आज के रावण
रामचंद्र जी मार चुके हैं,त्रेतायुग में रावण को,आज रावणी मार रही है,कल युग में भी जन जन को.
सीताहरण पर श्रीराम ने,रावण को मार गिराया है,खुशियाँ मनाने हर वर्ष ,जनता ने रावण को जलाया है.
बचपन में लगता था यह तो,हर्षोल्लास का प्रतीक है,अब बोध होने लगा,यह बस केवल लीक है.
शारीरिक रावण तो मर गया,पर मन का रावण मरा नहीं,रावण के जलने से ये,बन धुआँ हवा में समा गईं.
परिणाम, अनेकों रूपों मे,रावण, फिर-फिर पनप गए,नाम अलग हैं,काम अलग हैं,सबमें कुछ कुछ.रावणी बुद्धियाँ समा गईं.
और ये सब उभरते रावण,हर बरस इकट्ठा होते हैं,हर बरस हर्ष मनाते हैं,
एक रावण का पुतला खाक कर,अनेकों रावण के पैदा होने का,मिलकर जश्न मनाते हैं.
अच्छा होता,रावण के साथ, हर बरस,रावणी प्रवृत्तियां भी जल कर,खाक हो जातीं,तो आज भारत में,रावण की नहीं,राम की धाक हो जाती.
जो हो रहा है,इससे यह पैगाम उभरता है,रावण का पुतला ही जलता है,पर...