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हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

जीते जी मेरी मौत का सामान हो गया

शादी कराके मैं तो परेशान हो गया
जीते जी मेरी मौत का सामान हो गया।

लेके आईं हैं मैके से वो दहेज़ में कुत्ता
फ्री में मेरे बिस्तर का दरबान हो गया।

और आगे अर्ज़ है,
रोज़ ही चली जाती हैं वो शापिंग करने
मेरा घर अब कोस्मेटिक्स का दुकान हो गया।

और अंत में,
सुना है अभी ससुराल में एक साला हुआ है पैदा
लगता है बुढ़ापे में मेरा ससुरा भी जवान हो गया।



इस कविता के लेखक का नहीं पता किसी को पता हो तो जरूर बताए

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

गधे बन गए बाप?- `माही` (धोनी)

गधे बन गए बाप?- `माही` (धोनी)
  

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html
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`माही..माही..माही..भाई, ये तुमने क्या कही..!!`
 गधे बन गए बाप, बता क्या ग़लत, क्या सही?"

 

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प्रिय भाई, श्रीमहेन्द धोनी उर्फ माही,
 

सबसे पहले तो क्रिकेट विश्व कप जीतने की खुशी में, हम सभी ब्लॉगर्स बंधु-भगिनी की ओर से ढेर सारी बधाई ।
 

मगर..मगर..मगर?  फाइनल मैच जीतने के पश्चात हुए साक्षात्कार में, एक सवाल के जवाब में, तुमने ये बात क्यों कही और कैसे कही ?
 

प्रिय माही,शायद तुम्हें पता होगा, रोमन तत्व चिंतक,छटादार वक़्ता, राजनीतिक, प्रसिद्ध न्यायविद और रोमन साम्राज्य के संविधान के रचनाकार, मार्कस ट्यूलिस सिसेरो (कार्यकाल, ३ जनवरी १०६ बीसी से ७ दिसम्बर ४३ बीसी) ने, भले ही कहा हो की, " हमें यही कल्पना करनी चाहिए, सारी अखिल सृष्टि (पृथ्वी) और समग्र मानव जाति, एक अखंड राष्ट्र समूह है । परमेश्वर और सारे मानव इस राष्ट्र समूह का हिस्सा है । (वसुधैव कुटुंबकम ।)
 

मिस्टर मार्कस ट्यूलिस सिसेरो की, ये बेतुकी बात, माही तुमने क्यों दोहराई? ऐसा कोई करता है क्या?
 

तुमने कहा," हम टॉस भले की हार गए, पर आज दोनों टीम, अच्छे टीम स्पिरिट के साथ, एक होकर खेली, क्रिकेट विश्व में खेल भावना की जीत हुई..!!"
 

क्यों भाई, जीतने के बाद, थकी-हारी विरोधी `अतिथि टीम` को, ऐसा चुटकुला कोई सुनाता है क्या? हमारे देश की `अतिथि देवो भवः।` की परंपरा भूल गए क्या?
 

( भूल गए हो तो, हमारे कई ब्लॉगर, तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी करके याद दिला सकते हैं, भेज दूँ, क्या उन सब को?)
 

हमारे कई  ब्लॉगर मित्रों का यह मत है की, तुमसे एक सीधा सा सवाल किया गया था, इसका मतलब ये नहीं है, हँसी-मज़ाक समझकर, शालीनता त्याग कर कोई भी, कैसा भी मन चाहा, अंट शंट उत्तर दे दो..!! हँसी मज़ाक भी एक मर्यादा में हो तो ही बेहतर होता है । 

`हे..माँ, मा..ता..जी..!!` 
मैं भी अपने मित्रों की इस बात से सहमत हूँ, यह सब कुछ ज्यादा हो गया..!!
 

हमें अपनी इन्सानियत नहीं छोड़नी चाहिए । बेशक, वर्ल्ड कप के फाइनल में हिंदुस्तान ने,श्रीलंका को हराया, मगर ये एक खेल है । जीतने के बाद भी, हमें खेल भावना बरकरार रखनी चाहिए ।
 

"ये बात अलग है की  श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के कप्तान कुमार संगकारा , टॉस उछलने के बाद, तुरंत अपनी बात से मुकर गया और फिर से टॉस उछालना पड़ा..!!"
 

फिर भी इन्सानियत के खिलाफ दिए गये, तुम्हारे इस उत्तर की हम कड़ी निंदा करते हैं..!!
 

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अब तुमने ये भी कहा," अच्छा हुआ, हम मैच जीत गए, वर्ना मुझे देशवासीओं को जवाब देना पड़ता की, अश्विन की जगह श्रीसंत क्यों और बल्लेबाजी के क्रम में, युवराज की जगह, मैं क्यों?"
 

माही, अगर तुम चाहो तो, हमारे देश में, आजकल सब के बाप होने का दावा करके बिंदास धूम रहे, कई पदासिन या पदभ्रष्ट (पथ भ्रष्ट?) गधों के नाम लेकर, मैं  अभी उनकी संख्या बता सकता हूँ..!! ऐसे नकली बाप को तो, किसी ने कुछ नहीं कहा?  फिर, तुम को ही क्यों कुछ कहते?
 

तुम ये भी तो कह सकते थे, "मैं मजबूर था, मेरे हाथ बंधे हुए थे..!! इतना ही नहीं, किसी बड़े नामधारी सिलेक्टर, मीडिया महिला या पुरुष पत्रकार  या फिर मेरी मर्ज़ी विरुद्ध, दूसरे किसी के दबाव में आकर श्रीसंत को टीम में सामिल करना पड़ा?"
 

रही,  युवराज से, आगे क्रम में खेलने की  बात..!! देश की आपत्ति के वक़्त, अपने कंधो पर सारी जिम्मेदारी लेकर, टीम की रहनुमाई करने जैसा, ग़लत उदाहरण कायम करके, तुमने आज की युवा पीढ़ी को गुमराह करने का, बहुत बड़ा पाप किया है..!! तुम्हें ये शोभा नहीं देता..!! 

 

माही, अब मैं तुमसे एक सवाल करता हूँ, ईमानदारी से उत्तर देना..!!
 

( भ्रष्ट नेताजी की तरह, ये मत पूछना, ईमानदारी किस चिड़िया का नाम है?)
 

*  रियलिटी शॉ, `राखी का इन्साफ़` पर कथित आरोप था की, किसी निर्दोष लक्ष्मण को, ` नामर्द- नपुंसक` कहा गया और उसे  उकसा कर, ख़ुदकुशी करने के लिए  मजबूर किया गया..!! उनको तो किसी ने कुछ नहीं कहा?  फिर, तुम्हें ही क्यों कुछ कहते?
 

(आज, कलयुग के रामराज्य का यह दुर्भाग्य है की, " हम लंका तो जीत लेते हैं, पर लक्ष्मण को `नामर्द` की गाली देकर, बे-मौत ही मार देते हैं ..!! हे  बजरंग बली, आप तो सदा अमर हैं, अब तो गदा धारण कीजिए?")
 

* रियलिटी के नाम पर, `बिग बॉस` में अली और सारा की, सुहाग रात `LIVE` दिखाने के आरोप चेनलवालों पर हुए थे..!!  हुए थे ना? तो फिर, उनको तो किसी ने कुछ नहीं कहा? तुम को ही क्यों कहते?
 

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मैच के बाद, साक्षात्कार में, तुमने यह भी कहा की," ये जीत हमारे कोच- गैरी कर्सटन से लेकर, सारी टीम के प्रयत्न का फल है । इस जीत में जिन्होंने अपना योगदान किया है, उन सब का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ ।"
 

क्यों भाई,माही? ऐसा झूठ उगलने की क्या ज़रुरत थी? आज़ादी के `स्वर्ण जयंती महोत्सव` का जश्न मना कर अब हम `प्लॅटिनम ज्यूबिली` की ओर बढ़ रहे हैं ।  इतने बरसों में,हमारे देश में, इतनी सारी सरकारें सत्ता पर आसीन होकर, निष्ठापूर्वक अपना-अपना ( खुद का) `काम` करके चली भी गई..!!  आजतक, एक भी सरकार ने, अपनी किसी उपलब्धि या तो फिर कामयाबी का श्रेय, अपनी कैबिनेट टीम, या  देशवासीओं को दिया? नहीं ना? (ही..ही..ही..ही..!!)
 

सत्तासिन (नशाधिन?) उच्च पदाधिकारी,  पी.एम.से लेकर चपरासी तक, सभी लोग अच्छे-अच्छे कामों का श्रेय किसी आलतु-फालतु को नहीं देते और बुरे कामों में अपनी असहायता-मजबूरी का राग आलापते हैं? फिर क्या सोचकर, तुमने अपने जीत के जश्न में, सभी साझीदारों की वाहवाही की? ये ठीक नहीं किया..!!
 

श्रीसुभाषचंद्राजी की, ICL (इंडियन क्रिकेट लीग) को टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए, BCCI के मना करने के बाद, Bihar Cricket Association (BCA-1935) के  प्रेसिडन्ट श्रीलालुप्रसादजीने, जब वह रेल मंत्री थे तब देश के  सारे रेलवे स्टेडियम की सुविधा ICL  को  देने की उदारता जताई थी ना? उनको तो किसी ने `थेंक्यु`  तक नहीं कहा..!!
 

( ये बात और है की, उस वक़्त, श्रीसुभाषचंद्राजी ने, रेलवे स्टेडियम पर, गाय-भैंस को, बचा कूचा हुआ चारा चरते हुए पाया था?)
 

सोचो अगर, रेलवे जैसी महा मुनाफ़ा करनेवाली सरकारी संस्था के पास, सुविधाओं के नाम पर, क्रिकेट स्टेडियम का ऐसा हाल है तब, दूसरे खेलों के स्टेडियम्स का, क्या हाल होगा, सब लोग जानते हैं..!!
 

शायद, सभी खेलों के लिए, देश में आधुनिक सुविधा मुहैया जब कराई जायेगी, उस समय तक, कई आशास्पद, उगते खिलाड़ीओं के बारे में, यही  कहने की नौबत आ जायेगी की,`गढ़ आला पर सिंह गेला..!!`
 

दोस्त माही,सच कहना, हिंदुस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान बनने से पहले, खुद तुम्हें खेलने के लिए कितनी सरकारी सुविधा मुहैया कराई गई थीं? शायद..०,०..!!
 

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तुमने साक्षात्कार में ओर, यह भी कहा की," हमें लगातार प्रोत्साहित करने के लिए, मैं सारे देशवासीओं का शुक्रिया अदा करता हूँ ।"
 

माही, हमें मज़ाक पसंद नहीं है और ऐसे मज़ाकिया स्टेटमेन्ट्स कतई कबूल नहीं है..!!  हम विद्वान, गुणवान, कदरदान, नादान क्रिकेट प्रेमी ब्लॉगर्स, तुम्हारी ऐसी मज़ाक की घोर निंदा करते हैं, क्योंकि..!!
 

अगर, तुम्हारी सारी बातों के साथ हम सहमत हो गये तो, सभी देशवासीओं के `जश्न -ए- जुलूस` में  हमारे साथ, मलिन इरादे वाले कुछ गिने चूने भ्रष्ट गधे भी, `बाप` बन कर,अपने चारों पैरों को उछालते हुए, `होंची..होंची..होंची`, का बेसुरा राग छेड़ कर, सारा माहौल सरकारी-तरकारी मार्केट (संसद?) जैसा बना देंगे..!!
 

ठीक है..!! आज तक, हम ऐसे गधों को बरदाश्त कर रहे हैं, पर अब उनकी गद्धा-लातों से, ज़ख्मी होने के लिए हम तैयार नहीं है..!! 
 

माही, आइन्दा किसी से भी, अगले साक्षात्कार के समय, हम सब ब्लॉगर्स की यह अमूल्य नसीहत को ध्यान में रखना और कुछ अनाप-सनाप जवाब देने से पहले सौ बार सोचना, वर्ना..!!
हम `ऑल इंडिया` के सारे नसीहतबाज, उत्साहयुक्त ब्लॉगर्स, सभी क्रिकेटर्स  के ब्लॉग पर आकर,अपने मन की सारी भड़ास निकाल कर, ऐसी-ऐसी  टिप्पणियां करेंगे की, आप सब लोग  ब्लॉगिंग करना तो क्या, क्रिकेट खेलना  भी छोड़ देंगे..!!
 

अंत में,  हम सभी ब्लॉगर्स, देश के सभी, विद्वान और बुद्धिजीवी महानुभव से, यही कहना चाहते हैं की,
 

" एवमेतध्यथात्थ   त्वमात्मानं   परमेश्वर ।
  द्रष्टुमिच्छामि  ते रूपमैश्वरं पुरूषोत्तम ॥३॥"  

 

"विश्व रुप दर्शन योग-अध्याय-११- श्रीमद्भागवत  गीतापुराण "  
मित्र माही, हम जीत के आनंद को अपनी कटु वाणी से कलुषित करना नहीं चाहते थे,मगर क्या करें? कोई सुननेवाला नहीं है..!!

हम तो बस इतना ही चाहते हैं की, श्रीमद्भागवत  गीतापुराण में, धनुर्धर अर्जुन को विषाद योग से मुक्ति दिलाकर, भगवान श्रीकृष्णने जैसे अर्जुन को विजयपथ पर प्रेरित किया था, इसी तरह, किसी ग़रीब आदिवासी या समाज के पिछड़े दलित परिवार के संतान को, ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, वीर्य और तेज युक्त, साक्षात ईश्वर रुप रमतवीर के,`विश्व रुप` का हम दर्शन करना चाहते हैं ।
 

दोस्तों, अब क्या करें?
चलो, कोई दिक्क़त नहींजी..!!
अगले क्रिकेट वर्ल्ड कप के आने तक, प्रतीक्षा करें..!! ओर क्या?
 

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`ANY COMMENT`


(ख़ास अनुरोध) "कृपया, हो सके तो टिप्पणी, मेरे ब्लोग MKTVFILMS या तो, E-Mail; mdave42@gmail.com  पर ही करें, अगर व्यंग समझ न आयें तो, कृपया टिप्पणी न करें..प्ली..ज़..!! मेरे मन को  गहरी ठेस पहुँचती है । बहुत-बहुत शुक्रिया ।) 

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०३-०३-२०११.

रविवार, 3 अप्रैल 2011

वेबकुल्फियों की चुस्कियां : मूर्ख दिवस की देरीय प्रस्‍तुति

मूर्ख दिवस के दिन मैं मूर्ख हाज़िर हूँअपनी वेबकुल्फियों के साथ। इन वेबकुल्फियों का नायाब आइडिया मेरा है और मैं इस मूर्खता के लिए पहली बार अपना नया प्रॉडक्‍ट नए नए शब्‍दों के बाज़ार में पेश कर रहा हूँ। इसके बाद मैं इस प्रॉडक्‍ट को सिक्‍योर करने के लिए कार्रवाई करूँगा। अरे, सिक्‍योर करना मतलब पेटेंट हासिल करना। इस बहाने मैं अमेरिका की सैर भी कर आऊँगा क्‍योंकि मुझे पूरी जानकारी है कि किसी भी प्रॉडक्‍ट को पेटेंट कराने के लिए अमेरिका जाना ज़रूरी है। जब मैं वहाँ पर जाऊँगा तो प्रेसीडेंट बराक ओबामा से मिलकर उनके साथ फोटो भी खिंचवा कर आऊँगा। अप्रैल माह का पहला दिन और इस दिन मूर्खताएँ आजकल खुलकर सुर्खियों में सामने आ रही हैं। यह खुलकर सामने आना हाईटेक होना है। मूर्खताओं का हाईटेकीय स्‍वरूप वेब पर कुल्फियों के रूप में दिखलाई दे रहा है। वेबकूफी यानी वेब की कुल्‍फी, जिस प्रकार दूध मलाई केसर की ठंडी कुल्‍फी गर्म मौसम में ठंडक के साथ ही ज़ायक़ेदार लगती है, बशर्ते कि उसमें इस्‍तेमाल किया गया दूध हाईटेक यानी सिंथेटिक दूध न हो, वो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी परम लाभकारी रहती है। वेबकुल्फियों के इस नए दौर में ब्‍लॉगों, ख़ासकर हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर ऐसी कुल्फियों का चलन बेशुमार है। इनकी तेज रफ्तार है। जल्‍दी ही बनने-बढ़ने वाला हिन्‍दी ब्‍लॉग का व्‍यापार है। व्‍यापार यानी बाज़ार। बाज़ार जो न कर गुज़रवाये वो थोड़ा है। हिन्‍दी ब्‍लॉग गधा नहीं, घोड़ा है। घोड़े सी तेज़ रफ़्तारयुक्‍त विचारों की दौड़, सिर्फ़ इसी माध्‍यम पर निरंकुश स्‍वरूप में संभव है।
आज मूर्खता को छिपाया नहीं, बतलाया जाता है और बतलाने के लिए ब्‍लॉग से बेहतर माध्‍यम और कोई नहीं है। इससे पहले आप मूर्खता करते थे तो लालकिले पर महामूर्ख की पदवी से सम्‍मानित होने का इंतज़ार करते थे और वो सदा इंतज़ार ही रहता था और आप दुनिया से भी सिधार जाते थे क्‍योंकि वहाँ तक मूर्ख लोगों की पहुँच ही नहीं थी। मैंने खुद काफी सोचा परंतु कामयाबी तो तब मिलती, जब उसमें शामिल हो पाता। आज तक मुझे महामूर्ख सम्‍मेलन में शामिल होने तक का आमंत्रण नहीं मिला तो उसमें विजेता बनने का भाग्‍य कैसे बनता ?  मुझे नहीं लगता कि ऐसा सौभाग्‍य इस जन्‍म में मुझे मिलेगा लेकिन अब तो मुझे चाह भी नहीं है कि मैं आज हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में मूर्खों का बादशाह हूँ। अब मुझे वहाँ की मूर्खतायुक्‍तपद्मश्री का किसी होली तक या मूर्ख दिवस तक इंतज़ार नहीं है क्‍योंकि आज पूरा वेबजगत मेरे सामने मौज़ूद है। जहाँ पर मैं अपनी मूर्खताओं का डंका बजा सकता हूँ, ढोल पीट सकता हूँ, इतने पर भी मुझे कोई नहीं पीटेगा क्‍योंकि मैं रियल होने के साथ-साथ वर्चुअल भी हूँ और कोई मुझसे इस संबंध में प्रमाण पत्र भी नहीं माँगेगा। आज मुझे कोई रोक नहीं सकता, टोक नहीं सकता क्‍योंकि मैं मूर्ख1008श्री हूँ तथा स्‍वयं ही यहाँ पर संपादक, प्रकाशक और मुद्रक हूँ। मेरी मूर्खताओं के साझीदार बनने के लिए, करोड़ों देशी-विदेशी फेसबुकिए, ऑर्कुटिए, ट्विटिरिये जैसी साइटों के पाठक मौजूद हैं, इसलिए मैं अपनी मूर्खता में भी आज ख़ूब प्रसन्‍न हूँ, अपने जबड़े में जमे दाँतों से खिलखिला रहा हूँ, आप इसे दाँत फाड़ना भी कह सकते हैं। जबकि चाहे नकली भी हैं, तब भी मेरे थोबड़े के जबड़े में मज़बूती से फँसे हैं, कितना ही हँसू, बाहर नहीं गिरेंगे।  
आज मूर्खताओं को उपलब्धि बतलाकर ज़ाहिर करने का जज्‍बा वेबमाध्‍यम पर उपलब्‍ध है। मूर्खता को बतलाने के लिए आया यह विकास सकारात्‍मक है। मतलब ग़लती से खुद तो सबक लेना ही, दूसरों को भी लेने के लिए उत्‍साहित करना, दूसरे जो मेरे नितांत अपने हैं। जो ग़लती नहीं करता है वो इसे पढ़ कर सतर्क हो जाता है ताकि मूर्खता करने से बचा रहे। ब्‍लॉगों के प्रचार-प्रसार से इस प्रवृति में तेज़ी दिखलाई दे रही है। पहले ऐसी घटनाएँ-दुर्घटनाएँ दबी, ढकी, छिपी रहती थीं पर अब भरपूर आलोक बिखेरती हैं। पहले सिर्फ़ एक दिन मूर्ख दिवस पर या एक और दिन होली के दिन, लालकिले के सामने महामूर्ख सम्‍मेलन करके इतिश्री कर ली जाती है। परंतु अब ऐसा नहीं है। अब तो रोज़ आप अपने ब्‍लॉग पर महामूर्ख ही नहीं, विश्‍व महामूर्खता सम्‍मेलन कर सकते हैं। आज की मूर्खताएँ ख्‍याति भी दिला रही हैं। ब्‍लॉगों पर व्‍यक्त अनुभूतियाँ, अभिव्‍यक्तियाँ बन कर प्रचार दिला रही हैं। जो कि सिर्फ़ पोस्‍टों, टिप्‍पणियों ही नहीं, परिचर्चाओं के रूप में भी जलवा बिखेर रही हैं। हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर पूरे विश्‍व में पाठकों का इज़ाफ़ा हुआ है। इसके माध्‍यम से लिखने की प्रवृति तेज़ी से बढ़ी है, जो कि समाज के चारित्रिक मूल्‍यों का विकास कर रही है।
ब्‍लॉग लेखकों की, टिप्‍पणीकर्ता की नई लेखक प्रजाति आपस में विश्‍वास को जन्‍म दे चुकी है। दो ब्‍लॉगर मिलें और विश्‍वास न करें – ऐसा पॉसीबल नहीं है। मैंने कई ब्‍लॉगर मिलन/सम्‍मेलनों का राजधानी दिल्‍ली, जयपुर, आगरा, मुंबई, मेरठ जैसे नगरों-महानगरों में आयोजन किया है और मुझे अपनी इन मूर्खताओं पर घमंड है, घमंडी हो गया हूँ मैं। इन आयोजनों की ख़ासियत रही है कि ऐसे अधिकतर आयोजन किसी न किसी हिन्‍दी ब्‍लॉगर के घर पर ही सफलतापूर्वक आयोजित कर लिए जाते हैं, और यह पाया है कि जिस शहर में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन में जाना हो तो वहाँ के ब्‍लॉगर, अन्‍य ब्‍लॉगरों को अपने निवास पर नि:संकोच ठहराने का मूर्खतापूर्ण कार्य पूरी ईमानदारी से करते हैं।
इसी प्रकार मैं भी ऐसी मूर्खताओं के लिए सदैव तैयार रहता हूँ, बशर्ते कि मैं ख़ुद ही शहर से बाहर न होऊँ। हिन्‍दी ब्‍लॉगर नेक हैं, अनेक हैं, पर सदा एक रहेंगे। अभी इस पाँचवें मज़बूत खंबे पर आतंकवादियों, घुसपैठियों, चोरों, डकैतों, असामाजिक तत्‍वों, स्‍मगलरों इत्‍यादि की नज़र नहीं पड़ी है क्‍योंकि अगर उनकी निगाह में यह माध्‍यम आ गया, तो यह तय है कि वे निश्‍चय ही अपने कुकर्मों से तौबा कर लेंगे और समाज में उनके सुधरने से सकारात्‍मक बदलाव दिखाई देंगे।
इस प्रकार मूर्ख दिवस आज नई वजहों को लेकर सुर्खियों में है और यह सुर्खियाँ आह्लादित करती हैं। मूर्खताएँ यानी वेबकुल्फियाँ हिन्‍दी ब्‍लॉगों के ज़रिए सीख दे रही हैं। किसी ने कल्‍पना भी नहीं की होगी, जो आज हकीकत है। आज हिन्‍दी ब्‍लॉगों पर मूर्ख दिवस से पहले ही चर्चा-परिचर्चाएँ शुरू हो जाती हैं, इन पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ वास्‍तव में सुखद हैं। आज आप जैसा उन्‍माद क्रिकेट को लेकर देख रहे हैं, वही दीवानापन हिन्‍दी ब्‍लॉगों के संबंध में क़ायम होने वाला है, जिसके सकारात्‍मक नतीज़े सिर्फ़ इस दशक के पूरा होने पर अपने शिखर पर क़ायम देखेंगे और सबको अपनी ओर पूरी शिद्दत से आकर्षित करेंगे।
सृजनगाथा

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

आपकी उम्र कितनी है !!!

रोहन की टीचर कक्षा में सभी बच्चो को

नयी नयी खोजो के बारे में बता रही थी


टीचर :- बच्चो तुम्हे पता है ...


सारी दुनिया के वैज्ञानिक खोजने की कोशीश कर रहे है कि


आदमी बिना दिमाग के कितनी देर तक

जिंदा रह सकता है ...


रोहन :- मेडम, इसमें खोजने जैसी क्या बात है?

टीचर - क्यो?

रोहन - उन्हे आप

अपनी उम्र बता दीजिये ...

कुंजी बोर्ड की निरर्थक व्यंग-आत्मकथा ।

कुंजी बोर्ड की निरर्थक व्यंग-आत्मकथा ।

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
" मन मोनिटर  की  साइज़,  क्यों काट रहा है बंदे?
 सकल समस्या अपने हिस्से, क्यों  बाँछ रहा है बंदे?"


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प्यारे दोस्तों,

मैं कम्प्यूटर का,`Key Board-की-बोर्ड` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

आप सब लोग, आप के परिवार के साथ जितना समय व्यतित नहीं करते ,उससे  कहीं ज्यादा समय आप मेरे संग बिताते हैं, इस बात के लिए मैं  आपका धन्यवाद करता हूँ ।

लेकिन..!!

आप ज़रा सा समय निकालकर सोचे,क्या आप ये सही कर रहे हैं?  मैं  तो तन और  मन दोनों स्वरूप में जड़ पदार्थ  हूँ , फिर भी आप मुझे हर वक़्त  अपनी गोद में लेकर, मेरे साथ दिन-रात खेलते रहते हैं।

मगर सच कहूँ, आप जब, आपके साथ खेलने के लिए आए हुए , आपके  नन्हे मुन्ने बेटे-बेटी पर गुस्सा करके उन्हें  भगा देते हैं, और फिर मेरी कुंजीओं को, आप अपनी उंगली से, बड़े प्यार के साथ फिर से सहलाने लगते हैं तब मुझे अनहद दुःख होता है ।

मैं कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

कभी-कभी तो मेरी समझ में कुछ नहीं आता की, इन्सानी फितरत पर गुस्सा होना चाहिए, हँसना या रोना चाहिए? कुण्ठित एवं बौने सोच वाली आदम जात, अपने मन में समाये, लोभ, लालच, काम, क्रोध, मोह, माया और अभिमान जैसे, जाने माने दुर्गुणों के `Virus - वायरस` को प्रमुख जड़ से नेस्त नाबूद करने  के बजाय, मेरी `Hard Disk - हार्डडिस्क`, में  घुसते अनजान, `Virus - वायरस` को बार-बार, `SCANNING - स्कैनिंग ` करके  मिटाने की, सतर्कता बरतता  है । आगे क्या बताएं..!! ज़रुरत पड़ने पर, मेरे मन की,`Hard Disk - हार्डडिस्क`,में फैले  हुए, नुकसानदेह, `Virus - वायरस` को, `Format - फ़ॉर्मेट` करके मेरे मन को सदैव साफ सुथरा,शुद्ध रखता है ।

आदम जात को, मन में व्याप्त दुर्गुणों की वजह से पीड़ा सताती है तब, वह अपने मन में समाये, लोभ, लालच, काम, क्रोध, मोह, माया और अभिमान जैसे, जाने माने दुर्गुणों के `Virus - वायरस` फैलाने की ज़िम्मेदारी दूसरों पर  थोप देता है ।

मैं कम्प्यूटर का  `Key Board-की बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

कभी-कभी मैं भी तो आदम जात के साथ रात-दिन रहकर उब जाता हूँ  ।  इस बात का मैं गवाह हूँ की, मेरे साथ बैठे-बैठे ही, अनचाहे लोगों के साथ, फोन पर इन्सान दिन रात कितने सारे झूठ बोलता रहता है..!! मुझे  लगता है अनचाहे लोगों से,`Escape - ऍस्केप`, करके पीछा छुड़ाने की, ये कला कहीं, उसने मेरी, `Escape - ऍस्केप`, कुंजी से तो नहीं सीखी होगी?  वैसे कुछ उसूल के पक्के इन्सान भी मैंने देखें हैं, जो `Escape - ऍस्केप`, कुंजी का उपयोग यदाकदा ही करते हैं ।

पर, आप सभी दोस्तों से मैं एक बात अवश्य कहूँगा, धन्य हैं ये आदम जात..!! शायद उसे कब-कहाँ-कैसे,`Escape - ऍस्केप`, करना भले ही न आता हो, मगर जहाँ उसे अपना ज़रा सा भी लाभ दिखाई देता है, वहाँ  अपना आत्माभिमान गिरवी रखकर भी, छद्मवेष धर कर,चोरी छिपे, सँभाल कर, सही जगह पर,`Enter - ऍन्टर` कैसे करना है, ये कला अच्छी तरह जानता है ।

मैं कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

बात आदमजात के अनैतिक संबंध की हो या फिर, उसे होने वाले नुकशान के अग्रिम संकेत की..!! ऐसी परिस्थिति में किसी दूसरे को होनेवाले नुकसान की परवाह किए बिना ही, यही दोगला इन्सान, ऐसे अनैतिक- उकताऊ संबंध से ,`Back Space - बेकस्पेस`दबाकर (दूम दबाकर), उसे `Delete -  डीलीट`, करने में ज़रा भी देर नहीं करता ।

मैं नें तो यहाँ तक मार्क किया है की, कुछ बेवकूफ इन्सान को छोड़कर, बाकी  के  सारे  चतुर इन्सान, भविष्य के लिए नुक़सानदायक संबंध में, आज से और अभी से, कितना अंतर बरतना है,यह तय करके,`Space bar - स्पॅसबार` का  बख़ूबी उपयोग कर लेते हैं ।

संक्षिप्त में कहें तो, अपने दुर्गुणों के,`Virus - वायरस` को ही अपना हथियार बनाकर, अनेकविध संबंधों के बीच दायें-बाँये; उपर-नीचे,`Shift - शिफ्ट`, करके, किसी कुशल नटेश्वर की भाँति, संतुलन बनाए रखना भी आ गया है। 

मैं कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

अब ये भी बता देता हूँ की, जैसे आजकल हमारे, `की-बॉर्ड-Key Board` की जात में वायरलेस,`की-बॉर्ड-Key Board`भी फ़ैशन में हैं, वैसे ही अपने आप को, दूसरे लोगों से सर्वाधुनिक मानने वाले अभिमानी,समाज में मान सम्मान पाने के भूखे,  मगर स्वभावगत मूर्ख के बड़प्पन को, कुछ स्वार्थी, चतुर लोग,`Caps Lock - कॅप्सलोक ; Shift - शिफ्ट`, की  तरकीब आज़मा कर,`Capital letters - कैपिटल लेटर्स`, जैसा बड़ा बनाकर, उस मूर्ख के अहम को सहलाते हैं  और थोड़े समय के लिए ही सही, उनको, समाज में बड़ा स्थान देकर, अपने निजी स्वार्थ को बड़ी चतुराई के साथ, साध लेतें हैं ।

हालाँकि, अपना मलिन इरादा पुरा हो जाने के बाद, ऐसे स्वार्थी लोग,`Tab - टॅब`, का सहारा लेकर, ऐसे झूठे संबंध से आज़ादी पाने के लिए, संबंध के,  `Courser - कर्सर` को,  उन सम्मान के भूखे-मूर्ख लोगों से इतना दूर  भाग जाते हैं की फिर वह, `Recycle - रिसायकिल बीन` में ढ़ूंढने पर भी  नहीं  मिलते  हैं ।  

मैं कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

पता नहीं ये आदम जात ऐसा क्यों करती होगी..!! मेरी कुंजी के ज़रिए, ये लोग न जाने विश्व भर में कैसी - कैसी,`Window - विडोज़`, में  दृष्टि-भ्रमण कर आते हैं, लेकिन ताज्जुब की बात हैं..!! आदमी,  खुद की नज़रों से सिर्फ एक फूट की दूरी पर स्थित, हृदय की विन्डो में, एक क्षण के लिए,  झाँकना ज़रुरी नहीं समझता?
सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देनेवाले आत्मा की आवाज़, ऐसे इन्सानों के हृदय की ,`Window - विन्डो`, के भीतर प्रवेश करें, ये बात उन्हें मंज़ूर नहीं होती । शायद इसीलिए, अपनी सच्ची-अच्छी भावनाओं को ये लोग,` Num Lock - नम लॉक`, के उपयोग द्वारा जड़ और चेतना शून्य कर देते हैं, इतना ही नहीं, अपने अलावा दूसरे किसी आदमी को ग़लती से भी समाज में महत्व प्राप्त न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए,`Upper Case - अपर केस`, को ये इर्षालु लोग कभी हाथ भी नहीं लगाते ।

कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ ।

कुछ  चालाक लोग, खुद कुछ नहीं करते मगर  उनके  ज़रूरतमंद आश्रित व्यक्तिओं  का  बड़ी  होशियारी से, `Alt - ऑल्ट; Ctrl - कंट्रोल` अपने पास रखकर ` F1 - एफ 1 से F12 एफ १२`, जैसे  विविध तरीके आज़मा कर, एक ही तीर से कई सफल निशाने लगाते हैं । ऐसे इन्सान अपनी ज़ुबान पर सारी दुनिया के,`Word processing programs - शब्द संसाधन प्रोग्रामों` की मधुमिश्रित शब्द मायाजाल में इतनी ढ़ेर सारी मिठास,`Insert -इन्सर्ट` कर देते हैं की उसके प्रभाव में आने वाले व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी ही लग जाए..!!

मैं कम्प्यूटर का `Key Board-की-बोर्ड ` हूँ ।
आज मैं आपको मेरी `निरर्थक व्यंग्य-आत्मकथा` सुनाना चाहता हूँ । 

आप को पता है? आजकल ईश्वर के दरबार में, सभी मानव के अच्छे-बुरे कामों की,`History - हिस्ट्री`, दर्ज करने के लिए, चित्रगुप्त भी,`Key Board - की बोर्ड`,का उपयोग करने लगे हैं..!! याद रखना, जब  भगवान के आदेश पर, चित्रगुप्त आपके बुरे कामों की,`History - हिस्ट्री`,की लं..बी `Print - प्रिंट`, निकालकर उसे, `Scroll Lock - स्क्रोल लॉक`, (गुप्त अहवाल?) के रुप में,आपके हाथ में थमा देंगे तब, अपने ही कुकर्मों का कच्चा चिठ्ठा पढ़कर, आप सर से पाँव तक, `Hang - हेंग `, मत हो जाना..!!

आज के दिन बस इतना ही, मुझे लगता है, मैं  एक नाचीज़ सा,`Key Board - की बोर्ड`हूँ,फिर भी आत्मकथन के नाम पर मैंने, मेरी हैसियत से ज्यादा निरर्थक प्रलाप किया है । अंत में, सिर्फ  एक  बात  कहना  चाहता  हूँ, मैं तो सदैव आपका साथी रहूँगा ही, मगर मेरा ग़लत उपयोग करके, मन के,`Monitor -मोनिटर`, पर दुर्गुणों की,`Porn site  - पोर्न साइट` जैसी गंदकी मत फैलने देना ।  अब आपसे उम्मीद करता हूँ की, मेरे चारों , `Arrows - ऍरो`,  की सहायता से आपके सात्विक विचारों को, सही दिशा प्रदान करके, इन्सानियत को याद रखकर, जैसे `सुबह का भूला,शाम को घर लौट आता है ।` वैसे ही, आप भी सही सलामत वापस अपने,`Home -हॉम` कैसे  लौट आएं, ये बात अच्छी तरह से सीख लें ।                                                                             

वैसे कम्प्यूटर के, १४,१७,१९, और उसके उपर की साइज़ के मोनिटर, साइज़ कम होते-होते सिकुडकर मोबाईल फोन की साइज़ के हो गये हैं, मगर ज़रा अपने मन के मोनिटर की साइज़ दिनोंदिन चौड़ी करते रहना, उसे सिकुडने मत देना, क्योंकि, इन्सान की सही पहचान ही अपने मन के बड़पन से होती है । 
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`ANY COMMENT`                  

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०२-अप्रैल-२०११.

चेट कॉल


चेट कॉल

यह कुछ बरस पहले की बात है. कहिए आप बीती है.

एक रविवार को दोपहर करीब तान बजे के  आसपास हम सब कैरम खेल रहे थे...
तभी मेरे फोन की घंटी बजी.

बात लैंड लाइन की है. वो जमाना मोबाइल का नहीं था.

जैसे मैंने फोन उठाया और ...हलो फरमाया ...

दूसरे छोर से एक सुरीली आवाज आई... आप कौन बोल रहे है?

मुझे सनक चढ़ गई, (फोन करके मुझसे पूछती है ? )...

मैंने पूछा - आपको किससे बात करनी है.

उधर से फिर वही सवाल... आप कौन बोल रहे है?

जब यही बात तीन चार बार हो ली, तब लगा ...

बात बेकाबू होती जा रही है, अब विराम देना चाहिए...

मैंने थोड़ी कड़क दार आवाज में पूछा .. आपको किससे बात करनी है?

शायद अबतक उधर भी ऊब आ गई थी.. ..

आवाज आई.., आपसे ही बात कर लेते हैँ.

मैने कहा... हाँ बेटा बोलो.. क्या बात करनी है...

शायद संबोधन ने अपना काम कर दिया ...

उधर से फोन रख दिया गया...


कभी कभी ऐसे मजेदार वाकए भी हो जाया करते है...

इसे एप्रिल फूल का फूल ही समझ लें चलेगा...

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल ।


COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल ।


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" दोस्त, अगले महीने की क्या प्लान है?" दोस्त ने सवाल किया ।

" ह..म..म; देखो ना, जापान के  न्यू  क्लियर  रॅडियेशन  हादसे की वजह से, विश्वभर में तापमान  का  पारा उपर चढ़ने वाला है, सो खिड़कीयों में खस (शीतमूलक) की टाट का पर्दा लटका कर, पानी छिड़कते रहेंगें । बाद में जो होगा, देखा जाएगा..!!" मैनें जवाब दिया ।

" ये बात नहीं पूछ रहा..!! पहली अप्रैल के प्लान की बात कर रहा हूँ । मुझे अप्रैल फूल बनाने के लिए दोस्तों ने कोई प्लान तो नहीं किया है ना?"

" छोड़ यार..!! मैं क्या प्लान करुं? हर साल, पहली अप्रैल को मैं खुद किसी न किसी से  बेवकूफ़ बन जाता हूँ..!!"

मेरे दोस्त ने गहरी आह भरते हुए, अफ़सोस जाहिर किया," सही बात है, मेरा भी यही हाल है ..!! यार, एक अप्रैल का दिन, मुझे अगले दिन तक याद रहता है पर दूसरे दिन सुबह उठते ही मेरी याददास्त, मेरा साथ छोड़कर, मुझे अप्रैल फूल बना देती है..!!"

वैसे, मुझे मेरे मित्र की बात में बहुत दम लगता है..!! आजकल तो जिंदगी की हर एक बहुमूल्य गंभीर क्षण को भी, हँसी में उड़ाने की मान्यता धारण करनेवाले सभी लोग, होली के शुभ त्योहार का आनंद प्रमोद और रंग भरी ठीठोरी, भांग के नशीले माहौल से ठीकसे उभर न पाए हो, इतने में ही लोगों को फिर से वही ठिठोलिया माहौल प्रदान करनेवाला मौके का नाम  है, "COOL-COOL एक ही भूल, अप्रैलफूल-अपैलफूल..!!"

पहली अप्रैल से इतना डरने वाले मेरे मित्र का, आतंकित चेहरा देखकर, मुझे हमारे गुजराती मकाकवि श्रीअखा का एक `छप्पा` याद आ गया..!!

(सिर्फ मर्मानुवाद)

" एक  ज्ञानी  और  दूजी नाव, पार उतारन, दोनों  का  भाव;
  भूपति - भिखारी, गर्दभ - गाय, सर्वे  पार  उतारे, चैतन्य जान ।
  ब्राह्मण - अंत्यज  न  माने, अखा  मन  में धरे,  यही  विचार  ।

अर्थात- राजा हो या रंक, गाय हो या गधा, मन में ऐसा कोई भेद किए बिना ही नैया, हमेशा सब को पार कराती है , इसी   प्रकार  ज्ञानी भी, किसी को ब्राह्मण - शूद्र ; किसी को उच्च - नीच माने बिना ही, जगत में हर कोई परम परमात्मा ब्रह्म है, ऐसा जानकर तमाम को ज्ञान  देकर  भव  पार कराता है ।

हालाँकि, गुजरात के महाकवि श्रीअखा के यह चिंतनात्मक `छप्पा` के संदर्भ में, ज्यादा चिंतन करते हुए, मेरे जैसा  अल्पज्ञानी इतना ही समझ पाया की, पहली अप्रैल  के  रोज़, किसी दूसरे को बेवकूफ़ बनाने के लिए उत्तेजित हो उठा महामानव (?) भी, उसके सामने अमीर हो या ग़रीब, स्वभाव से गाय जैसा हो या गर्दभ जैसा, उम्र में बड़ा हो या छोटा, नर हो या नारी, बस ऐसा कोई भी भेद जाने बिना, सभी  निर्दोष लोगों को, परम ब्रह्म का अवतार जानकर, सब की `अप्रैल फूल` फिल्म (उ)-तारता है ।

पहली अप्रैल को बेवकूफ़ बनने के बाद, मैं अक्सर सोचता हूँ, हर साल पहली अप्रैल के दिन दूसरों को बेवकूफ़ बनाने का `कुप्रबंधन आविष्कार` किस गर्दभ ने  किया  होगा..!!    

शायद ऐसा हुआ होगा, सारे देश में  होली-धुलेटी के त्योहार के दिन, किसी की, `OPEN HEARTED` स्वभाव की धर्म पत्नी के साथ, "भाभी, भा..भी, भा..भी..ई..ई; बुरा ना मानो होली है..ए..ए..!!", जैसा कुछ लाड़ प्यार जताकर,` तन फटे पर रंग मिटे नहीं` जैसे पक्के घातक रासायनिक लाल, पीले, नीले, काले रंगों से, भाभी के मुँह को काला करनेवाले शरारती दोस्तों पर, शरीर से दुर्बल पर बुद्धि से बाहुबल, डेढ़ चंट पति देव नाराज़ हुआ होगा..!! फिर होली-धूलेटी के दिन खुद की धर्म पत्नी के साथ,ऐसे ज़बरदस्ती बने बैठे देवरों के अधम कर्मों बदला लेने के लिए, अपनी चतुराई के सर्वश्रेष्ठ उपयोग द्वारा, छद्म भाव धारण करके, पहली अप्रैल के दिन, उन सब को बेवकूफ़ बनाकर, अपने मन की भड़ास निकाली होगी..!!

और फिर तो क्या..!! समय के बहते, किसी डेढ चंट मित्र (पति) की ऐसी हरकत से खिसियाए, ये सारे  बेवकूफ़  मित्र उर्फ़ देवरने मिलकर अपनी भड़ास दूसरे लोगों पर निकाली होगी और `अप्रैल फूल` का यह सिलसिला, किसी तांत्रिक बाबा के `एक का तीन` वाले `chain system` की भाँति सारे देश-विदेश में, किसी कम्प्यूटर वायरस की मुआफ़िक़ विश्वभरमें फैल गया होगा..!!

वैसे, मेरे इस तर्क के साथ कई मित्र सहमत नहीं है..!! उनका कहना है की," ये प्रिंट और टीवी मिडीयावाले, किस बात का बदला लेने के लिए,अपने पाठक और दर्शकों के साथ,मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैलफूलिया मज़ाक का मज़मून तैयार रखते हैं?"

अपना तर्क कायम रखते हुए जवाब मैंने दिया,"शायद, ये प्रिंट और टीवी मिडीयावाले, जान गये हैं की, पैसा चूकाकर भी, सभी पाठक और दर्शकों को, पहली अप्रैल को  बेवकूफ़ बनना अच्छा लगता है..!!" 


अप्रैल फूल और महाभारत ।

हमने बचपन में, तांबे के काने एक पैसे के साथ पतंग का धागा बाँधकर, बीच रास्ते में काना पैसा रखकर, जैसे ही कोई, काना पैसा लेने के लिए झुकता, उसी समय धागे के साथ पैसा खींचकर कई लोगों को हमने `अप्रैल फूल` बनाया था ।

खेर, ये तो बचपन की हानिरहित मासूम मज़ाक होती थी, पर अब तो आधुनिक तकनीक के चलते, म्यूज़िकल कार्ड, नाना प्रकार की युक्ति प्रयुक्तिवाले उपहार की चीजें, मुफ्त सोसियल वेब साइट, तस्वीर संपादन सॉफ्टवेयर, SMS, MMS, आवाज़ परिवर्तक उपकरणों का सहारा लेकर  कई समझदार व्यक्ति भी मासूम लोगों को अप्रैल फूल बनाने के अतिउत्साह में, कभी इतनी धीनौने प्रकार की हरकत कर बैठते हैं की, उस मासूम व्यक्ति को सामाजिक,आर्थिक,शारीरिक या फिर मानसिक संताप, नुक़सान होते ही अंत में महाभारत हो जाता है ।

उत्तर महाभारत में महर्षि वेदव्यास और महर्षि जन्मेजय के मत अनुसार," द्वापर युग के युगान्तकाल के साथ ही, शुरु होनेवाले कलयुग में, मनुष्य को अल्प प्रयत्न से श्रेष्ठ धर्म लाभ मिल सकता है ।" ऐसे में इस हलाहल कलयुग में,उल्टी-सीधी हरकत करके हास्य पैदा करने की प्रवृत्ति को ही, जीवन का परम धर्म मानने वाले, मज़ाक़िया इन्सानों के लिए, अपनी गुरुताग्रंथि के अहम की संतुष्टि के लिए, पहली अप्रैल का बहाना हमेशा ज़ुबान पर रहता है ।

सभी को ज्ञात है की, जब महाभारत की रचना हुई, उस समय अप्रैल महीना, अप्रैल महीने के नाम से नहीं जाना जाता था । महाभारत के सभा पर्व में किए गये वर्णन के अनुसार, माता कुंताजी के आग्रह से, पांडवों अपने मृत पिता पाडुंराजा की सदगति के लिए, राजसूय यज्ञ का आयोजन किया था । राजसूय यज्ञ में कौरवों सहित आयें हुए कई राजा-महाराजाओं के मनोरंजन हेतु, सभामंडप में,`जहाँ जल वहाँ स्थल और जहाँ स्थल वहां जल` जैसी हैरत भरी रचनाएं की गई थीं । `अप्रैल फूल` के इस भूलभूलैया में फँस कर दुर्योधन हँसी के पात्र बनते ही,दौपदी ने दुर्योधन को, `अंधे के पुत्र अंधे जैसे`, किसी भी मर्द का सीना छलनी कर देनेवाला फूहड़ उपहास करते ही, महाभारत के महाभिषण युद्ध के दुन्दुभि बजने लगे थे । इसीलिए, भाव जगत के कुछ विद्वान मानते हैं की,`सात्विक प्रसन्नता` और `फूहड़ प्रसन्नता` के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है ।

अमेरिकन कवि जॅम्स गेटे के (September 15, 1795 - May 2, 1856) सुविख्यात कथन के अनुसार, `प्रसन्नता सभी सद्गुण की माता है ।`

अप्रैल फूल मनाने वालों के उत्साह को, थोड़ा लगाम  कसने के लिए जॅम्स गेटे का ये कथन ,अगर  हम  ज़रा सा  बदल दें तो, ऐसा कह सकते हैं की,"फूहड़ प्रयत्न से पैदा हुई प्रसन्नता सभी सद्गुण की अपर-माँ है?"

अप्रैल फूल बनने वालों के लक्षण ।

हर एक मानव को अपैलफूल का स्वाद, जन्म होते ही पलने में ही मिल जाता है । छोटे बच्चों को पलने में सुलाने के लिए,  रचे  गए  बाल गीत के शब्दों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा होता है ,ऐसे में ये बाल गीत एक प्रकार का अप्रैल फूल ही तो  है..!!"

कभी कभी, मन में यह ख़याल आता है, कैसे स्वभाव के लोग अप्रैलफूल के  झांसे  में  आ जाते होंगे ।

* दूसरों पर भरोसा करनेवाले * मूर्ख * बालिश * कमज़ोर मन * अति आत्मविश्वासु * अति लालची * अज्ञानी और अनजान मानव

देश विदेश में अप्रैल फूल ।

पाश्चात देशों में प्रति वर्ष, मनाये जानेवाले, पहली अप्रैल के जश्न को,`All Fools' Day`भी कहा जाता है । जिसमें व्यवहारिक रुप से सहन कर सकें, ऐसी मज़ाक आप्तजन, संम्बधी, मित्र, शिक्षक, विद्यार्थी, पड़ोसी और कामकाज के स्थल पर सहकर्मचारीओं  के साथ निर्दोष स्वरुप में आज़माकर, मज़ाक का आनंद प्राप्त किया जाता है ।

न्यूझीलेन्ड, इंग्लेंड, ऑस्ट्रेलिया, आफ्रिकन कन्ट्रीज़, आयरलैड, फ़्राँस, इटली, जापान, रशिया, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में अप्रैल की पहली तारीख को अप्रैल फूल मज़ाक और धूमचक्कड मचा कर जश्न मनाया जाता है ।  वैसे तो, सन-१३८० से, कुछ अंग्रेजी गीत और कहानीओं में, अप्रैल फूल की  प्रथा का जिक्र किया गया है । पर सब से पहले सन-१९९८ में लंदन मे ""A ticket to Washing the Lions" के नाम से अप्रैल फूल को अधिकृत रुप से दर्ज किया गया था । स्कॉटलेन्ड में इसे,` TAILY`, फ्रांस, कनाडा में 'Avril` और  ईरान में इसे,`Sizdah Bedar` के नाम से पहचाना जाता है ।

अप्रैल फूल-अजीबोगरीब तरीके ।

* पश्चिम बंगाल २०११ के विधानसभा चुनाव में सुश्रीममता दीदी को मुख्यमंत्री चुना गया..!! * बैंक के ATM से रुपयों की जगह सोना निकल रहा है..!! * पू.बाबा रामदेवजी, उनके टापू पर सभी ग़रीबों को एक-एक निवास मुफ़्त देनेवाले हैं..!! * श्री नरेन्द्र मोदीजी, अगले प्रधानमंत्री होंगे..,भाजपा प्रवक्ता..!! * ऐश्वर्याराय बच्चन को, जेम्सबोंड की फिल्म में साइन किया गया है..!! * संसद में ३३% से बढ़ाकर १००% महिला अनामत का कानून पारित किया गया है..!!

अपैलफूल और बॉलीवुड

दोस्तों, अप्रैल फूल की बात आते ही, सन-१९६४ की निर्माता-निर्देशक श्रीसुबोधमुखर्जी की, विश्वजित और सायराबानू अभिनित, हिन्दी फिल्म,`अप्रैल फूल` की याद आ जाती है । इस फिल्म में  मरहूम श्रीमहंमद रफीजी का गया हुआ एक गाना," अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया,मेरा क्या कसूर ज़माने का कसूर जिसने दस्तूर बनाया ।" आज भी सब की ज़ुबान पर है ।

अप्रैल फूल-सावधानी

*किसी एक व्यक्ति को पूरा दिन लक्ष्य न बनाएँ । * जो अपनी मज़ाक होने पर मरने-मारने पर उतारु हो जाता हो, उनसे दूर रहें । * किसी के मन को आघात लगे, ऐसी मज़ाक ना करें । *किसी को चोट पहुंचे ऐसी मज़ाक ना करें । * संबंध की मर्यादा को कभी न लांघे । * अश्लील मज़ाक न करें । * ईर्ष्या, अहम और पूर्व ग्रह से बाध्य होकर मज़ाक न करें । * जिनकी मज़ाक की जाए, उसके आनंद का भी ख़याल करें । * किसी अपंग-पंगु, मृत, बीमार व्यक्ति को लेकर, इस विषय पर मज़ाक न करें । * किसी जाति,धर्म,निर्धनता या शारीरिक अक्षमता पर मज़ाक न करें । * ब्लॉग या वेब साइट पर अनजान दोस्तों से मर्यादा बाँघकर मज़ाक करें । * मज़ाक के लिए, ज्यादा रुपये खर्च न करें । * पति-पत्नी या मित्र के साथ, बच्चों की उपस्थिति में ऍडल्ट मज़ाक न करें । *

दोस्तों, इस तनाव से भरी जिंदगी में हँसना बेहद  ज़रुरी है मगर,सबसे पहले खुद पर हँसना सीखना चाहिए । वैसे

अभी तो,लगता है की, हमारे देश की राज्य व्यवस्था और राजकीय नेता, हमारा नित्य मनोरंजन करनेवाले सबसे बड़े विदूषक है ।

सुप्रसिद्ध अमेरिकन लेखक मार्क ट्वैईन के मत अनुसार," हम पहली अप्रैल को बेवकूफ़ न बने ,इस बात का ध्यान रखते समय साल के बाकी ३६४ दिन बेवकूफ़ बनानेवाले है यह बात भूल जाते हैं ।"

सन-२०११ की सबसे बड़ी मज़ाक मतलब, Helpless PM.( पर दुःख भंजन महाराजा ) और Hopeless CM.(कॉमन मैन) मानी जानी चाहिए,क्यों की ये सब लालची नेताओं को हम ही चुन के गद्दी पर बिठाते हैं ।

हमारे,(PM उवाच ।) कुछ झलकियाँ-

* सत्ता पर टिके रहने के लिए गठबंधन मजबूरी है..!! * भ्रष्टाचारी को छोड़ा नहीं जाएगा..!! * अभी तो मुझे बहुत काम करना है..!! (PM) * मेरे हाथ बंधे हुए हैं..!! * सरकारी गोदाम में सड़ने वाला अनाज, नीतिविषयक मामला है..!! * आतंकवाद नाबूद करके रहेंगे..!! * मैं मजबूर हूँ * नैतिकता का ध्यान रखें तो, प्रत्येक छह मास में चुनाव कराने की नौबत आ जाएं..!!

हाल की केन्द्र सरकार के इरादों को लेकर,मुझे पुरानी फिल्म, `शोला और शबनम` का, श्रीरफीसाहब का  गाया हुआ एक गाना याद आ रहा है," माननीय पी. एम. जी, जाने क्या ढूंढती रहती हैं (हमारी) ये आंखे तुझमें, राख़ के ढेर में शोला है ना चिंनगारी है..!!"

"हे..रा..म..!!"

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"ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवे । दिनांकः १-अप्रैल -२०११.