हिंदी.....
आज ही एक मित्र से सूचना दी ...
कि .. हिंदी
राजनीतिज्ञों ने इसे राष्ट्रभाषा बनाना चाहा......
नहीं बन सकी...
संविधान कर्मियों ने इसे राजभाषा बनाना चाहा...
कानूनन तो बन गई पर ...
पर लोगों के दिलों में जगह न पा सकी...
ऊपर वाले की मेहरबानियों से .........
हमारी मातृभाषा नहीं बन सकी...
पर हाय री किस्मत ....
यह मात्र भाषा रह गई...
एम.आर.अयंगर.
9425279174.
2 टिप्पणियाँ:
यही तो विडम्बना है!
Baat to bilkul sahi hai.
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