हास्य जीवन का अनमोल तोहफा ====> हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है तो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।
हँसे और बीमारी दूर भगाये====>आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट को भूलता जा रहा है और उच्च रक्तचाप, शुगर, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, डिप्रेशन आदि बहुत सी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है।
गुरुवार, 30 जून 2011
पावली की पदोन्नति । Part- 1.
बुधवार, 29 जून 2011
फ्रिज से हाई ब्लड प्रेशर.....
पहली - कहो बहिन, तुम्हारी मौत कैसे हुई ?
दूसरी - ज्यादा ठण्ड लगने के कारण. और तुम्हारी ?
पहली - हाई ब्लड प्रेशर के कारण. बात दरअसल यह
हुई कि मुझे अपने पति पर शक था. एक दिन मुझेपता चला कि
वो घर में किसी दूसरी औरत के साथ हैं. मैं फ़ौरन घर पहुंची तो
देखा कि मेरे पति आराम से अकेलेटीवी देख रहे हैं.
दूसरी - फिर क्या हुआ ?
पहली - खबर पक्की थी इसलिए मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने उस
औरत को घर के कोने कोने में, तहखाने में, पर्दोंके पीछे, गार्डेन
में यहाँ तक कि अलमारी और संदूक तक में तलाश किया पर वह
नहीं मिली. मुझे इतनी टेंशन हुई कि मेरा ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया
और मेरी मौत हो गई.
दूसरी - काश! तुमने फ्रिज और खोलकर देख लिया होता
तो आज हम दोनों जिन्दा होती........ !!!
मंगलवार, 28 जून 2011
श्रेष्ट वही जो आप अंदर से है .....
एक महान तपस्वी एक दिन गंगा में नहाने के लिए गए। स्नान करके वह सूर्य की पूजा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि एक बाज ने झपट्टा मारा और एक चुहिया को पंजे में जकड़ लिया। तपस्वी को चुहिया पर दया आ गई। उन्होंने बाज को पत्थर मारकर चुहिया को छुड़ा लिया।
चुहिया तपस्वी के चरणों में दुबककर बैठ गई। तपस्वी ने सोचा कि चुहिया को लेकर कहां घूमता फिरुंगा! इसको कन्या बनाकर साथ लेकर चलता हूं। तपस्वी ने अपने तप के प्रभाव से चुहिया को कन्या का रूप दे दिया। वह उसे साथ लेकर अपने आश्रम पर आ गए।
तपस्वी की पत्नी ने पूछा-‘उसे कहां से ले आए?’तपस्वी ने पूरी बात बता दी। दोनों पुत्री की तरह कन्या का पालन-पोषण करने लगे। कुछ दिनों बाद कन्या युवती हो गई। पति-पत्नी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। तपस्वी ने पत्नी से कहा-‘मैं इस कन्या का विवाह भगवान सूर्य से करना चाहता हूं।’ पत्नी बोली-‘यह तो बहुत अच्छा विचार है। इसका विवाह सूर्य से कर दीजिए।’
तपस्वी ने सूर्य भगवान का आह्वान किया। भगवान सूर्य उपस्थित हो गए। तपस्वी ने अपनी पुत्री से कहा- ‘यह सारे संसार को प्रकाशित करने वाले भगवान सूर्य हैं। क्या तुम इनसे विवाह करोगी?’ लड़की ने कहा-‘उनका स्वभाव तो बहुत गरम है। जो इनसे उत्तम हो, उसे बुलाइए।’लड़की की बात सुनकर सूर्य ने सुझाव दिया-‘मुझसे श्रेष्ठ तो बादल है। वह तो मुझे भी ढक लेता है।’
तपस्वी ने मंत्र द्वारा बादल को बुलाया और अपनी पुत्री से पूछा-‘क्या तुम्हें बादल पसंद है?’लड़की ने कहा-‘यह तो काले रंग का है। कोई इससे भी उत्तम वर हो तो बताइए।’ तब तपस्वी ने बादल से ही पूछा-‘तुमसे जो उत्तम हो, उसका नाम बताओ।’ बादल ने बताया-‘मुझसे उत्तम वायु देवता हैं। वह तो मुझे भी उड़ा ले जाते हैं।’ तपस्वी ने वायु देवता का आह्वान किया। वायु को देखकर लड़की ने कहा-‘वायु है तो शक्तिशाली, पर चंचल बहुत है। यदि कोई इससे अच्छा हो तो उसे बुलाइए।’
तपस्वी ने वायु से पूछा-‘बताओ, तुमसे अच्छा कौन है?’ वायु ने कहा-‘मुझसे श्रेष्ठ तो पर्वत ही होता है। वह मेरी गति को भी रोक देता है।’तपस्वी ने पर्वत को बुलाया। पर्वत के आने पर लड़की ने कहा-‘पर्वत तो बहुत कठोर है। किसी दूसरे वर की खोज कीजिए।’
तपस्वी ने पर्वत से पूछा-‘पर्वतराज, तुम अपने से श्रेष्ठ किसी मानते हो?’ पर्वत ने कहा-‘चूहे मुझसे भी श्रेष्ट होते हैं। वे मेरे शरीर में भी छेद कर देते हैं।’तपस्वी ने चूहों के राजा को बुलाया और पुत्री से प्रश्न किया-‘क्या तुम इसे पसंद करती हो?’
लड़की चूहे को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और उससे विवाह करने को तैयार हो गई। वह बोली-‘पिताजी, आप मुझे फिर से चुहिया बना दीजिए। मैं इनसे विवाह करके आनंदपूर्वक रह सकूंगी।’ तपस्वी ने उसे फिर से चुहिया बना दिया।
सोमवार, 27 जून 2011
जहा तुम पढ़ते हो, हम वहां के प्रिंसिपल है !!
एक रात, चार कॉलेज विद्यार्थी देर तक मस्ती करते रहे और जब होश आया तो अगली सुबह होने वाली परीक्षा का भूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया।
परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने कपड़े पहनकर वे प्रिंसिपल के सामने जा खड़े हुए और उन्हें अपनी दुर्दशा की जानकारी दी। उन्होंने प्रिंसिपल को बताया कि कल रात वे चारों एक दोस्त की शादी में गए हुए थे। लौटते में गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया।
किसी तरह धक्का लगा-लगाकर गाड़ी को यहां तक लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव नहीं दिखता, पेपर हल करना तो दूर की बात है। यदि प्रिंसिपल साहब उन चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी और दिन ले लें तो बड़ी मेहरबानी होगी।
प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गए। उन्होंने तीन दिन बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल साहब को धन्यवाद दिया और जाकर परीक्षा की तैयारी में लग गए।
तीन दिन बाद जब वे परीक्षा देने पहुंचे तो प्रिंसिपल ने बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के लिए ही आयोजित की गई है। चारों को अलग-अलग कमरों में बैठना होगा।
चारों विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में जाकर बैठ गए। जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल दो ही प्रश्न थे -
प्र. 1 आपका नाम क्या है ? (2 अंक)
प्र. 2 गाड़ी का कौनसा टायर पंक्चर हुआ था ? ( 98 अंक )
अ. अगला बायां
ब. अगला दायां
स. पिछला बायां
द. पिछला दायां
शनिवार, 25 जून 2011
साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां
एक था मिलखासिंह। वह पंजाब का रहने वाला था। उसका एक मित्र कश्मीर की वादी में रहता था। मित्र का नाम था आफताब। एक बार मिलखासिंह को आफताब के यहां जाने का मौका मिला। दोनों मित्र लपककर एक-दूसरे के गले से लग गए। आफताब ने रसोईघर में जाकर स्वादिष्ट पकवान तैयार करने को कहा और मिलखासिंह के पास बैठ गया।
कुछ ही देर में खाने की बुलाहट हुई। मिलखासिंह ने भरपेट भोजन किया। आफताब ने पूछा, ‘यार, खाना कैसा लगा?’ मिलखा बोला, ‘खाना तो अच्छा था पर ‘साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता)। आफताब को बात लग गई। रात के भोजन की तैयारी जोर-शोर से की जानी लगी। घर में खुशबू की लपटें उठ रही थीं। रात को खाने की मेज पर गुच्छी की सब्जी से लेकर मांस की कई किस्में भी परोसी गईं।
मिलखासिंह ने खा-पीकर डकार ली तो आफताब ने बेसब्री से पूछा-‘खाना कैसा लगा, दोस्त?’‘साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां।’ मिलखासिंह ने फिर वही जवाब दिया। आफताब के लिए तो बहुत परेशानी हो गई। वह अपने मित्र के मुंह से कहलवाना चाहता था कि कश्मीरी खाना बहुत लज्जतदार होता है।
वादी के होशियार रसोइए बुलवाए गए। घर में ऐसा हंगामा मच गया मानो किसी बड़ी दावत की तैयारी हो। अगले दिन दोपहर के भोजन में एक-से-एक महंगे और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए। रोगनजोड़ा, कबाब, करम का साग, केसरिया चावल, खीर आदि पकवानों में से खुशबू की लपटें उठ रही थीं।
कांच के सुंदर प्यालों में कई किस्म के फल रखे गए थे। मिलखासिंह ने भोजन किया और आफताब के पूछने से पहले ही बोला, ‘अरे, ऐसा लगता है, किसी धन्नासेठ की दावत है।’ आफताब के मन को फिर भी तसल्ली न हुई। मिलखासिंह जी पंजाब लौट गए।
कुछ समय बाद आफताब को पंजाब लाने का अवसर मिला। उसने सोचा-‘मिलखासिंह के घर जरूर जाऊंगा। देखूं तो सही, वह क्या खाते हैं?’
मिलखासिंह ने कश्मीरी मित्र का स्वागत किया। थोड़ी ही देर में भोजन का समय हो गया। दोनों मित्र खाना खाने बैठे। मिलखा की पत्नी दो प्लेटों में सरसों का साग और मक्के की रोटी ले आई। दो गिलासों में मलाईदार लस्सी भी थी।
आफताब अन्य व्यंजनों की प्रतीक्षा करने लगा। मिलखासिंह बोला, ‘खाओ भई, खाना ठंडा हो रहा है।’
आफताब ने सोचा कि शायद अगले दिन पंजाब के कुछ खास व्यंजन परोसे जाएंगे। अगले दिन भी वही रोटी और साग परोसे गए। आफताब ने हैरानी से पूछा, ‘मिलखासिंह, तुम तो कहते थे कि ‘पंजाब दीयां केडियां रीसां’। यह तो बिलकुल साधारण भोजन है।’
मिलखासिंह ने हंसकर उत्तर दिया, ‘आफताब भाई, तुम्हारे भोजन के स्वाद में कोई कमी न थी, किंतु वह इतना महंगा था कि आम आदमी की पहुंच से बाहर था।
हम गांववाले सादा भोजन करते हैं, जो कि पौष्टिक भी है और सस्ता भी। यही हमारी सेहत का राज है।’
आफताब जान गया कि मिलखासिंह सही कह रहा था। सादा भोजन ही अच्छे स्वास्थ्य का राज है।
गुरुवार, 23 जून 2011
श्रीबकबक विजय सिंह भानपा में?