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हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

तबीब कसाई हो गए? (व्यंग गीत ।)




तबीब  कसाई   हो   गए? (व्यंग गीत ।)



चेहरे    की   चमक,   तेरी  जेब   की  खनक,

सब   कुछ  देखो,  हवा  -  हवाई   हो   गए..!!

मुफ़्त   में   तबीब   ये  बदनाम   हो    गए  ?

जब   से   तबीब, इलीस  कसाई   हो   गए ?  

इलीस =  धर्म  मार्ग  से  भ्रष्ट, शैतान )


  अंतरा-१.


इन्सानियत   की   तो,   ऐसी   की   तैसी..!!

साँठ - गाँठ   है   ज़िंदा,   वैसे    की   वैसी..!!

नेता - बीमा - लेब,  सब  लुगाई   हो   गए..!!

जब  से   तबीब, इलीस  कसाई   हो   गए ?  




अंतरा-२.


कौन    अंग   दायाँ,  कौन   सा   है    बायाँ..!!

कौन    यहाँ     बच्चा,   कौन    यहाँ    बुढ़ा..!!

हाड़ - मांस    पिघल   के,  दवाई   हो   गए..!!

जब   से   तबीब,  इलीस  कसाई   हो   गए ?  


अंतरा-३.



कहाँ    है    ग़रीबी,  कहाँ   के   तुम  ग़रीब..!!

गुर्दे की  क़िमत  सुन, खुल  जाएगा नसीब..!!

बदन  -  दवा   -  दारू,   महँगाई   हो   गए..!!

जब   से   तबीब,  इलीस  कसाई   हो   गए ?   


(गुर्दा = कीडनी)



अंतरा-४.


कहाँ   के   ये   ईश्वर,  कहाँ   के   ये   गोड़..!!

ऐंठे  -  जीते  -  मरते,   है   सब   गठजोड़..!!

अस्पताल    सोने   की    खुदाई   हो  गए..!!

जब   से   तबीब, इलीस  कसाई   हो   गए ?   


अंतरा-५.


तुलसी  -  हलदी  -  हरडे,  अनर्थ  हो   गए..!!

ग्रंथ    ये    पुराने,  सब    व्यर्थ    हो   गए..!!

माँ   के   सारे    नुस्खे    दंगाई   हो   गए..!!   


तब  से  तबीब, इलीस  कसाई  हो  गए ?

(दंगाई =  उपद्रवकारी)

मार्कण्ड दवे । दिनांक - २७ -११ - २०११. 

शनिवार, 26 नवंबर 2011

ख़ुदगरज लीडर । (व्यंग गीत ।)







ख़ुदगरज  लीडर । (व्यंग गीत ।)


ख़ुद    से   भी  ख़ुदगरज  होते  हैं  लीडर ।

ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर ।


अंतरा-१.


धन - दौलत  के  चंद  टूकड़ों   की  ख़ातिर,

हर   पल  ज़मीर   से   झगड़ते   हैं   लीडर ।

ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर ।


अंतरा-२.


जन्नत  हथिया  कर, ईमान  दफ़ना  कर, 

जन्नत को जहन्नुम,  बदलते   हैं  लीडर ।

ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर ।


अंतरा-३.


मर कर  जी  रहे  हम, जी लिया अब जी भर,

लहू     लोगों    का    खूब   पीते   हैं  लीडर ।

ख़ुद   को   ही   ख़ुदा   समझते   हैं   चीटर ।



अंतरा-४.



रूहें   दबा   कर,  जिस्मों   को  कूचल  कर,

तिजारत,   लाशों    की    करते   हैं   लीडर ।

ख़ुद   को   ही   ख़ुदा   समझते   हैं   चीटर ।

(तिजारत=व्यापार)


अंतरा-५.


ख़ुदा   को    ख़तावार, खुलेआम  कह  कर, 

ख़ुदा    से    भी   बदला   लेते   हैं   लीडर ।

ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर ।


ख़ुद    से   भी   ख़ुदगरज  होते  हैं  लीडर ।

ख़ुद   को   ही   ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर ।


मार्कण्ड दवे । दिनांक-२६-११-२०११.

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

गधे पर शेर...


मेरे पिछले पोस्ट में मजबूरी वश मुझे प्राप्त सवाल का जवाब ही पोस्ट कर सका क्योंकि सवाल मेल से मिट गया था.
अब वही सवाल मेरे पास फिर आ गया है, इसलिए सवाल और जवाब दोनों पोस्ट कर रहा हूँ.

सवाल था गधे पर फोटो देख कर शेयर लिखिए.
और प्रेषक का शेर भी साथ था --
देखिए फोटो, पढ़िए शेर और फिर मेरा जवाब... शायद अब तालमेल भाए..



प्रेषक का शेर...

हर समंदर में साहिल नहीं होता,

हर जहाज पे मिसाइल नहीं होता,
अगर धीरुभाई अम्बानी नहीं होता,
तो - हर गधे के पास मोबाईल नहीं होता |


मेरा जवाब ....


Sahi hai bhai,
सही बात है भाई !!!!!
Aaj har gadhe ke paas mobile hota hai,
आज हर गधे के पास मोबाईल होता है,
par kya har mobile wala gadha hota hai?
पर क्या मोबाईल वाला गधा होता है?
Agar haan to sochye !!!!!!*
अगर हाँ तो सोचिए,
waqt padne par gadhe ko bhi baap banana padta hai,
वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है,
kya waqt aane par "baap ko bhi ........................"?
क्या वक्त आने पर बाप को भी "........................................."?

…………………………………

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

जरा सोचिए...

Sahi hai bhai,
सही बात है भाई !!!!!

Aaj har gadhe ke paas mobile hota hai,
आज हर गधे के पास मोबाईल होता है,



par kya har mobile wala gadha hota hai?
पर क्या मोबाईल वाला गधा होता है?

Agar haan to sochye !!!!!!*अगर हाँ तो सोचिए,

waqt padne par gadhe ko bhi baap banana padta hai,
वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है,



kya  waqt aane par "baap ko bhi ........................"?
क्या वक्त आने पर बाप को भी  "........................................."?


एम.आर.अयंगर.09425279174.