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मंगलवार, 26 जुलाई 2011

सावन के हिंडोले में बयानबम

कांग्रेस महासचिव के बयानों को सुनकर कांग्रेस के दिग्‍गज हैरान-परेशान नहीं हैं बल्कि वे सोच रहे हैं कि इसका कैसे पार्टी के हित में बेहतर इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इस बारे में फैसला करने के लिए गुप्‍त बैठकें, सुप्‍त समय में की जा रही हैं। इन महाशय की ख्‍याति आजकल बयानबम के तौर पर हो गई है। बम जो दूसरों के फोड़ने पर फटता है, खुद से तो खुद का फोड़ा नहीं फोड़ा जाता है, उसके लिए भी डॉक्‍टर की बाट जोहते हैं। दर्द जानबूझकर कोई नहीं सींचता है, क्‍योंकि इससे दर्द की आहों में भी दर्द की अभिव्‍यक्ति होने लगती है। दर्द तब तक ही अच्‍छा लगता है जब तक दूसरे के हो रहा हो। बम भी तब तक ही भाता है, जब तक फूटता नहीं है या फूटता भी है तो उससे नुकसान सामने वाले को होता है। पर वो सामने वाला ही होना चाहिए, सामने वाली नहीं। सामने वाली के प्रति तो सबके मन में विनम्र भाव ही रहता है। विनम्र भाव तो पड़ोस वाली के साथ भी पूरा रहता है।
बयानबम की खासियत है कि धमाका भी हो जाता है, सुर्खियां भी मिल जाती हैं, फोटू भी छप जाती है, निंदा भी होती है, इस निंदा से बहुतेरों की तो निद्रा खुल जाती है। कई बार निद्रा आती ही नहीं है। बयान को बम बनाने वालों और निद्रा का तो सदा से बैर रहा है। निद्रा आ गई तो बयान का बम नहीं बनेगा या बनेगा भी देर से बनेगा। यहां पर देर आयद दुरुस्‍त आयद का सिद्धांत लाभकारी नहीं होता है। यहां पर तो समय से पहले या बिल्‍कुल समय पर ब्‍यान का फटना जरूरी है। उसके लिए बम बनने के उपयुक्‍त पात्र की तलाश करनी होती है। कौन बयान का बकरा बनेगा, जो शहीद होने को तैयार हो। यहां पर तो अनेक तैयार हो जाते हैं।
बयानबम जारी करने से पहले थोड़ी सी सुरक्षा ही तो कड़ी करनी होती है, या खुद ही हाथापाई के लिए तैयार रहो।  वो खर्च सरकार का और चर्चा का लाभ पार्टी को। बाबा भी बयानबम बनने से बच नहीं पाए हैं। इसका लाभ बाबा को मिलता है या बाबा के प्रशंसकों को, इस बारे में अभी नतीजे सामने नहीं आए हैं। बयानबम से खुद की तो फजीहत होती ही है। ब्‍यान क्‍योंकि बम है, उस बम को उगलना पड़ता है। दिमाग का इसमें इस्‍तेमाल वर्जित बतलाया गया है। वैसे इस पर बददिमाग या बेदिमाग वालों का कब्‍जा रहता है। इसका फायदा उठाने के लिए बेसिर, पैर की कल्‍पनाएं करनी होती हैं, अपनी बुद्धि को इस मुगालते में रखना पड़ता है कि मान लो आज होली है और भी अधिक लाभ लेने के लिए आज मूर्ख दिवस है और मुझे मूर्ख दिवस पर सर्वाधिक मूर्खता प्रदर्शित करनी है।
पहले बयानबम के बहुत फायदे हुआ करते थे, बम फोड़ा और मुकर गए। परंतु आजकल सीसीटीवी, कैमरे, लाइव प्रसारण के कारण कहे से मुकरना पॉसीबल नहीं होता है। पहले ऐसे जोखिम नहीं थे, तब कह दिया जाता था कि मैंने तो ऐसा नहीं कहा था। अब कहते हैं कि मेरा ऐसा करने का आशय वो नहीं है, जो आप समझ रहे हैं। मतलब आप नासमझ हैं, लेकिन यह तो बिना कहे ही समझ में आ जाता है।
नेता थोड़ा और बेशर्म हो जाए तो कुछ भी सफाई देने की जरूरत नहीं है। पार्टी खुद ही भुगतती रहेगी। करे कोई और भरे कोई और उसमें डूबकर मरे कोई तीसरा।  मतलब कत्‍ल करे राम लाल, फांसी पाए श्‍याम लाल और दौड़ लगाए लोकपाल।  आजकल फांसी का तो मौसम ही नहीं है। कसाब का किस्‍सा सब जानते हैं। सभी इलीजिबिलिटी के होते हुए भी उसे फांसी नहीं, जो जिसको मिलना चाहिए, वो उसको नहीं देंगे। उसके बदले उसे घनघोर सुरक्षा और प्रदान कर देंगे। इसे ही गंदी राजनीति या राजनीति को खेल बनाना कहा गया है। यह कानूनों का मजाक बनाना भी है।
सावन आया है और दिग्‍गी झूल रहे हैं अपने बयानों के झूले में। अब झूले बयान ही हैं। बयान दे दिया है, सावन है झूलते रहिए। जीभ का रंग काला है, इसका विवेचन करते रहिए, इसलिए तो ब्‍लैक झंडे, संडे को दिखलाए गए, सियासत की रोटियां खूब सेकी जा रही हैं जिससे वे भी जलकर काली हो जाएं।

10 टिप्पणियाँ:

दिग्गी नाम का बम बनाना चाहिये, खूब चलेगा।

गंदी राजनीति तो आजकल सब जगह है जनाब !

बल्कि राजनीति मे गंद के सिवा अब बचा क्या है

@ ePandit जी,

ये बम कभी कभी चलाने वाले के हाथ मे भी फट जाता है ....
हा हा हा

बढ़िया और विस्फोटक व्यंग लिखा है अविनाश जी

बहुत दिनो बाद आपका लेख देख कर खुशी हुई

बम जो दूसरों के फोड़ने पर फटता है|

sahI bat hai..!!

कत्‍ल करे राम लाल?

व्यवसाय कब बदला.किसी को पता भी न चला..!!

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