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गुरुवार, 30 जून 2011

पावली की पदोन्नति । Part- 1.


पावली की पदोन्नति । 
Part- 1.

सौजन्य-गूगल

बताइए ना, बेकसूर रुपया  कितना अखण्ड था?
पावली  छाप कहलाया  वह, पाखंडी  होते  ही ..!!"

पावली= कमअक्कल, बुद्धिहीन ।
                                                                         
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"क्यों दवेजी, आपको क्या लगता है? काले धन के विरुद्ध चल रहे आंदोलन के चलते, सरकार, ५०० और १००० रूपये के नोट रद्द कर  देगी?" अधिक मूल्य की नोट रद्द होने के भय से कांप रहे एक मित्र ने मुझ से सवाल किया ।

चेहरा गंभीर करके, किसी महान चिंतक की अदा में, मैंने उत्तर दिया,"पता नहीं, पर  इतना ज़रूर है कि, हमारे महान भारत में, काला धन और भ्रष्टाचार, अगले  ५०० या १००० साल तक, मिटने वाले नहीं है..!! चाहे  कोई  कितने ही आंदोलन क्यों न करें?"

ड़री हुई आवाज़ में, मित्र ने फिर सवाल किया," क्यों? आप ऐसा क्यों कहते हैं?"

मैंने उन्हें विस्तार से समझाया," देखिए,अण्णा हज़ारे, मानो सच्चे मन से लोक पाल बील को भले ही अमल में लाना चाहते हो पर, उनकी बढ़ती उम्र को ध्यान में रखते हुए,ज्यादा दिन तक उपवास करना, उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है और रही बाबा रामदेवजी की बात तो, ३० जून २०११ से चवन्नी (पावली) को चलन से हटा कर सरकार ने, आंदोलनकारीओं और देश की जनता को,अपनी शुद्ध नियत का परिचय करा दिया है..!! आज चवन्नी रद्द हुई है, कल को ५००-१००० के नोट भी रद्द हो सकते है? चवन्नी से ५००-१००० तक की सफर तय करने में, थोड़ा वक़्त तो लगता ही है ना?"

मित्र को लगा, उनकी गंभीर बात को मज़ाक में लेकर,   मेरी बातों से, मैं उन्हें उलझा रहा हूँ, अतः  मुझ से थोड़ा नाराज़ होकर, स्वतः कुछ बड़बड़ाते हुए, वह अपने रास्ते चल दिए ।

पर, मुझे ऐसा महसूस होने लगा मानो,`पावली-पावली-पावली` कहते हुए,   मेरे दिमाग पर, रद्द की गई चवन्नीओं को पिघलाकर बनायी गई, छोटी सी हथौड़ी  कोई पीट रहा है..!!

मेरे मन में, रह-रह कर एक ही सवाल उठ रहा है," चवन्नी रद्द करके सरकार ने चवन्नी का अधःपतन किया या उसकी पदोन्नति कि?"


हालाँकि, हमारे पड़ोसी शर्मा जी का मानना है कि," चवन्नी का प्रोमोशन कैसे हुआ? दवे जी, आप ही बताईए ना, आजकल चवन्नी में क्या मिलता है? चवन्नी में, सब्जी वाला, हरा धनिया-मिर्ची देने से भी इन्कार कर देता है..!!  क्या अण्णा हज़ारे जी और बाबा जी ने इतना बड़ा आँदोलन, चवन्नी रद्द कराने के लिए, आरंभ किया है? सच बात तो यह है कि, काला धन नाबूद करने के लिए, आंदोलन कर रहे सारे आंदोलनकारीओं को, सरकार ने ये संदेश दिया है कि, आपके इस फालतू आँदोलन की हैसियत, हमारे दिल में सिर्फ एक चवन्नीभर ही है..!! अब बताइए, ये तो पावली का  सरासर पतन हुआ है कि नहीं..!!"

दोस्तों, छोड़ो यार शर्मा जी को..!! वो तो कभी सकारात्मक सोचते ही नहीं है..!!

पर, मुझे तो लगता है कि, सरकार अब रद्द की गई सारी चवन्नीओं को पिघलाकर, उसे एक नये रूपये का रूप प्रदान करेंगी, इसका सीधा अर्थ यही हुआ कि, चवन्नी अब एक रुपया कहलाएगी?  पावली का एक रूपये में रूपांतर,उसका प्रोमोशन हुआ की नहीं? आपके चेहरे की मुस्कान बता रही है कि, आप मेरी बात से सहमत है..!! जनाब, अब आप ही बताइए, मेरी बात में दम है कि नहीं? हैं ना..!!

अरे, मैं तो ये भी मानता हूँ कि, पावली का प्रोमोशन करके सरकार ने, अपने हित में भी, एक बहुत बड़ा कदम उठाया है..!! अब आप पूछेंगे, कैसे?

वह ऐसे कि, काला धन और भ्रष्टाचार,पाकिस्तानी आतंकवाद, अमेरिका की दादागीरी के सामने घूटने टेकने वाली और मर्दानगीपूर्वक उनसे निपटने में अभी तक नाकामी का आरोप झेल रहे प्राइममिनिस्टर श्री मनमोहन सिंह जी और उनकी यु.पी.ए. सरकार को, सारा देश प्रकट या दबे स्वर में, `पावली छाप सरकार- पावली छाप सरकार` कह कर, उनका मज़ाक उड़ाते थे..!!

अब,ऐसे नारों से ख़फ़ा हो कर,थक-हार कर, सरकार ने, चलन से पावली को ही हटा दिया? मानो पूरे देशवासीओं को सरकार, ठेंगा दिखाते हुए, ये कह रही हो," हे..फटे दिमागवाले, निकम्मे-बेकार-नालायक आँदोलन कारी देशवासीओं, जाओं हमने चलन से पावली को ही मिटा दिया है, अब हमें `पावली छाप सरकार` कैसे कह पाएंगे? रामजी झूठ न बुलवाए..!! आज के बाद किसी को ये हक़ नहीं रहेगा कि, सारी सरकार को कोई `पावली छाप-पावली छाप सरकार` कहकर पुकारें? " 

वैसे, सरकार के पावली मिटाने के ऐतिहासिक फैसले का,समर्थन फ्रान्स की विख्यात कला संरक्षक लॅडी `मेरी एन.डी.विची` (१६९६-१७८०) ने भी किया है,

" The distance dosen`t matter; it is only the first step that is difficult." 

अर्थात्- दूरी कितनी लंबी है, इसका महत्व नहीं है, उस फ़ासले को मिटाने के लिए पहला कद़म उठाना, वही मुश्किल होता है..!!



अब जब, फ्रांस की इतनी बड़ी हस्ती,`मेरी एन.डी.विची` ने, यु.पी.ए. सरकार के समर्थन में, उस  ज़माने  में अगर,  इतनी बड़ी बात कह  दी थीं तो फिर, उस  लेडी  के  कथन  का  मान रखते  हुए, हमारे महान देश के सभी फटे दिमाग वाले, निकम्मे-बेकार-नालायक आँदोलनकारी देशवासीओं को, अपना आँदोलन अब  यह समझ कर स्थगित कर देना चाहिए कि, सरकार ने अपनी सच्ची निष्ठा-मन सा जताते हुए, चवन्नी से, १००० रुपये के नोट रद्द करने, जैसी  मुश्किल सी लगने वाली सफर  की,  लं...बी, दू..री  को तय करने हेतु, आज चवन्नी रद्द कर के, जब पहला कदम सफलतापूर्वक  उठा ही लिया है तो, कल यही सरकार ५००-१००० के नोट भी निरस्त कर देगी..!! फिर इसी सफर में, निरस्त होने की बारी होगी  भ्रष्टाचार की, फिर आयेगा काला धन, फिर आतंकवाद, फिर पाकिस्तान, फिर आयेगा अमेरिका, फिर...?

फिर आगे क्या?  इस महान देश की, महान सरकार के बारे में,अच्छी-अच्छी बातें, क्या मैं  अकेले ही  थोड़े ही ना सोचूँ? आप, अपना खुद का दिमाग कब लड़ायेंगे..!!

वैसे, हमारे शर्मा जी कहते हैं," पावली रद्द होने से, भिख़ारीओं को बड़ी राहत पहुँचेगी..!!"

चौकन्ने हो हर, आसपास देखते हुए, मैंने उन्हें चेताया," या..र, ज़रा ध्यान से..!! कोई सुन लेगा, नेताओं को भिख़ारी का उप-नाम हम नहीं दे सकते,हमारा हाल भी बाबा जी और उनके समर्थकों जैसा हो सकता है..!!"

शर्मा जी ने कहा," मैं तो, उन सच्चे भिख़ारीओं के बारे में, कह रहा हूँ, जो मंदिर के बाहर बैठ कर सचमुच भीख माँगते हैं..!! उनको भीख में, कोई चवन्नी देता था तो उन्हें मानहानि सा महसूस होता था,अब  ज्यादा अपमानित होने से, वे लोग बच जाएंगे?" शर्मा जी की बात बिलकुल सही है । शर्मा जी तो भिखारीओं की बात करते हैं?

एकबार, मैं और शर्मा जी  रेस्त्रां में चाय-नाश्ता करने गये। डटकर नाश्ता करने के बाद  वेटर, एक प्लेट में चाय-नाश्ते का बिल लेकर आया और शर्मा जी के सामने रख दिया । बिल देख कर, कंजूस शर्मा जी ने जेब से बिल जितनी ही रकम निकाली और प्लेट में  रख दी । ये देख कर मैंने, शर्मा जी को जब टोका," शर्मा जी, वेटर को टिप भी देना चाहिए..!!" तब  शर्मा जी ने, प्लेट में अलग से, एक चवन्नी  टिप के तौर पर  रख दी..!!

अब तक चेहरे पर मधुर सी मुस्कान बिखेरते हुए, शांत सा विनयी दिखने वाला वेटर, चवन्नी की टिप देखकर शर्मा जी पर भड़क उठा और तिरस्कार के भाव धारण कर, अपने चेहरे को विकृत करते हुए, प्लेट से चवन्नी उठा कर शर्मा जी के हाथ में वापस थमा दी..!!

मुझे बहुत शर्म महसूस हुई, पर शर्मा जी ने बिना शर्माये, चवन्नी जेब में रखी और उठ कर रेस्त्रां से बाहर आ गए..!!

मेरे कहने का मतलब सिर्फ ये है कि,भिखारी हो,वेटर हो,व्यापारी हो या फिर, छोटा सा बच्चा, इस असहनीय महँगाई में,आजकल पावली इतनी पवित्र हो चुकी थीं कि,कोई भी समझदार,पापी देशवासी,अपने पापों से मलिन हुए  अपवित्र हाथ से, पवित्र पावली को छूने की हिम्मत तक नहीं जूटा पा रहा था?


वैसे, या...र..!! पावली का अधःपतन हुआ हो या पदोन्नति हुई हो, हमको अब क्या लेना-देना..!!

पर ये बात तो सच है कि, आज़ादी के तुरंत बाद, इन पावलीओं का भी एक ज़माना था..!!

अ..हा..हा..हा..!! सन-१९६० में, एक दिन रास्ते पर किसी की खोई हुए, एक चवन्नी मुझे अनायास मिल गई और सभी घरवालों से छिपा कर, उस चवन्नी से, मैंने चार दिन तक, जो जल्से किए थे..!! अ..हा..हा..हा..!! आज भी उसे, याद कर के मेरा दिल गदगद हो उठता है..!!

आपको जानना है? मैने उस चवन्नी से क्या-क्या खरीदा और फिर आगे क्या हुआ था?

तो फिर तैयार हो जाइए, इस आलेख की अगली कडी-पार्ट-२ में हमारी-आपकी रोचक चवन्नी-कहानी को हम आगे बढ़ाएंगे..!!

दोस्तो, मेरे हमउम्र कई विद्वान दोस्तों ने कभी न कभी इस पवित्र पावली को जरूर सहलाया होगा, आपको उस पवित्र पावली कसम है एक बार सब मिल ज़ोर से नारा लगाएं..प्ली..ज़..!!

`जय-जय पावली परमात्मन्..!! जय-जय हिन्दुस्तान..!! मेरा भारत महान?`

मार्कण्ड दवे । दिनांक-३०-०६-२०११.

बुधवार, 29 जून 2011

फ्रिज से हाई ब्लड प्रेशर.....


दो महिलाओं की मुलाकात स्वर्ग में हुई.

पहली - कहो बहिन, तुम्हारी मौत कैसे हुई ?

दूसरी - ज्यादा ठण्ड लगने के कारण. और तुम्हारी ?

पहली - हाई ब्लड प्रेशर के कारण. बात दरअसल यह

हुई कि मुझे अपने पति पर शक था. एक दिन मुझेपता चला कि

वो घर में किसी दूसरी औरत के साथ हैं. मैं फ़ौरन घर पहुंची तो

देखा कि मेरे पति आराम से अकेलेटीवी देख रहे हैं.

दूसरी - फिर क्या हुआ ?

पहली - खबर पक्की थी इसलिए मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने उस

औरत को घर के कोने कोने में, तहखाने में, पर्दोंके पीछे, गार्डेन

में यहाँ तक कि अलमारी और संदूक तक में तलाश किया पर वह

नहीं मिली. मुझे इतनी टेंशन हुई कि मेरा ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया

और मेरी मौत हो गई.

दूसरी - काश! तुमने फ्रिज और खोलकर देख लिया होता

तो आज हम दोनों जिन्दा होती........ !!!

मंगलवार, 28 जून 2011

श्रेष्ट वही जो आप अंदर से है .....


एक महान तपस्वी एक दिन गंगा में नहाने के लिए गए। स्नान करके वह सूर्य की पूजा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि एक बाज ने झपट्टा मारा और एक चुहिया को पंजे में जकड़ लिया। तपस्वी को चुहिया पर दया गई। उन्होंने बाज को पत्थर मारकर चुहिया को छुड़ा लिया।

चुहिया तपस्वी के चरणों में दुबककर बैठ गई। तपस्वी ने सोचा कि चुहिया को लेकर कहां घूमता फिरुंगा! इसको कन्या बनाकर साथ लेकर चलता हूं। तपस्वी ने अपने तप के प्रभाव से चुहिया को कन्या का रूप दे दिया। वह उसे साथ लेकर अपने आश्रम पर गए।

तपस्वी की पत्नी ने पूछा-‘उसे कहां से ले आए?’तपस्वी ने पूरी बात बता दी। दोनों पुत्री की तरह कन्या का पालन-पोषण करने लगे। कुछ दिनों बाद कन्या युवती हो गई। पति-पत्नी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। तपस्वी ने पत्नी से कहा-‘मैं इस कन्या का विवाह भगवान सूर्य से करना चाहता हूं।पत्नी बोली-‘यह तो बहुत अच्छा विचार है। इसका विवाह सूर्य से कर दीजिए।

तपस्वी ने सूर्य भगवान का आह्वान किया। भगवान सूर्य उपस्थित हो गए। तपस्वी ने अपनी पुत्री से कहा- ‘यह सारे संसार को प्रकाशित करने वाले भगवान सूर्य हैं। क्या तुम इनसे विवाह करोगी?’ लड़की ने कहा-‘उनका स्वभाव तो बहुत गरम है। जो इनसे उत्तम हो, उसे बुलाइए।लड़की की बात सुनकर सूर्य ने सुझाव दिया-‘मुझसे श्रेष्ठ तो बादल है। वह तो मुझे भी ढक लेता है।

तपस्वी ने मंत्र द्वारा बादल को बुलाया और अपनी पुत्री से पूछा-‘क्या तुम्हें बादल पसंद है?’लड़की ने कहा-‘यह तो काले रंग का है। कोई इससे भी उत्तम वर हो तो बताइए।तब तपस्वी ने बादल से ही पूछा-‘तुमसे जो उत्तम हो, उसका नाम बताओ।बादल ने बताया-‘मुझसे उत्तम वायु देवता हैं। वह तो मुझे भी उड़ा ले जाते हैं।तपस्वी ने वायु देवता का आह्वान किया। वायु को देखकर लड़की ने कहा-‘वायु है तो शक्तिशाली, पर चंचल बहुत है। यदि कोई इससे अच्छा हो तो उसे बुलाइए।

तपस्वी ने वायु से पूछा-‘बताओ, तुमसे अच्छा कौन है?’ वायु ने कहा-‘मुझसे श्रेष्ठ तो पर्वत ही होता है। वह मेरी गति को भी रोक देता है।तपस्वी ने पर्वत को बुलाया। पर्वत के आने पर लड़की ने कहा-‘पर्वत तो बहुत कठोर है। किसी दूसरे वर की खोज कीजिए।

तपस्वी ने पर्वत से पूछा-‘पर्वतराज, तुम अपने से श्रेष्ठ किसी मानते हो?’ पर्वत ने कहा-‘चूहे मुझसे भी श्रेष्ट होते हैं। वे मेरे शरीर में भी छेद कर देते हैं।तपस्वी ने चूहों के राजा को बुलाया और पुत्री से प्रश्न किया-‘क्या तुम इसे पसंद करती हो?’

लड़की चूहे को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और उससे विवाह करने को तैयार हो गई। वह बोली-‘पिताजी, आप मुझे फिर से चुहिया बना दीजिए। मैं इनसे विवाह करके आनंदपूर्वक रह सकूंगी।तपस्वी ने उसे फिर से चुहिया बना दिया।

सोमवार, 27 जून 2011

जहा तुम पढ़ते हो, हम वहां के प्रिंसिपल है !!


एक रात, चार कॉलेज विद्यार्थी देर तक मस्ती करते रहे और जब होश आया तो अगली सुबह होने वाली परीक्षा का भूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया।

परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने कपड़े पहनकर वे प्रिंसिपल के सामने जा खड़े हुए और उन्हें अपनी दुर्दशा की जानकारी दी। उन्होंने प्रिंसिपल को बताया कि कल रात वे चारों एक दोस्त की शादी में गए हुए थे। लौटते में गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया।

किसी तरह धक्का लगा-लगाकर गाड़ी को यहां तक लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव नहीं दिखता, पेपर हल करना तो दूर की बात है। यदि प्रिंसिपल साहब उन चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी और दिन ले लें तो बड़ी मेहरबानी होगी।

प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गए। उन्होंने तीन दिन बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल साहब को धन्यवाद दिया और जाकर परीक्षा की तैयारी में लग गए।

तीन दिन बाद जब वे परीक्षा देने पहुंचे तो प्रिंसिपल ने बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के लिए ही आयोजित की गई है। चारों को अलग-अलग कमरों में बैठना होगा।

चारों विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में जाकर बैठ गए। जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल दो ही प्रश्न थे -


प्र. 1 आपका नाम क्या है ? (2 अंक)

प्र. 2 गाड़ी का कौनसा टायर पंक्चर हुआ था ? ( 98 अंक )

. अगला बायां

. अगला दायां

. पिछला बायां

. पिछला दायां

शनिवार, 25 जून 2011

साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां


एक था मिलखासिंह। वह पंजाब का रहने वाला था। उसका एक मित्र कश्मीर की वादी में रहता था। मित्र का नाम था आफताब। एक बार मिलखासिंह को आफताब के यहां जाने का मौका मिला। दोनों मित्र लपककर एक-दूसरे के गले से लग गए। आफताब ने रसोईघर में जाकर स्वादिष्ट पकवान तैयार करने को कहा और मिलखासिंह के पास बैठ गया।

कुछ ही देर में खाने की बुलाहट हुई। मिलखासिंह ने भरपेट भोजन किया। आफताब ने पूछा, ‘यार, खाना कैसा लगा?’ मिलखा बोला, ‘खाना तो अच्छा था पर ‘साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता)। आफताब को बात लग गई। रात के भोजन की तैयारी जोर-शोर से की जानी लगी। घर में खुशबू की लपटें उठ रही थीं। रात को खाने की मेज पर गुच्छी की सब्जी से लेकर मांस की कई किस्में भी परोसी गईं।

मिलखासिंह ने खा-पीकर डकार ली तो आफताब ने बेसब्री से पूछा-‘खाना कैसा लगा, दोस्त?’‘साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां।’ मिलखासिंह ने फिर वही जवाब दिया। आफताब के लिए तो बहुत परेशानी हो गई। वह अपने मित्र के मुंह से कहलवाना चाहता था कि कश्मीरी खाना बहुत लज्जतदार होता है।

वादी के होशियार रसोइए बुलवाए गए। घर में ऐसा हंगामा मच गया मानो किसी बड़ी दावत की तैयारी हो। अगले दिन दोपहर के भोजन में एक-से-एक महंगे और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए। रोगनजोड़ा, कबाब, करम का साग, केसरिया चावल, खीर आदि पकवानों में से खुशबू की लपटें उठ रही थीं।

कांच के सुंदर प्यालों में कई किस्म के फल रखे गए थे। मिलखासिंह ने भोजन किया और आफताब के पूछने से पहले ही बोला, ‘अरे, ऐसा लगता है, किसी धन्नासेठ की दावत है।’ आफताब के मन को फिर भी तसल्ली न हुई। मिलखासिंह जी पंजाब लौट गए।

कुछ समय बाद आफताब को पंजाब लाने का अवसर मिला। उसने सोचा-‘मिलखासिंह के घर जरूर जाऊंगा। देखूं तो सही, वह क्या खाते हैं?’

मिलखासिंह ने कश्मीरी मित्र का स्वागत किया। थोड़ी ही देर में भोजन का समय हो गया। दोनों मित्र खाना खाने बैठे। मिलखा की पत्नी दो प्लेटों में सरसों का साग और मक्के की रोटी ले आई। दो गिलासों में मलाईदार लस्सी भी थी।

आफताब अन्य व्यंजनों की प्रतीक्षा करने लगा। मिलखासिंह बोला, ‘खाओ भई, खाना ठंडा हो रहा है।’

आफताब ने सोचा कि शायद अगले दिन पंजाब के कुछ खास व्यंजन परोसे जाएंगे। अगले दिन भी वही रोटी और साग परोसे गए। आफताब ने हैरानी से पूछा, ‘मिलखासिंह, तुम तो कहते थे कि ‘पंजाब दीयां केडियां रीसां’। यह तो बिलकुल साधारण भोजन है।’

मिलखासिंह ने हंसकर उत्तर दिया, ‘आफताब भाई, तुम्हारे भोजन के स्वाद में कोई कमी न थी, किंतु वह इतना महंगा था कि आम आदमी की पहुंच से बाहर था।

हम गांववाले सादा भोजन करते हैं, जो कि पौष्टिक भी है और सस्ता भी। यही हमारी सेहत का राज है।’

आफताब जान गया कि मिलखासिंह सही कह रहा था। सादा भोजन ही अच्छे स्वास्थ्य का राज है

गुरुवार, 23 जून 2011

श्रीबकबक विजय सिंह भानपा में?


श्रीबकबक विजय सिंह
भानपा में?
सौजन्य-गूगल


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(नोट- यह पूरा आलेख १००% काल्पनिक है और इसका जीवित या मृतक किसी भी इन्सान से, स्नानसूतक का भी कोई संबंध नहीं है, अतः इसे व्यक्तिगत न लें ।)

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स्थल- दिल्ली प्रमुख कार्यालय -भानपा ।

समय- दोपहर ४.०० बजे ।

पत्रकार परिषद शुभारंभ की तैयारी है ।

मंच पर उपस्थित पार्टी के महानुभव ।

१.पक्ष प्रमुख श्रीकड़वीकरीजी ।

२. साध्वी सुश्री मख्खी मारतीजी तथा

३. ढोंगरेस पार्टी से ताज़ा निष्कासित,
महान मंत्री श्री बकबक विजय सिंहजी ।

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श्रीकड़वीकरीजी," क्या माइक चालू है? हे...लो, वन..टू.. थ्री; वन..टू.. थ्री; वन..टू.. थ्री; आवाज़ क्यों नहीं आती?"


श्री बकबक विजय सिंह," मैं हूँ ना? आज के बाद आपको माइक की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है..!! हे...लो, वन..टू.. थ्री; वन..टू.. थ्री; वन..टू.. थ्री; चलो हो गया ठीक, ब..स?


साध्वी सुश्री मख्खी मारतीजी," देखो,आदरणीय श्री बकबक विजयजी, आप ये ग़लत कर रहे हैं..!! पक्ष प्रमुख आदरणीय श्रीकड़वीकरीजी के होते आप माइक को हाथ नहीं लगा सकते, अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं पक्ष छोड़ दूँ गी..!!"


श्री बकबक विजय सिंह," अजीब बात है..!! पहले आज भारतीय नचणिया पार्टी में, आपका दाख़िला तो होने दो? भले ही, बाद में पक्ष छोड़ देना? आप को यु.पी. में `कायावती` प्रजाति की ज़हरीली मख्खीयों का उप-द्रव कम करने का काम सौंपा है, वह कब, अगले जन्म में करोगी?"


सुश्री मख्खी मारतीजी," भारतीय नचणिया पार्टी का सहारा ले कर आपको मध्य-प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना है क्या? मैं सब जानती हूँ मुझे यु.पी. क्यूँ भेजा जा रहा है, हाँ..आँ..!!


श्रीकड़वीकरीजी,(दोनों पर गुस्सा होते हुए?) चू..उ..उ..प, ओसामा के नाती? दिखता नहीं है, न्यूज़ चैनल वालों के कैमरे चालू है?"


श्रीकड़वीकरीजी,(पत्रकारों से)," चलो भैया, आपका सब ठीक हो गया? अब पत्रकार परिषद शुरू करें?"

(सभी पत्रकार `हाँ` कहते हुए अपना सिर हिलाते हैं ।)

श्रीकड़वीकरीजी," हाँ तो, मैं क्या कह रहा था?"

श्री बकबक विजय सिंह," आप कह रहे थे, चु..उ..उ..प, ओसामा के नाती?"

श्रीकड़वीकरीजी," या,,र..!! श्री बकबक विजयजी, आप थोड़ी देर चुप नहीं बैठ सकते क्या?"

(श्रीकड़वीकरीजी पत्रकारों की ओर मुड़ कर..!!)


श्रीकड़वीकरीजी," आप सब जानते हैं कि, आज मैं एक बहुत बड़ा एनाउन्समेन्ट करने जा रहा हूँ । हमारी भारतीय नचणिया पार्टी में, आज साध्वी सुश्री मख्खी मारतीजी और ढोंगरेस के महान मंत्री श्री बकबक विजय सिंहजी प्रवेश कर रहे हैं । मैं उन दोनों का आज पार्टी में प्रवेश निश्चित करने की घोषणा बड़े ही फख़्र के साथ करता हूँ । आप अगर उनसे कोई सवाल करना चाहे तो कर सकते हैं ।"


पत्रकार-१," सर, मेरा सवाल श्री बकबकजी से है, आपने ढोंगरेस को क्यों त्याग दिया?"


श्री बकबक विजय सिंह," आप सब ने नोट किया होगा, ढोंगरेस पक्ष के राज माता सुश्री मौनियाजी और युवराज श्री व्यर्थ हूल बाबाजी के लिए मैं ने आजतक क्या-क्या नहीं किया? फिर भी, युवराज श्री व्यर्थ हूल बाबाजी को प्रधानमंत्री बनाने के बयान और देश के प्रधानमंत्री-न्यायाधीश सहित सभी नागरिकों को, हयात सरकार द्वारा पेश होनेवाले`चोर-पाल बील` में शामिल करने के बयान पर इन सारे ढोंगी लोगों ने मुझे थूका हुआ वापस चटा कर, कैसे अपमानित किया था..!! इसीलिए, ब..स इसीलिए,मैंने ढोंगीओं की पार्टी ढोंगरेस को त्याग कर, भारतीय नचणिया पार्टी जोईन कि है..!!"


पत्रकार-२," पर श्रीबकबकजी भारतीय नचणिया पार्टी में आपका क्या रोल रहेगा?"


श्रीकड़वीकरीजी," इस सवाल का जवाब मैं दे रहा हूँ । साध्वी सुश्री मख्खी मारतीजी को यु.पी. में फैले `कायावती` प्रजाति की मख्खीयों के उपद्रव को मिटाने का कार्यभार सौंपा गया है और श्रीबकबक विजयजी को, दिल्ली कार्यालय में भानपा के प्रमुख प्रवक्ता का कार्यभार सौंपा गया है..!!"


पत्रकार-३," सुश्री मख्खी मारतीजी, जनता के मन में आशंका है कि, क्या आप `कायावती` प्रजाति की मख्खीयों के उपद्रव को मिटा पाएंगी?"


सुश्री मख्खी मारतीजी," देखिए, मुझे करीब साढे पांच-छह साल से मख्खीयां मारने का भयानक अनुभव हो गया है, इस लिए मैं हमारे पक्ष प्रमुखजी और यु.पी. की अवाम को आश्वस्त करना चाहती हूँ कि, चाहे `कायावती` हो या `छायावती` ब्राँड मख्खीयां, सारी की सारी मख्खीयां मेरे ड़र से दूम दबा कर भाग जायेगी..!!"


पत्रकार-४," श्रीबकबक विजयजी, आपने अभी तक बटला हाउस से योगीबाबा श्रीमनमेला देवजी विरूद्ध इतने सारे बयान किए हैं, उसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? और फिर आपने कौन से आधार पर युवराज श्री व्यर्थ हूल बाबाजी को प्रधानमंत्री बनाने का बयान किया था?"


श्री बकबक विजय सिंह," देखिए साहब, हम जिसकी शादी में जाते हैं, उसी घर के सदस्यों का नाम जोड़ कर उन्हीं के गीत गाते हैं कि नहीं..!! मैंने भी मज़बूरी में गाये इसमें ग़लत क्या है? पर हकीक़त यही है कि, वर्तमान सरकार का हिड़न एजेंडा है, जिसके तहत अगले चुनाव में श्री व्यर्थ हूल बाबा को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार एनाउन्स करना तय है और इसीलिए, सरकार `चोरपाल बील` में प्रधानमंत्री को शामिल करने से कतरा रही है ताकि भविष्य में युवराज जम कर भ्रष्टाचार करें, फिर भी पकड़े न जाए?"


पत्रकार-५," श्रीबकबकजी, आपने ढोंगरेस की पत्रकार परिषद में, श्री झूठार्दन दिवेली को चप्पल दिखाने वाले पत्रकार को खुद पीटा था, क्यों?"


श्री बकबक विजय सिंह," मेरे प्यारे पत्रकार दोस्तों, आज मैं सार्वजनिक तौर पर उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए माफ़ी मांगता हूँ और ये एलान करता हूँ कि, यहाँ उपस्थित किसी भी पत्रकार मित्र को आदरणीय श्री झूठार्दन दिवेली को जूता मारने का मन करें तो मुझे बताएं, इसी बहाने मैं भी, उनके सिर पर, दो-चार जूतें मारूंगा..!! ढोंगरेस पार्टी में मुझे साइडलाईन करने में, श्री झूठार्दनजी का भी अहम हाथ रहा है..!! O.K. NOW HAPPY?"


(ये सुनकर बीच में ही..!!)


सुश्री मख्खी मारतीजी," वाह, श्रीबकबक विजय सिंहजी, ये हुई ना, मर्दों वाली बात..!!"


पत्रकार-६," श्रीबकबकजी, आप ने भारतीय नचणिया पार्टी में प्रवेश किया है, तो क्या आपको सुश्री उष्माजी कुराज्य की तरह नाचना आता है?"


श्री बकबक विजय सिंह," मुझे नाचना नहीं, पूरे देश को अच्छी तरह नचाना आता है, अब ढोंगरेस के विरूद्ध, अंटसंट बयानबाज़ी करके, ढोंगरेसवालों को मैं कैसे ताताथैया नचाता हूँ, ये पूरा देश देखेगा?"


पत्रकार-७," आपने `चोरपाल बील` की मांग करने के कारण, जनता के प्रतिनिधि बाबा श्रीमन मेला देवजी को `ठग बाबा` और श्रीगन्ना बंजारे को `तानाशाह` कहा था?"


श्री बकबक विजय सिंह," अरी..छोड़, ये बातें..!! ढोंगरेस पक्ष के दबाव में आ कर, मैंने ऐसा कह दिया होगा, वर्ना उनके जैसे देश भक्त, तो पूरे देश में चिराग़ ले कर ढूंढने से भी नहीं मिल सकते..!!"


पत्रकार-७," श्रीकड़वी करीजी, आप ये बताएँगे कि, आपने श्रीबकबक विजय सिंहजी का, भारतीय नचणिया पार्टी में प्रवेश तो करा लिया है पर क्या आपको उन पर विश्वास है कि, ढोंगरेस पक्ष ने उन्हें, आपके पक्ष की खुफ़िया जानकारी प्राप्त करके, भानपा को तोड़ने के लिए भेजा नहीं होगा?


श्री बकबक विजय सिंह," अरे..!! आपको कैसे पता चला? या..र..!! ये आपको ढोंगरेस के श्री झूठार्दनजीने बताया ना? सा..; ओसामाजी बिन लादेनजी का नाती, मेरा दुश्मन वही तो है..!!"


श्रीकड़वी करीजी,"अबे साले, कब से बकबक करता है? चल, भाग यहाँ से, मेरा पक्ष तोड़ने आया था? उसे जूतें मारो दो-चार..!! पत्रकार मित्रों, श्रीबकबक विजय सिंह की सदस्यता, भारतीय नचणिया पार्टी से अभी,इसी वक़्त समाप्त कि जाती है..!!"


(पत्रकार परिषद में हंगामा मच जाता है । भानपा के वफादार पत्रकार और उनके कर्मचारी मिल कर, आदरणीय श्री बकबक विजय सिंहजी को, चप्पल-जूतों से बुरी तरह पीट ने में व्यस्त हो जाते हैं..!! मौका पाते ही, आदरणीय श्री बकबक विजय सिंहजी, भानपा कार्यालय से भाग निकलते है पर, आदरणीय श्री बकबक विजय सिंहजी को रोकते हुए..!!)



साध्वी सुश्री मख्खी मारतीजी," अरे वाह..!! बकबकजी, बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले ?"


(हंगामा होने की वजह से सारे पत्रकार वहाँ से चले जाते हैं..!! दोस्तों, ये पूरा एपिसोड शत प्रति शत काल्पनिक है, पर ये सारे नौटंकीबाज इकट्ठा हो कर इस एपिसोड को वास्तविक नौटंकी का स्वरूप दें तो, आप हैरान मत होना..!!)


मार्कण्ड दवे । दिनांक- २२-०६-२०११.