शैल जी की रचना का शेष भाग
एक माह से लगातार
कद्दू बना रही हो
वो भी रसेदार
ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता
खाना खाया नहीं जाता
बोलो तो कहती हो-
"बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।"
कल पड़ौसी का राजू
बाहर खड़ा मूली खा रहा था
ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था
कई बार कहा-
ज़्यादा न बोलो
संभालकर मुंह खोलो
अंग्रेज़ी बोलती हो
जब भी बाहर जाता हूँ
बड़ी अदा से कहती हो-"टा....टा"
और मुझे लगता है
जैसे मार दिया चांटा
मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है
ऐनिमा लगवा दो
तो डॉक्टर बोलीं-"डैनिमा लगा दो।"
वो तो ग़नीमत है
कि ड़ॉक्टर होशियार था
नीम हकीम होता
तो बेड़ा ही पार था
वैसे ही घर में जगह नहीं
एक पिल्ला उठा लाई
पाव भर दूध बढा दिया
कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया
तरीफ़ करती हो पूंछ की
उससे तुलना करती हो
हमारी मूंछ की
तंग आकर हमने कटवा दी
मर्दो की रही सही
निशानी भी मिटवा दी
वो दिन याद करो
जब काढ़ती थीं घूंघट
दो बीते का
अब फुग्गी बनाती हो फीते का
पहले ढ़ाई गज़ में
एक बनता था
अब दो ब्लाउज़ो के लिये
लगता है एक मीटर
आधी पीठ खुली रहती है
मैं देख नहीं सकता
और दुनिया तकती है
मायके जाती हो
तो आने का नाम नहीं लेतीं
लेने पहुँच जाओ
तो माँ-बाप से किराए के दाम नहीं लेतीं
कपड़े
बाल-बच्चों के लिये
सिलवा कर ले जाती हो
तो भाई-भतीजों को दे आती हो
दो साड़ियाँ क्या ले आती हो
सारे मोहल्ले को दिखाती हो
साड़ी होती है पचास की
मगर सौ की बताती हो
उल्लू बनाती हो
हम समझ जाते हैं
तो हमें आँख दिखाती हो
हम जो भी जी में आया
बक रहे थे
और बच्चे
खिड़कियो से उलझ रहे थी
हमने सोचा-
वे भी बर्तन धो रही हैं
मुन्ना से पूछा, तो बोला-"सो रही हैं।"
हमने पूछा, कब से?
तो वो बोला-
"आप चिल्ला रहे हैं जब से।"
प्रस्तुत कविता पृसिद्ध हास्य कवी श्री शैल चतुर्वदी जी की है और कविता कोष से साभार ली गयी है
5 टिप्पणियाँ:
कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया
तरीफ़ करती हो पूंछ की
उससे तुलना करती हो
हमारी मूंछ की।
हा,हा,हा,मूंछ शहीद हो गई। हाय..रे..दै..या।
वाह भाई आनंद आ गया ... बढ़िया प्रस्तुति...
बहुत मजेदार कविता
behtreen kavita....patiyon ka haal batati hui.
बहुत बढ़िया कविता
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