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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल ।


COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल ।


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" दोस्त, अगले महीने की क्या प्लान है?" दोस्त ने सवाल किया ।

" ह..म..म; देखो ना, जापान के  न्यू  क्लियर  रॅडियेशन  हादसे की वजह से, विश्वभर में तापमान  का  पारा उपर चढ़ने वाला है, सो खिड़कीयों में खस (शीतमूलक) की टाट का पर्दा लटका कर, पानी छिड़कते रहेंगें । बाद में जो होगा, देखा जाएगा..!!" मैनें जवाब दिया ।

" ये बात नहीं पूछ रहा..!! पहली अप्रैल के प्लान की बात कर रहा हूँ । मुझे अप्रैल फूल बनाने के लिए दोस्तों ने कोई प्लान तो नहीं किया है ना?"

" छोड़ यार..!! मैं क्या प्लान करुं? हर साल, पहली अप्रैल को मैं खुद किसी न किसी से  बेवकूफ़ बन जाता हूँ..!!"

मेरे दोस्त ने गहरी आह भरते हुए, अफ़सोस जाहिर किया," सही बात है, मेरा भी यही हाल है ..!! यार, एक अप्रैल का दिन, मुझे अगले दिन तक याद रहता है पर दूसरे दिन सुबह उठते ही मेरी याददास्त, मेरा साथ छोड़कर, मुझे अप्रैल फूल बना देती है..!!"

वैसे, मुझे मेरे मित्र की बात में बहुत दम लगता है..!! आजकल तो जिंदगी की हर एक बहुमूल्य गंभीर क्षण को भी, हँसी में उड़ाने की मान्यता धारण करनेवाले सभी लोग, होली के शुभ त्योहार का आनंद प्रमोद और रंग भरी ठीठोरी, भांग के नशीले माहौल से ठीकसे उभर न पाए हो, इतने में ही लोगों को फिर से वही ठिठोलिया माहौल प्रदान करनेवाला मौके का नाम  है, "COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल..!!"

पहली अप्रैल से इतना डरने वाले मेरे मित्र का, आतंकित चेहरा देखकर, मुझे हमारे गुजराती मकाकवि श्रीअखा का एक `छप्पा` याद आ गया..!!

(सिर्फ मर्मानुवाद)

" एक  ज्ञानी  और  दूजी नाव, पार उतारन, दोनों  का  भाव;
  भूपति - भिखारी, गर्दभ - गाय, सर्वे  पार  उतारे, चैतन्य जान ।
  ब्राह्मण - अंत्यज  न  माने, अखा  मन  में धरे,  यही  विचार  ।

अर्थात- राजा हो या रंक, गाय हो या गधा, मन में ऐसा कोई भेद किए बिना ही नैया, हमेशा सब को पार कराती है , इसी   प्रकार  ज्ञानी भी, किसी को ब्राह्मण - शूद्र ; किसी को उच्च - नीच माने बिना ही, जगत में हर कोई परम परमात्मा ब्रह्म है, ऐसा जानकर तमाम को ज्ञान  देकर  भव  पार कराता है ।

हालाँकि, गुजरात के महाकवि श्रीअखा के यह चिंतनात्मक `छप्पा` के संदर्भ में, ज्यादा चिंतन करते हुए, मेरे जैसा  अल्पज्ञानी इतना ही समझ पाया की, पहली अप्रैल  के  रोज़, किसी दूसरे को बेवकूफ़ बनाने के लिए उत्तेजित हो उठा महामानव (?) भी, उसके सामने अमीर हो या ग़रीब, स्वभाव से गाय जैसा हो या गर्दभ जैसा, उम्र में बड़ा हो या छोटा, नर हो या नारी, बस ऐसा कोई भी भेद जाने बिना, सभी  निर्दोष लोगों को, परम ब्रह्म का अवतार जानकर, सब की `अप्रैल फूल` फिल्म (उ)-तारता है ।

पहली अप्रैल को बेवकूफ़ बनने के बाद, मैं अक्सर सोचता हूँ, हर साल पहली अप्रैल के दिन दूसरों को बेवकूफ़ बनाने का `कुप्रबंधन आविष्कार` किस गर्दभ ने  किया  होगा..!!    

शायद ऐसा हुआ होगा, सारे देश में  होली-धुलेटी के त्योहार के दिन, किसी की, `OPEN HEARTED` स्वभाव की धर्म पत्नी के साथ, "भाभी, भा..भी, भा..भी..ई..ई; बुरा ना मानो होली है..ए..ए..!!", जैसा कुछ लाड़ प्यार जताकर,` तन फटे पर रंग मिटे नहीं` जैसे पक्के घातक रासायनिक लाल, पीले, नीले, काले रंगों से, भाभी के मुँह को काला करनेवाले शरारती दोस्तों पर, शरीर से दुर्बल पर बुद्धि से बाहुबल, डेढ़ चंट पति देव नाराज़ हुआ होगा..!! फिर होली-धूलेटी के दिन खुद की धर्म पत्नी के साथ,ऐसे ज़बरदस्ती बने बैठे देवरों के अधम कर्मों बदला लेने के लिए, अपनी चतुराई के सर्वश्रेष्ठ उपयोग द्वारा, छद्म भाव धारण करके, पहली अप्रैल के दिन, उन सब को बेवकूफ़ बनाकर, अपने मन की भड़ास निकाली होगी..!!

और फिर तो क्या..!! समय के बहते, किसी डेढ चंट मित्र (पति) की ऐसी हरकत से खिसियाए, ये सारे  बेवकूफ़  मित्र उर्फ़ देवरने मिलकर अपनी भड़ास दूसरे लोगों पर निकाली होगी और `अप्रैल फूल` का यह सिलसिला, किसी तांत्रिक बाबा के `एक का तीन` वाले `chain system` की भाँति सारे देश-विदेश में, किसी कम्प्यूटर वायरस की मुआफ़िक़ विश्वभरमें फैल गया होगा..!!

वैसे, मेरे इस तर्क के साथ कई मित्र सहमत नहीं है..!! उनका कहना है की," ये प्रिंट और टीवी मिडीयावाले, किस बात का बदला लेने के लिए,अपने पाठक और दर्शकों के साथ,मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैलफूलिया मज़ाक का मज़मून तैयार रखते हैं?"

अपना तर्क कायम रखते हुए जवाब मैंने दिया,"शायद, ये प्रिंट और टीवी मिडीयावाले, जान गये हैं की, पैसा चूकाकर भी, सभी पाठक और दर्शकों को, पहली अप्रैल को  बेवकूफ़ बनना अच्छा लगता है..!!" 


अप्रैल फूल और महाभारत ।

हमने बचपन में, तांबे के काने एक पैसे के साथ पतंग का धागा बाँधकर, बीच रास्ते में काना पैसा रखकर, जैसे ही कोई, काना पैसा लेने के लिए झुकता, उसी समय धागे के साथ पैसा खींचकर कई लोगों को हमने `अप्रैल फूल` बनाया था ।

खेर, ये तो बचपन की हानिरहित मासूम मज़ाक होती थी, पर अब तो आधुनिक तकनीक के चलते, म्यूज़िकल कार्ड, नाना प्रकार की युक्ति प्रयुक्तिवाले उपहार की चीजें, मुफ्त सोसियल वेब साइट, तस्वीर संपादन सॉफ्टवेयर, SMS, MMS, आवाज़ परिवर्तक उपकरणों का सहारा लेकर  कई समझदार व्यक्ति भी मासूम लोगों को अप्रैल फूल बनाने के अतिउत्साह में, कभी इतनी धीनौने प्रकार की हरकत कर बैठते हैं की, उस मासूम व्यक्ति को सामाजिक,आर्थिक,शारीरिक या फिर मानसिक संताप, नुक़सान होते ही अंत में महाभारत हो जाता है ।

उत्तर महाभारत में महर्षि वेदव्यास और महर्षि जन्मेजय के मत अनुसार," द्वापर युग के युगान्तकाल के साथ ही, शुरु होनेवाले कलयुग में, मनुष्य को अल्प प्रयत्न से श्रेष्ठ धर्म लाभ मिल सकता है ।" ऐसे में इस हलाहल कलयुग में,उल्टी-सीधी हरकत करके हास्य पैदा करने की प्रवृत्ति को ही, जीवन का परम धर्म मानने वाले, मज़ाक़िया इन्सानों के लिए, अपनी गुरुताग्रंथि के अहम की संतुष्टि के लिए, पहली अप्रैल का बहाना हमेशा ज़ुबान पर रहता है ।

सभी को ज्ञात है की, जब महाभारत की रचना हुई, उस समय अप्रैल महीना, अप्रैल महीने के नाम से नहीं जाना जाता था । महाभारत के सभा पर्व में किए गये वर्णन के अनुसार, माता कुंताजी के आग्रह से, पांडवों अपने मृत पिता पाडुंराजा की सदगति के लिए, राजसूय यज्ञ का आयोजन किया था । राजसूय यज्ञ में कौरवों सहित आयें हुए कई राजा-महाराजाओं के मनोरंजन हेतु, सभामंडप में,`जहाँ जल वहाँ स्थल और जहाँ स्थल वहां जल` जैसी हैरत भरी रचनाएं की गई थीं । `अप्रैल फूल` के इस भूलभूलैया में फँस कर दुर्योधन हँसी के पात्र बनते ही,दौपदी ने दुर्योधन को, `अंधे के पुत्र अंधे जैसे`, किसी भी मर्द का सीना छलनी कर देनेवाला फूहड़ उपहास करते ही, महाभारत के महाभिषण युद्ध के दुन्दुभि बजने लगे थे । इसीलिए, भाव जगत के कुछ विद्वान मानते हैं की,`सात्विक प्रसन्नता` और `फूहड़ प्रसन्नता` के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है ।

अमेरिकन कवि जॅम्स गेटे के (September 15, 1795 - May 2, 1856) सुविख्यात कथन के अनुसार, `प्रसन्नता सभी सद्गुण की माता है ।`

अप्रैल फूल मनाने वालों के उत्साह को, थोड़ा लगाम  कसने के लिए जॅम्स गेटे का ये कथन ,अगर  हम  ज़रा सा  बदल दें तो, ऐसा कह सकते हैं की,"फूहड़ प्रयत्न से पैदा हुई प्रसन्नता सभी सद्गुण की अपर-माँ है?"

अप्रैल फूल बनने वालों के लक्षण ।

हर एक मानव को अपैलफूल का स्वाद, जन्म होते ही पलने में ही मिल जाता है । छोटे बच्चों को पलने में सुलाने के लिए,  रचे  गए  बाल गीत के शब्दों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा होता है ,ऐसे में ये बाल गीत एक प्रकार का अप्रैल फूल ही तो  है..!!"

कभी कभी, मन में यह ख़याल आता है, कैसे स्वभाव के लोग अप्रैलफूल के  झांसे  में  आ जाते होंगे ।

* दूसरों पर भरोसा करनेवाले * मूर्ख * बालिश * कमज़ोर मन * अति आत्मविश्वासु * अति लालची * अज्ञानी और अनजान मानव

देश विदेश में अप्रैल फूल ।

पाश्चात देशों में प्रति वर्ष, मनाये जानेवाले, पहली अप्रैल के जश्न को,`All Fools' Day`भी कहा जाता है । जिसमें व्यवहारिक रुप से सहन कर सकें, ऐसी मज़ाक आप्तजन, संम्बधी, मित्र, शिक्षक, विद्यार्थी, पड़ोसी और कामकाज के स्थल पर सहकर्मचारीओं  के साथ निर्दोष स्वरुप में आज़माकर, मज़ाक का आनंद प्राप्त किया जाता है ।

न्यूझीलेन्ड, इंग्लेंड, ऑस्ट्रेलिया, आफ्रिकन कन्ट्रीज़, आयरलैड, फ़्राँस, इटली, जापान, रशिया, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में अप्रैल की पहली तारीख को अप्रैल फूल मज़ाक और धूमचक्कड मचा कर जश्न मनाया जाता है ।  वैसे तो, सन-१३८० से, कुछ अंग्रेजी गीत और कहानीओं में, अप्रैल फूल की  प्रथा का जिक्र किया गया है । पर सब से पहले सन-१९९८ में लंदन मे ""A ticket to Washing the Lions" के नाम से अप्रैल फूल को अधिकृत रुप से दर्ज किया गया था । स्कॉटलेन्ड में इसे,` TAILY`, फ्रांस, कनाडा में 'Avril` और  ईरान में इसे,`Sizdah Bedar` के नाम से पहचाना जाता है ।

अप्रैल फूल-अजीबोगरीब तरीके ।

* पश्चिम बंगाल २०११ के विधानसभा चुनाव में सुश्रीममता दीदी को मुख्यमंत्री चुना गया..!! * बैंक के ATM से रुपयों की जगह सोना निकल रहा है..!! * पू.बाबा रामदेवजी, उनके टापू पर सभी ग़रीबों को एक-एक निवास मुफ़्त देनेवाले हैं..!! * श्री नरेन्द्र मोदीजी, अगले प्रधानमंत्री होंगे..,भाजपा प्रवक्ता..!! * ऐश्वर्याराय बच्चन को, जेम्सबोंड की फिल्म में साइन किया गया है..!! * संसद में ३३% से बढ़ाकर १००% महिला अनामत का कानून पारित किया गया है..!!

अपैलफूल और बॉलीवुड

दोस्तों, अप्रैल फूल की बात आते ही, सन-१९६४ की निर्माता-निर्देशक श्रीसुबोधमुखर्जी की, विश्वजित और सायराबानू अभिनित, हिन्दी फिल्म,`अप्रैल फूल` की याद आ जाती है । इस फिल्म में  मरहूम श्रीमहंमद रफीजी का गया हुआ एक गाना," अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया,मेरा क्या कसूर ज़माने का कसूर जिसने दस्तूर बनाया ।" आज भी सब की ज़ुबान पर है ।

अप्रैल फूल-सावधानी

*किसी एक व्यक्ति को पूरा दिन लक्ष्य न बनाएँ । * जो अपनी मज़ाक होने पर मरने-मारने पर उतारु हो जाता हो, उनसे दूर रहें । * किसी के मन को आघात लगे, ऐसी मज़ाक ना करें । *किसी को चोट पहुंचे ऐसी मज़ाक ना करें । * संबंध की मर्यादा को कभी न लांघे । * अश्लील मज़ाक न करें । * ईर्ष्या, अहम और पूर्व ग्रह से बाध्य होकर मज़ाक न करें । * जिनकी मज़ाक की जाए, उसके आनंद का भी ख़याल करें । * किसी अपंग-पंगु, मृत, बीमार व्यक्ति को लेकर, इस विषय पर मज़ाक न करें । * किसी जाति,धर्म,निर्धनता या शारीरिक अक्षमता पर मज़ाक न करें । * ब्लॉग या वेब साइट पर अनजान दोस्तों से मर्यादा बाँघकर मज़ाक करें । * मज़ाक के लिए, ज्यादा रुपये खर्च न करें । * पति-पत्नी या मित्र के साथ, बच्चों की उपस्थिति में ऍडल्ट मज़ाक न करें । *

दोस्तों, इस तनाव से भरी जिंदगी में हँसना बेहद  ज़रुरी है मगर,सबसे पहले खुद पर हँसना सीखना चाहिए । वैसे

अभी तो,लगता है की, हमारे देश की राज्य व्यवस्था और राजकीय नेता, हमारा नित्य मनोरंजन करनेवाले सबसे बड़े विदूषक है ।

सुप्रसिद्ध अमेरिकन लेखक मार्क ट्वैईन के मत अनुसार," हम पहली अप्रैल को बेवकूफ़ न बने ,इस बात का ध्यान रखते समय साल के बाकी ३६४ दिन बेवकूफ़ बनानेवाले है यह बात भूल जाते हैं ।"

सन-२०११ की सबसे बड़ी मज़ाक मतलब, Helpless PM.( पर दुःख भंजन महाराजा ) और Hopeless CM.(कॉमन मैन) मानी जानी चाहिए,क्यों की ये सब लालची नेताओं को हम ही चुन के गद्दी पर बिठाते हैं ।

हमारे,(PM उवाच ।) कुछ झलकियाँ-

* सत्ता पर टिके रहने के लिए गठबंधन मजबूरी है..!! * भ्रष्टाचारी को छोड़ा नहीं जाएगा..!! * अभी तो मुझे बहुत काम करना है..!! (PM) * मेरे हाथ बंधे हुए हैं..!! * सरकारी गोदाम में सड़ने वाला अनाज, नीतिविषयक मामला है..!! * आतंकवाद नाबूद करके रहेंगे..!! * मैं मजबूर हूँ * नैतिकता का ध्यान रखें तो, प्रत्येक छह मास में चुनाव कराने की नौबत आ जाएं..!!

हाल की केन्द्र सरकार के इरादों को लेकर,मुझे पुरानी फिल्म, `शोला और शबनम` का, श्रीरफीसाहब का  गाया हुआ एक गाना याद आ रहा है," माननीय पी. एम. जी, जाने क्या ढूंढती रहती हैं (हमारी) ये आंखे तुझमें, राख़ के ढेर में शोला है ना चिंनगारी है..!!"

"हे..रा..म..!!"

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"ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवे । दिनांकः १-अप्रैल -२०११.

1 टिप्पणियाँ:

* सरकारी गोदाम में सड़ने वाला अनाज, नीतिविषयक मामला है..!!
ये तो रटा रटाया जवाब है , पी एम साहब का

कल इंटरनेट की खराबी के कारण यहा नहीं आ सके , बढ़िया लिखा है

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