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हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

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बुधवार, 29 अगस्त 2012

वैसे तो टीटोटालर हूँ...

वैसे तो टीटोटालर हैं... दारू शराब सब लत ही है, करती खराब दौलत ही है, होता है असर सेहत पर भी पड़ती है मगर आदत फिर भी, जब मुफ्त मिलेगी तो यारों, क्यों हद की बात करो यारों, जितनी आती है आने दो, ऐसे ही रात बिताने दो. फोकट में मिलेगी तो बोलो, जो भी हो बोतल खोलो, कुछ फर्क नहीं पड़ता हम-दम, हो ठर्रा विस्की या हो रम. काजू किशमिश तो आएँगे, अंडे, नमकीन मँगाएँगे, चिल्ली-चिकन भी मँगवालो, फ्राई-पनीर भी करवालो. जब तक जेबें हैं भारी, कब कौन कहाँ है लाचारी, मेरी अंटी को हाथ लगाना मत, आंटी को कुछ बतलाना मत. दो चार पेग जो बढ़ जाएँ, थोड़ी मुश्किल में पड़ जाएँ, वो बने डाक्टर बैठे हैं, क्यों फीस ये इतने ऐँठे हैं. ये दवा ठीक कर जाएँगे, पैसे वापस मिल जाएँगे, फिर हर्ज ही क्या है पीने में, मस्ती मस्ती में जीने में. बस एक बात का ध्यान रहे, अपने बड़ों का मान रहे, माँगो...

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