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शुक्रवार, 17 जून 2011

छींटे और बौछार



छींटे और बौछार


झुंझला के तुमने जैसे,

झिड़का था एक बार,

फिर एक बार वैसा ही अपना,

मुखड़ा सँवार लो.
...........................................

कैसे सुनाई दे मुझे,

जो जुबाँ तेरी कह रही,

शोरगुल जो कर रहे,

तेरे ये दो चंचल नयन.
............................

साल भर हम सो रहे थे,

एक दिन के वास्ते,

जागते ही ली जम्हाई,

और फिर हम सो गए.
.........................................

हम कर सकें बेहतर जिसे,

अंग्रेज क्यों करने लगे,

आजादी अपने देश को वे,

दे गए क्या इसलिए  ???
……………………………………..

इंद्र धनुष के रंग क्यों गिनो,

यह दुनिया बहुरंगी है,

आलीशान मकानें में भी,

दिल की गलियाँ तंगी हैं,

मन:स्थिति कैसे भी बाँच लो,

वस्तुस्थिति तो नंगी है,

भले जुबानी हिदी बोले,

करें सवाल फिरंगी हैं,

भीड़ भरी है हाईवे पर अब,

और खाली पगडंडी हैं,

शहरों का अंधी गलियों में,

धन दौलत की मंडी है.
...........................................

एम.आर.अयंगर.
0997996560.

3 टिप्पणियाँ:

ब्लॉगर पाठक महोदय,

यहाँ साकी भी पुराना है और जाम भी पुराना है.
केवल बोतल बदली है. जिसकी अनुमति मयखाना खुद सरे आम
रोलिंग स्क्रिप्ट में सारे पीने वालों को दे रहा है.

इसलिए विशेष कर ... यह पोस्ट...

एम.आर.अयंगर.
09907996560

भले जुबानी हिदी बोले,

करें सवाल फिरंगी हैं

bahut badhiya

भीड़ भरी है हाईवे पर अब,

और खाली पगडंडी हैं,

शहरों का अंधी गलियों में,

धन दौलत की मंडी है.

वाह..!!भ्रष्टाचार अमर रहे..!!भ्रष्टाचार ज़िंदाबाद..!!

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