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शनिवार, 10 सितंबर 2011

सैंडल को सैंडल ही रहने दो दीवानो ...

सैंडलों की उड़ान का हवाई किस्‍सा भरपूर उमड़ रहा है।
विरोधियों के तो पेट में घुमड़ रहा है।
यह वही घुमड़ है, जिससे मरोड़ उठते हैं।
जिसके सैंडल है, उनके सामने करोड़ झुकते हैं।
वे और ये क्‍या खा-सोचकर मुकाबला करेंगे।
सैंडल इतने भी डल नहीं हैं। डल कहोगे तो काश्‍मीर की झील हो जायेंगे,
भूल गए क्‍या वहां की तस्‍वीर भी। सैंडल कभी चर्चा में नहीं रही हैं।
जूते पहले सुर्खियों में आए, फिर यदा-कदा चप्‍पलें भी आ पहुंची और अब एकदा सैंडलें पधारी हैं।

वे भी लाने को तैयार हो गए, जहाज भेज तो हम लाते हैं और आते हुए मुंबई से सैंडलें खरीद लाते हैं। उन्‍हें जरूर अहसास, यह खास हो गया होगा कि अगले बरस वे ही होंगे, कौन का यह अहसास, प्रत्‍येक कोण से लुभा रहा है। पर जिसने बन जाना है पीएम, वो क्‍यों मंगवाए सैंडल जितनी चीज महीन।

लीक्‍स का विकी अब लीक से हट रहा है। वैसे अपनी बात पर डट रहा है लेकिन जो डाट रहा है उसे, वो आंक रहा है तुझे। वो पाक नहीं है, न था, न रहेगा। पाक को तो वो कर रहा है खाक। सैंडलों को फिर भी रहा है ताक। सोच रहा होगा कि इसका ही बिजनेस कर लूंगा। जो डूब रही है अर्थव्‍यवस्‍था हमारी, उसको सुधारने की समझ लूंगा तैयारी।

जो लूट रहा है, वो दिखलाने के लिए लुट सकता है, लुटने में भी उसकी एक चाल है, जिसे नहीं समझ पा रही पीएम बनने की चाहत रखने वाली बाला है। उसे बाला कहो या कहो बाल, वो तो बिना बात ही कर देती है खड़े बवाल। उससे किसकी हिम्‍मत है करे सवाल, जो करे सवाल, वही सारे उत्‍तर निकालेगा, गाकर या कहकर। निकालनी हो बाल में से खाल, पर वे निकालती रही हैं सदा खाल में से बाल।

वही तड़पाते हैं, जब निकल-निकल कर आते हैं। वे मंगवाती हैं सैंडल, जिन्‍हें आसान होता है करना हैंडल। जूती वो पहनती नहीं हैं, अगर पहनेंगी तो समझेंगी कैसे? जूती समझना जरूरी है और पहनना बिल्‍कुल गैर-जरूरी। बिल्‍कुल उसी तरह जैसे मंगवाना जरूरी है, किसकी मजबूरी है, कितनी दूरी है, मायने नहीं रखती। सैंडल पहनाना जी हुजूरी है, इससे कैसे रख सकते, पहनाने वाले दूरी हैं। वे कभी नहीं कहती हैं मेरी सैंडल, वे कहती हैं मेरी जूती करेगी यह काम।

मेरी जूती देगी जवाब। मेरी जूती ही करेगी लाजवाब। सैंडल तो पैरों की धरोहर हैं, जेवर हैं, आभूषण हैं। सैंडल का किस्‍सा, सैंडल का है, जूती का नहीं है।

सैंडल को सैंडल ही रहने दो, इसे भ्रष्‍टाचार का नाम न दो। हवाई जहाज की उड़ान तो दो, पर विकिलीक्‍स का पैगाम मत दो। मत कहो इसे बुराई, यह तो है दुहाई। इसके लाने में ही कितनों की बची है नौकरी, कितनों ने है पदोन्‍नति पाई।

आप इतना आसान सा फलसफा भी क्‍यों नहीं समझ पाते हैं भाई, लेकिन अपनी बहनों के, सबकी बहनजी के नहीं। तिल सी बात को तिल ही रहने दो, इसे ताड़ मत बनाओ, यह तो है राई, जिसे बतलाना चाह रहे हो तुम खाई, कैसी विलक्षण बुद्धि है पाई ?

7 टिप्पणियाँ:

sendal ko sendal hi rahne do....vaah kya khoob vyang haasya likha hai.bahut badhiya.

सैंडल, जिन्‍हें आसान होता है करना हैंडल।

VERY NICE..!!

अविनाश जी का ''सैंडलनामा'' खूब रहा...

बहुत खूब लिखा है सैंडल पर

मेरी जूती देगी जवाब। मेरी जूती ही करेगी लाजवाब।

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