मंच पर सक्रिय योगदान न करने वाले सदस्यो की सदस्यता समाप्त कर दी गयी है, यदि कोई मंच पर सदस्यता के लिए दोबारा आवेदन करता है तो उनकी सदस्यता पर तभी विचार किया जाएगा जब वे मंच पर सक्रियता बनाए रखेंगे ...... धन्यवाद   -  रामलाल ब्लॉग व्यस्थापक

हास्य जीवन का अनमोल तोहफा    ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।

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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

आधुनिक बोधकथाएँ. ७ - " मैं संसदताई । "

आधुनिक  बोधकथाएँ. ७ - " मैं  संसदताई । " http://mktvfilms.blogspot.com/2011/12/blog-post_30.html "लोकशाही  को  ठोकशाही   बनाने  की  ली   है  ठान..!! अय आम जनता, भाड़  में जा,तुं  और तेरा लोकजाल..!!" एक स्पष्टता- इस बोधकथा का, अपने  देश  की  लोकशाही  से कोई  लेना-देना  नहीं  है । ===== " मैं  संसदताई । " ( दरवाज़ा- "ठक-ठक,ठक-ठक,ठक-ठक ") संसदताई-" आती  हूँ  बाबा, ये  सुबह-सुबह  ११  बजे  कौन  आ धमका..!! कौन  है ?" लोकजाल-" संसदताई, मैं  लोकजाल..!!" संसदताई-" कौन ?"  लोकजाल-" लो..क..जा..ल..अ..!!" संसदताई-...

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

उड़ती धूप -`गॅ पार्टी ।` लघु वार्ता(वि)लाप..!!

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/12/blog-post_17.html उड़ती  धूप -`गॅ पार्टी ।`लघु  वार्ता(वि)लाप..!! "उम्र की उड़ती  धूप, तुम्हें  छू कर निकल  गई  क्या?  अब सुखाते  रहना तुम, ओस की गीली आवाज़  को..!! * उम्र के  सारे  पड़ाव, इन्सान  को  जब  उड़ती  धूप  के समान लगने लगते  हैं तब, उसे यह  बात  समझ  में  आती  है  कि, ज़िंदगी  में  अनुभव की  कमी  की  वजह  से, नादान  ओस  की  मासूम  नमी  भरे  तानें (कटाक्ष)  सुखाते  समय, कभी कभार  ऐसी  आवाज़ें, इन्सान...

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

तबीब कसाई हो गए? (व्यंग गीत ।)

तबीब  कसाई   हो   गए? (व्यंग गीत ।) http://mktvfilms.blogspot.com/2011/11/blog-post_27.html चेहरे    की   चमक,   तेरी  जेब   की  खनक, सब   कुछ  देखो,  हवा  -  हवाई   हो   गए..!! मुफ़्त   में   तबीब   ये  बदनाम   हो    गए  ? जब   से   तबीब, इलीस  कसाई   हो   गए ?   ( इलीस =  धर्म  मार्ग  से  भ्रष्ट, शैतान )   अंतरा-१. इन्सानियत   की   तो,   ऐसी   की   तैसी..!! साँठ - गाँठ   है   ज़िंदा,   वैसे  ...

शनिवार, 26 नवंबर 2011

ख़ुदगरज लीडर । (व्यंग गीत ।)

ख़ुदगरज  लीडर । (व्यंग गीत ।) http://mktvfilms.blogspot.com/2011/11/blog-post_26.html ख़ुद    से   भी  ख़ुदगरज  होते  हैं  लीडर । ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर । अंतरा-१. धन - दौलत  के  चंद  टूकड़ों   की  ख़ातिर, हर   पल  ज़मीर   से   झगड़ते   हैं   लीडर । ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते   हैं   चीटर । अंतरा-२. जन्नत  हथिया  कर, ईमान  दफ़ना  कर,  जन्नत को जहन्नुम,  बदलते   हैं  लीडर । ख़ुद   को   ही  ख़ुदा  समझते...

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

गधे पर शेर...

मेरे पिछले पोस्ट में मजबूरी वश मुझे प्राप्त सवाल का जवाब ही पोस्ट कर सका क्योंकि सवाल मेल से मिट गया था.अब वही सवाल मेरे पास फिर आ गया है, इसलिए सवाल और जवाब दोनों पोस्ट कर रहा हूँ. सवाल था गधे पर फोटो देख कर शेयर लिखिए.और प्रेषक का शेर भी साथ था --देखिए फोटो, पढ़िए शेर और फिर मेरा जवाब... शायद अब तालमेल भाए.. प्रेषक का शेर... हर समंदर में साहिल नहीं होता, हर जहाज पे मिसाइल नहीं होता, अगर धीरुभाई अम्बानी नहीं होता, तो - हर गधे के पास मोबाईल नहीं होता | मेरा जवाब .... Sahi hai bhai, सही बात है भाई !!!!! Aaj har gadhe ke paas mobile hota hai, आज हर गधे के पास मोबाईल होता है, par kya har mobile wala gadha hota hai? पर क्या मोबाईल वाला...

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

जरा सोचिए...

Sahi hai bhai, सही बात है भाई !!!!! Aaj har gadhe ke paas mobile hota hai, आज हर गधे के पास मोबाईल होता है, par kya har mobile wala gadha hota hai? पर क्या मोबाईल वाला गधा होता है? Agar haan to sochye !!!!!!*अगर हाँ तो सोचिए, waqt padne par gadhe ko bhi baap banana padta hai, वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, kya  waqt aane par "baap ko bhi ........................"? क्या वक्त आने पर बाप को भी  "........................................."? एम.आर.अयंगर.094252791...

सोमवार, 31 अक्टूबर 2011

आज के रावण

आज के रावण रामचंद्र जी मार चुके हैं,त्रेतायुग में रावण को,आज रावणी मार रही है,कल युग में भी जन जन को. सीताहरण पर श्रीराम ने,रावण को मार गिराया है,खुशियाँ मनाने हर वर्ष ,जनता ने रावण को जलाया है. बचपन में लगता था यह तो,हर्षोल्लास का प्रतीक है,अब बोध होने लगा,यह बस केवल लीक है. शारीरिक रावण तो मर गया,पर मन का रावण मरा नहीं,रावण के जलने से ये,बन धुआँ हवा में समा गईं. परिणाम, अनेकों रूपों मे,रावण, फिर-फिर पनप गए,नाम अलग हैं,काम अलग हैं,सबमें कुछ कुछ.रावणी बुद्धियाँ समा गईं. और ये सब उभरते रावण,हर बरस इकट्ठा होते हैं,हर बरस हर्ष मनाते हैं, एक रावण का पुतला खाक कर,अनेकों रावण के पैदा होने का,मिलकर जश्न मनाते हैं. अच्छा होता,रावण के साथ, हर बरस,रावणी प्रवृत्तियां भी जल कर,खाक हो जातीं,तो आज भारत में,रावण की नहीं,राम की धाक हो जाती. जो हो रहा है,इससे यह पैगाम उभरता है,रावण का पुतला ही जलता है,पर...

रविवार, 23 अक्टूबर 2011

भ्रष्ट-व्यंग-दोहे ।

भ्रष्ट-व्यंग-दोहे ।http://mktvfilms.blogspot.com/2011/10/blog-post_21.htmlआज के हालात के अनुरूप, यथार्थ, भ्रष्टाचारी-व्यंगात्मक दोहे. .!! (१)* आदरणीय श्रीअण्णाजीके दल में घूसे हुए, तकसाधुओं को समर्पित...!!अण्णा अण्णा सब जपे, देखत है सब ताल,मौका जिसको जब मिले, एंठत है सब माल ।(२)* जेल के बजाय आज भी, जो नेता महलमें एश कर रहे हैं, उनको समर्पित..!!भ्रष्टाचारी मत कहो, लेता कभी - कभार,बकते हैं जो बकबकें, भरता उदर अपार ।(३) * भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन कर रहे, कार्यकर्ता पर, हिंसक हमला करनेवालों को समर्पित..!!बजरंग तो बदल गए, कलयुग गयो समाय,लंकादहन को भूल ये, अवध को ही जलाय ।(४)* पार्टी फंड एंठनेवाले, राष्ट्रिय पक्षों के शिर्षस्थ...

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

स्वतंत्र भारत गणतंत्र हमारा,ऐसा जनतंत्र हमारा,जनता पर तंत्र हमारा,यह है स्वातंत्र्य हमारा. करते हैं शांति की बातें,वैसे हम भ्रांति फैलाते,चादर जितना भी होवे,पूरे हम पैर फैलाते. करते हैं जो करना हो,कहते हैं जो कहना हो,कथनी करनी में अपनी,समता हो तो बतलाएं. भारत के भाग्य विधाता,ऐसी है आज की गाथा,जिसको, जो भी मिल जाता,उसको वह खा पी जाता. इसका कोई दंड बनाओ,या फिर कोई फंड बनाओ,जितना खाने मिल जाए,मिल जुल कर बाँट के खाओ. .......................................एम.आर.अयं...

रविवार, 9 अक्टूबर 2011

ठोकर न मारें...

ठोकर न मारें दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,और प्रदीप्यमान सूरज को,रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!! और न ही कीजिए अपमान,सूरज का और दृष्टिहीनों का. इसलिए डालिए रोशनी उनपर,जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,ताकि सम्मान हो रोशनी का,और देखने वालों का आदर. एक बुजुर्ग,जिनकी दृष्टि खो टुकी थी, हाथ में लालटेन लेकर,गाँव के अभ्यस्त पथ से जा रहे थे, एक नवागंतुक ने पूछा,बाबा, माफ करना,दृष्टिविहीन आपके लिए, इसलालटेन का क्या प्रयोजन है ? बाबा ने आवाज की तरफ,मुंह फेरा और बोले – बेटा तुम ठीक कहते हो.मेरे लिए यह लालटेन अनुपयोगी है,फिर भी यह मेरे लिए जरूरी है. ताकि राह चलते लोग, कम से कम इस लालटोन की,रोशनी में देखकर,मुझ जैसे  बुजुर्ग को—ठोकर न मार...

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