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गुरुवार, 12 मई 2011

मजनूं का बाप ....

आज से बीस साल पहले हमें
एक ज्योतिषी ने बतलाया था-

"चालीस पार करते ही
तुम पर इश्क़ का
भूत सवार होगा
और एक ख़ूबसूरत कन्या से
तुम्हारा प्यार होगा

इक्तालीस में

क़दम रखते ही
ज्योतिषी का कथन
रंग लाया
और हमने अपना विचार
जब एक दोस्त को बतलाया

तो वो हंसा

फिर हम पर व्यंग्य कसा-
"इस उम्र में इश्क़ फ़रमाओगे
सारा विचार धरा रह जाएगा
हाँ जूते खाओगे।"

हमने पूछा-

"इश्क़ का जूते से क्या सम्बन्ध है?"

वो बोला-"हर मजनूं की किस्मत

लैला की जूती में बन्द है।"

हमने कहा-"आप तो यों कह रहे हैं

मानो इस मामले में
बड़ा दखल रखते हैं।"

वो बोला-"दखल ही नहीं

हम तो जूते खाने का भी बल रखते हैं
लैला तो लैला
हमने लैला के बाप तक के खाए हैं

और निन्यान्वे तक तो

यों मुस्कुराए हैं
जैसे कोई बात नहीं
फिर जूता टूट जाने पर
मारने वाले से पूछा है
पिताजी!- क्या आपके पास लात नहीं?

सच पूछो शैल भाई

तो इस मामले में
हमारे सर के बालों ने
बड़ा काम किया है

तुम्हारे सर पर तो हैं ही नहीं

जूता पड़ते ही, बोलने लगेगा
दूसरा ब्रम्हरंध्र खोलने लगेगा
तीसरे में समाधी ले लोगे
और चौथे में
बड़े भैया, बराबर हो लोगे

पहली बार
, पहला जूता
हमारे सर पर पड़ते ही
हमारी आँखो के सामने
तारे नाचने लगे थे

और दूसरे में तो हम

रामायण बांचने लगे थे
तुम्हारे मुंह से तो
राम का नाम भी नहीं निकलेगा
और "राम नाम सत्य" भी
कोई दूसरा ही बोलेगा

फिर मौका पड़ने पर

न तो तुम भाग सकते हो
न कोई दीवार लांघ सकते हो
छिपने पर भी नहीं छिपोगे
भीड़ में भी घुस जाओगे
तो अलग दिखोगे

सच पूछो शैल चतुर्वेदी

तो तुम्हारी बॉडी का कंस्ट्रक्शन
इश्क़बाजी के ख़िलाफ़ है
लैला यह समझेगी
की मजनूं नहीं
मजनूं का बाप है

फिर ज़्यादा गड़बड़ करोगे

तो बन्द हो जाओगे
पिट-पिट कर

नई कविता के छन्द हो जाओगे।"

हमने पूछा-"ये नई कविता के छन्द
क्या बला है?"

वो बोला-"बेवक़ूफ़ बनाने की कला है

नई कविता का सूरज
ख़ून की कै करता है
चन्द्रमा मवाद फेंकता है
किरण को टी.बी. हो जाती है
दिन दहाड़ता है
रात रंभाती है
तम तमतमाता है
उल्लू गाता है
कोयल किटकिटाती है
मैना मुस्कुराती है

और नई कविता के बारे में

इतना ही जानता हूँ
ज़्यादा जानना चाहते हो
तो किताब खरीद लाओ
पढ़-पढ़ कर सिर पीटना
रातों को
पागलों की तरह चीखना

वैसे आज कल की मुहब्बत भी

तुम्हे इसके सिवाय क्या देगी
क्योंकी आज कल की नई छोकरी भी
नई कविता से क्या कम है
मरघट में बैठकर गाती है

"ये प्यार का मौसम है"

जीते जी
मरघट जाना चाहते हो
तो इश्क फरमाओ
वर्ना घर जाकर
चुपचाप

भाभी जी के पैर दबाओ

जूते खाने से
पैर दबाना अच्छा
और मजनूं का बाप कहलाने से
ज़ोरू का ग़ुलाम कहलाना अच्छा।"

प्रस्तुत कविता पृसिद्ध हास्य कवी श्री शैल चतुर्वदी जी की है और कविता कोष से साभार ली गयी है

10 टिप्पणियाँ:

इश्क़ का भूत-हारे की भभूत।

बहुत अच्छे, श्रीशैलसा`ब।

क्या बात है , बहुत मजेदार

बढ़िया लिखा है शैल जी ने .... आभार पढ़वाने के लिए

भाभी जी के पैर दबाओ
जूते खाने से
पैर दबाना अच्छा
और मजनूं का बाप कहलाने से
ज़ोरू का ग़ुलाम कहलाना अच्छा।"

सही सलाह दी है भाई !

बहुत बढ़िया लिखा है ....

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