होली के दिन जनमा
एक नेता का बेटा,
मुसीबत बन गया
चैन से नहीं लेटा ?
पैदा होते ही
कमाल कर गया,
उठा, बैठा और
नेता की कुर्सी पर चढ़ गया !
यह देख डॉक्टर घबराई,
बोली – ये तो अजूबा है !
इसके सामने तो
साइंस भी झूठा है !!
इसे पकड़ो और लिटाओ
दुधमुंहा शिशु है, माँ का दूध पिलाओ ।
दूध की बात सुनकर
शिशु ने फुर्ती दिखाई,
पास खड़ी नर्स की
पकड़ी कलाई
बोला – आज तो होली है,
ये कब काम आएगी,
काजू-बादाम की भंग
अपने हाथों से पिलाएगी ।
नेता और डॉक्टर के
समझाने पर भी वह नहीं माना,
चींख-चींखकर अस्पताल सिर पर उठाया,
और गाने लगा ‘शीला’ का गाना !
उसके बचपने में
‘शीला की ज़वानी’ छा गई,
‘मुन्नी बदनाम न हो
इसलिए नर्स भंग की रिश्वत लेकर आ गई !
शिशु को भंग पीता देख
नेताजी घबराये और बोले -
‘तुम कौन हो और
क्यों कर रहे हो अत्याचार ?’
शिशु बोला – तुम्हारी ही औलाद हूँ
और नाम है भ्रष्टाचार
कवि : श्री राकेश "सोहम"
6 टिप्पणियाँ:
nery nice
तस्वीर बहुत अच्छी लगाई है
तुम्हारी ही औलाद हूँ
और नाम है भ्रष्टाचार|
very good.
वाह क्या बात है
Bahut accha vyangy...
नेता की ऒलाद-वाह! किसी ने सच कहा हॆ कि पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हॆं.सुंदर कविता.
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