बिछना - बिछाना
जमाना बदल रहा है.काफी बदल गया है.लेकिन बिछने की आदत अभी कायम है.पहले आँखें बिछाते थे,फिर कालीने बिछने लगीं ,अब लोग खुद बिछ जाते हैं.
लोगों को फख्र महसूस होता है,लोगों को हर्ष महसूस होता है,कि अब हम न ही बिस्तर बिछाते हैं,न ही हम कालीनें बिछाते हैं,न ही नजरे इनायत बिछाई जाती है,हम बिछाने में विश्वास नहीं करते ....
हम तो खुद ही बिछ जाते हैं.
एम.आर.अयंगर.094252791...





