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रविवार, 13 फ़रवरी 2011

वेलेंटाइन-व्यंग्य............

एक अच्छी लड़की की कहानी 
गिरीश पंकज  

एक कॉलेज का दृश्य। कुछ लड़कियाँ, एक लड़की को घेरकर खड़ी हैं और उसे कोस रही थीं-
एक बोली- ''तेरा जीवन बेकार हो गया रे मुन्नी। एक वो मुन्नी है जो अपने डार्लिंग के लिये बदनाम हुई मगर उसका कितना नाम हो गया और एक तू है, जिसके पास एक भी डार्लिंग नहीं है.''
दूसरी चढ़ बैठी - '' तुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी।''
तीसरी ने ताना दिया - '' काहे तू इतना पढ़-लिख ली। गँवार ही रहना था तुझको। छि:।''
चौथी लपकी- '' देख हम लोगों को। खानदान कानाम रौशन कर रही हैं : हर एक के पास कितना स्टाक है. एक-एक के पास तीन-तीन, चार-चार ब्वाय फ्रेंड है, लवर हैं.और तू? तेरे पास एक भी नहीं। इसका पहरावा तो देखो। सलवार-कुरता, उस पर चुन्नी। छि:-छि:। चलो सहेलियो, इसके पास खड़े रहना भी पाप है, नहीं-नहीं  महापाप है।''
सारी लड़कियाँ उस लड़की को रुलाकर चली गईं। 'वेलेंटाइन डे' के दिन कई लड़की अपने ब्वाय-फ्रेंड उर्फ लवर के बिना रहें, उसे तो सचमुच ही 'धिक्कार' है।
लड़की संस्कारों वाली थी। और आज के ज़माने में जो संस्कार वाला है, वही तो बदनाम है। उसका नंगई के इस आँगन में आखिर इसका क्या काम है? संस्कार की मारी बेचारी लड़की को यही सिखाया गया था कि नैतिकता सबसे बड़ी चीज़ है। कॉलेज में पढ़ाई करो, अपना कैरियर बनाओ। जो लड़की वेलेंटाइन डे के पड़ी मतलब बर्बाद हो गई समझो। माता-पिता का कहना न मानकर बेचारी लड़की किसी भी किस्म के लफड़े में नहीं पड़ी । अब जींस-टॉप (उस पर भी सुपर टॉप) धारिणी लड़कियाँ उसे मार रही थीं।
लड़की को लगा, सचमुच वह गँवार है... पिछड़ी हुई है। उसे तो मर ही जाना चाहिए। उसका एक 'लवर' तक नहीं, एक 'ब्वॉय फ्रेंड' भी नहीं? हाय-हाय ये भी क्या जीवन है..''. लड़कियों के ताने उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे - ''तेरा जीवन बेकार है। तुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। गँवार कहीं की। बैकवर्ड...बैकवर्ड....बैकवर्ड..। छि: छि:!!''
लड़की ने सोचा, अब इस जीवन को जीने का कोई अर्थ नही, सचमुच उसे मर जाना चाहिए।
और वह मरने के लिए निकल पड़ी। वह तेजी के साथ चली जा रही थी कि तभी आकाशवाणी हुई-
''कहाँ जा रही है बालिका?''
लड़की घबराई। ये आवाज कहाँ से आई ?
 ''आप कौन ? '' उसने पूछा
मैं नैतिकता हूँ।'' आकाशवाणी
 ''ये सब तुम्हारे कारण हो रहा है। तुम दिमाग में सवार हो इसलिए मैं गलत राह पर नहीं चल सकती।''  लड़की चीखी -''मैं चरित्र को सबसे ज्यादा महत्व देती हूँ, इसलिए मैंने लड़कियों को अपने जाल में उकसाने वाले लड़कों से ख़ुद को दूर रखा। अब चालू टाइप की लड़कियाँ मेरा मज़ाक उड़ा रही हैं। मैं मरने जा रही हूँ।''
आकाशवाणी - '' इससे क्या होना-जाना है। उल्टे समाज का ही नुकसान होगा। एक इक्का-दुक्का लोग ही तो इस तरह के बचे हैं, जिनसे अच्छे चाल-चलन की उम्मीद की जा सकती है। अब तुम्हारे जैसी लड़कियों का अकाल पड़ गया है। इसलिए तुम तानों से विचलित मत हो और शान से जियो। चरित्र ही सबसे बड़ी पूँजी है तुम्हारी। आजकल बहुत-सी लड़कियों में यह प्रतिस्पर्धा होने लगी है कि उसके पास कितने ब्वाय फ्रेंड हैं। उधर लड़कों की तो पुरानी स्पर्धा चल रही है कि उसके पास कितने आइटम हंै। पहले दिल में एक से ज्यादा किसी के सामने कोई गुंजाइश नहीं रहती थी। अब तो दिल एकदम बेदाम होता जा रहा है। न जाने कितने ही समा जाते हैं।''
लड़की ने अपने दिमाग को ठंडा-ठंडा कूल-कूल किया। उसे लगा कि नैतिकता की देवी ठीक कह रही हैं। उसने मरने का इरादा बदल दिया और बोली ''देवी, तुम्हारी बातों से मेरी आँखें खुल गईं। मुझे जीना चाहिए और ऐसी लड़कियों के खिलाफ़ खड़ा होना चाहिए जो सीधी-सादी लड़कियों को गुमराह करने की कोशिश करती हैं। सचमुच, मैं क्यों मरूँ? मेरे वे जो समाज को मारने पर तुले हैं। जो लड़कियाँ अपने माता -पिता की इज्जत नीलाम करने पर लगी हुई हैं, वे मरें। समाज का बोझ कम होगा।''
लड़की वापस लौट गई इस ''पागल किस्म के संकल्प'' के साथ. कि वह 'वेलेंटाइन डे' जैसे रिवाजों का विरोध करेगी। भले ही उनकी सहेलियाँ उसका मजाक उड़ाएँ।

7 टिप्पणियाँ:

बहुत अच्छा लगा आपका ये आलेख...................लड़कियाँ तो मूलतः अच्छी ही होती हैं।
अच्छा द्वन्द्व है..............
आभार



डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
“वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

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http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

dr. divya shrivastava ko badhai...nek kaam karane ke liye..

लड़कियों के ताने उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे - ''तेरा जीवन बेकार है। तुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। गँवार कहीं की। बैकवर्ड...बैकवर्ड....बैकवर्ड..। छि: छि:!!''

गिरीश जी,
बहुत बढ़िया कहानी लिखी है आपने ..... लगता है जैसे वेलेंटाइन ना हुआ फेशन हो गया

पागल किस्म के संकल्प बने रहें

डूबता को तिनके का सहारा दिखाया है आपने ..........................

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