
आधुनिक बोधकथाएँ. ७ -
" मैं संसदताई । "
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"लोकशाही को ठोकशाही बनाने की ली है ठान..!!
अय आम जनता, भाड़ में जा,तुं और तेरा लोकजाल..!!"
एक स्पष्टता- इस बोधकथा का, अपने देश की लोकशाही से कोई लेना-देना नहीं है ।
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" मैं संसदताई । "
( दरवाज़ा- "ठक-ठक,ठक-ठक,ठक-ठक ")
संसदताई-" आती हूँ बाबा, ये सुबह-सुबह ११ बजे कौन आ धमका..!! कौन है ?"
लोकजाल-" संसदताई, मैं लोकजाल..!!"
संसदताई-" कौन ?"
लोकजाल-" लो..क..जा..ल..अ..!!"
संसदताई-...