मूर्खता के लिए पहली बार अपना नया प्रॉडक्‍ट नए नए शब्‍दों के बाज़ार में पेश कर रहा हूँ। इसके बाद मैं इस प्रॉडक्‍ट को सिक्‍योर करने के लिए कार्रवाई करूँगा। अरे, सिक्‍योर करना मतलब पेटेंट हासिल करना। इस बहाने मैं अमेरिका की सैर भी कर आऊँगा क्‍योंकि मुझे पूरी जानकारी है कि किसी भी प्रॉडक्‍ट को पेटेंट कराने के लिए अमेरिका जाना ज़रूरी है। जब मैं वहाँ पर जाऊँगा तो प्रेसीडेंट बराक ओबामा से मिलकर उनके साथ फोटो भी खिंचवा कर आऊँगा। अप्रैल माह का पहला दिन और इस दिन मूर्खताएँ आजकल खुलकर सुर्खियों में सामने आ रही हैं। यह खुलकर सामने आना हाईटेक होना है। मूर्खताओं का हाईटेकीय स्‍वरूप वेब पर कुल्फियों के रूप में दिखलाई दे रहा है। वेबकूफी यानी वेब की कुल्‍फी, जिस प्रकार दूध मलाई केसर की ठंडी कुल्‍फी गर्म मौसम में ठंडक के साथ ही ज़ायक़ेदार लगती है, बशर्ते कि उसमें इस्‍तेमाल किया गया दूध हाईटेक यानी सिंथेटिक दूध न हो, वो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी परम लाभकारी रहती है। वेबकुल्फियों के इस नए दौर में ब्‍लॉगों, ख़ासकर हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर ऐसी कुल्फियों का चलन बेशुमार है। इनकी तेज रफ्तार है। जल्‍दी ही बनने-बढ़ने वाला हिन्‍दी ब्‍लॉग का व्‍यापार है। व्‍यापार यानी बाज़ार। बाज़ार जो न कर गुज़रवाये वो थोड़ा है। हिन्‍दी ब्‍लॉग गधा नहीं, घोड़ा है। घोड़े सी तेज़ रफ़्तारयुक्‍त विचारों की दौड़, सिर्फ़ इसी माध्‍यम पर निरंकुश स्‍वरूप में संभव है।
आज मूर्खता को छिपाया नहीं, बतलाया जाता है और बतलाने के लिए ब्‍लॉग से बेहतर माध्‍यम और कोई नहीं है। इससे पहले आप मूर्खता करते थे तो लालकिले पर महामूर्ख की पदवी से सम्‍मानित होने का इंतज़ार करते थे और वो सदा इंतज़ार ही रहता था और आप दुनिया से भी सिधार जाते थे क्‍योंकि वहाँ तक मूर्ख लोगों की पहुँच ही नहीं थी। मैंने खुद काफी सोचा परंतु कामयाबी तो तब मिलती, जब उसमें शामिल हो पाता। आज तक मुझे महामूर्ख सम्‍मेलन में शामिल होने तक का आमंत्रण नहीं मिला तो उसमें विजेता बनने का भाग्‍य कैसे बनता ?  मुझे नहीं लगता कि ऐसा सौभाग्‍य इस जन्‍म में मुझे मिलेगा लेकिन अब तो मुझे चाह भी नहीं है कि मैं आज हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में मूर्खों का बादशाह हूँ। अब मुझे वहाँ की मूर्खतायुक्‍तपद्मश्री का किसी होली तक या मूर्ख दिवस तक इंतज़ार नहीं है क्‍योंकि आज पूरा वेबजगत मेरे सामने मौज़ूद है। जहाँ पर मैं अपनी मूर्खताओं का डंका बजा सकता हूँ, ढोल पीट सकता हूँ, इतने पर भी मुझे कोई नहीं पीटेगा क्‍योंकि मैं रियल होने के साथ-साथ वर्चुअल भी हूँ और कोई मुझसे इस संबंध में प्रमाण पत्र भी नहीं माँगेगा। आज मुझे कोई रोक नहीं सकता, टोक नहीं सकता क्‍योंकि मैं मूर्ख1008श्री हूँ तथा स्‍वयं ही यहाँ पर संपादक, प्रकाशक और मुद्रक हूँ। मेरी मूर्खताओं के साझीदार बनने के लिए, करोड़ों देशी-विदेशी फेसबुकिए, ऑर्कुटिए, ट्विटिरिये जैसी साइटों के पाठक मौजूद हैं, इसलिए मैं अपनी मूर्खता में भी आज ख़ूब प्रसन्‍न हूँ, अपने जबड़े में जमे दाँतों से खिलखिला रहा हूँ, आप इसे दाँत फाड़ना भी कह सकते हैं। जबकि चाहे नकली भी हैं, तब भी मेरे थोबड़े के जबड़े में मज़बूती से फँसे हैं, कितना ही हँसू, बाहर नहीं गिरेंगे।  
आज मूर्खताओं को उपलब्धि बतलाकर ज़ाहिर करने का जज्‍बा वेबमाध्‍यम पर उपलब्‍ध है। मूर्खता को बतलाने के लिए आया यह विकास सकारात्‍मक है। मतलब ग़लती से खुद तो सबक लेना ही, दूसरों को भी लेने के लिए उत्‍साहित करना, दूसरे जो मेरे नितांत अपने हैं। जो ग़लती नहीं करता है वो इसे पढ़ कर सतर्क हो जाता है ताकि मूर्खता करने से बचा रहे। ब्‍लॉगों के प्रचार-प्रसार से इस प्रवृति में तेज़ी दिखलाई दे रही है। पहले ऐसी घटनाएँ-दुर्घटनाएँ दबी, ढकी, छिपी रहती थीं पर अब भरपूर आलोक बिखेरती हैं। पहले सिर्फ़ एक दिन मूर्ख दिवस पर या एक और दिन होली के दिन, लालकिले के सामने महामूर्ख सम्‍मेलन करके इतिश्री कर ली जाती है। परंतु अब ऐसा नहीं है। अब तो रोज़ आप अपने ब्‍लॉग पर महामूर्ख ही नहीं, विश्‍व महामूर्खता सम्‍मेलन कर सकते हैं। आज की मूर्खताएँ ख्‍याति भी दिला रही हैं। ब्‍लॉगों पर व्‍यक्त अनुभूतियाँ, अभिव्‍यक्तियाँ बन कर प्रचार दिला रही हैं। जो कि सिर्फ़ पोस्‍टों, टिप्‍पणियों ही नहीं, परिचर्चाओं के रूप में भी जलवा बिखेर रही हैं। हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर पूरे विश्‍व में पाठकों का इज़ाफ़ा हुआ है। इसके माध्‍यम से लिखने की प्रवृति तेज़ी से बढ़ी है, जो कि समाज के चारित्रिक मूल्‍यों का विकास कर रही है।
ब्‍लॉग लेखकों की, टिप्‍पणीकर्ता की नई लेखक प्रजाति आपस में विश्‍वास को जन्‍म दे चुकी है। दो ब्‍लॉगर मिलें और विश्‍वास न करें – ऐसा पॉसीबल नहीं है। मैंने कई ब्‍लॉगर मिलन/सम्‍मेलनों का राजधानी दिल्‍ली, जयपुर, आगरा, मुंबई, मेरठ जैसे नगरों-महानगरों में आयोजन किया है और मुझे अपनी इन मूर्खताओं पर घमंड है, घमंडी हो गया हूँ मैं। इन आयोजनों की ख़ासियत रही है कि ऐसे अधिकतर आयोजन किसी न किसी हिन्‍दी ब्‍लॉगर के घर पर ही सफलतापूर्वक आयोजित कर लिए जाते हैं, और यह पाया है कि जिस शहर में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन में जाना हो तो वहाँ के ब्‍लॉगर, अन्‍य ब्‍लॉगरों को अपने निवास पर नि:संकोच ठहराने का मूर्खतापूर्ण कार्य पूरी ईमानदारी से करते हैं।
इसी प्रकार मैं भी ऐसी मूर्खताओं के लिए सदैव तैयार रहता हूँ, बशर्ते कि मैं ख़ुद ही शहर से बाहर न होऊँ। हिन्‍दी ब्‍लॉगर नेक हैं, अनेक हैं, पर सदा एक रहेंगे। अभी इस पाँचवें मज़बूत खंबे पर आतंकवादियों, घुसपैठियों, चोरों, डकैतों, असामाजिक तत्‍वों, स्‍मगलरों इत्‍यादि की नज़र नहीं पड़ी है क्‍योंकि अगर उनकी निगाह में यह माध्‍यम आ गया, तो यह तय है कि वे निश्‍चय ही अपने कुकर्मों से तौबा कर लेंगे और समाज में उनके सुधरने से सकारात्‍मक बदलाव दिखाई देंगे।
इस प्रकार मूर्ख दिवस आज नई वजहों को लेकर सुर्खियों में है और यह सुर्खियाँ आह्लादित करती हैं। मूर्खताएँ यानी वेबकुल्फियाँ हिन्‍दी ब्‍लॉगों के ज़रिए सीख दे रही हैं। किसी ने कल्‍पना भी नहीं की होगी, जो आज हकीकत है। आज हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर मूर्ख दिवस से पहले ही चर्चा-परिचर्चाएँ शुरू हो जाती हैं, इन पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ वास्‍तव में सुखद हैं। आज आप जैसा उन्‍माद क्रिकेट को लेकर देख रहे हैं, वही दीवानापन हिन्‍दी ब्‍लॉगों के संबंध में क़ायम होने वाला है, जिसके सकारात्‍मक नतीज़े सिर्फ़ इस दशक के पूरा होने पर अपने शिखर पर क़ायम देखेंगे और सबको अपनी ओर पूरी शिद्दत से आकर्षित करेंगे।
सृजनगाथा

3 टिप्पणियाँ:

मूर्ख दिवस के दिन मैं मूर्ख हाज़िर हूँअपनी वेबकुल्फियों के साथ

जनाब थोड़े लेट हो गए पर गज़ब का लिखा है
"आज मूर्खता को छिपाया नहीं, बतलाया जाता है और बतलाने के लिए ब्‍लॉग से बेहतर माध्‍यम और कोई नहीं है।

सही कहा मुफ्त जो है .......

उंह ! अपने मुंह मिंया मिट्टू!
मूर्ख एक ढूँढो हजार मिलते हैं,
एक बार नहीं बार-बार मिलते हैं
आप मूर्ख होने पर गर्व करते हैं!
हम तो महामूर्ख होने का दम भरते हैं।
...हा..हा..हा...।
...देर से ही सही मजा तो आ ही गया। नव वर्ष में नई बेवकूल्फियों की ढेर सारी शुभकामनाएँ..

leo......hum murkh bhi hazri bhar dete hain......yse padhne me laga nahi.....je aap sachhi baat kar rahe.........khair mane lete hain....

sadar.

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